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भरपेट खाने के चक्कर में उसे क्या बना दिया, क्या उसका बेटी होना गुनाह था, जरुर पढ़ें ये दर्दनाक बात

भरपेट खाने के चक्कर में उसे क्या बना दिया, क्या उसका बेटी होना गुनाह था, जरुर पढ़ें ये दर्दनाक बात
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इस घटना से यह जरुर कहने लगेंगें कि बेटी होना क्या गुनाह है.
भरपेट खाने के लालच ने बिहार के एक गांव की इस लड़की को देह-व्यापार में झोंक दिया."कोई मुझसे पूछे कि मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती क्या है तो मैं कहूंगी- ताज़ा खाने का लालच."
आप मुझे चटोर सोच सकते हैं या फिर कुछ भी और...मेरे पास कोई जवाब नहीं होगा सिवाय इसके कि भूख ने मुझे देह व्यापार में झोंक दिया.
7 लोगों का परिवार था. मां-बापू के साथ हम 5 बच्चे. वो दोनों दिनभर दूसरे के खेत में काम करते. भाई-बहनों में मैं सबसे बड़ी थी. मैं दिनभर छोटे भाई-बहनों को संभालती और उनका इंतजार करती. लौटते तो सौदा आता. दो रुपए का गुड़, दस रुपए का सत्तू. या फिर मूढ़ी और लाल मिर्च. ज्यादातर वक्त यही हमारा रात का खाना हुआ करता.
छोटे भाई-बहन रोते तो उन्हें चुप कराते हुए कभी-कभी मैं उन्हें एकाध थप्पड़ भी जमा देती. खेती के मौसम में फिर भी थोड़ी कमाई हो जाती लेकिन साल के कई महीने खाली बैठना होता, तब कर्ज मांगकर खाते. कर्ज भी कोई कब तक दे.
मुझे याद नहीं, आखिरी बार भरे पेट हम सब कब सोए थे.
एक रोज पड़ोस के ताऊजी एक आदमी को लेकर आए. उसने बताया कि बड़े शहरों में घरेलू काम के लिए नौकर चाहिए होते हैं. काम जैसे खाना पकाना, कुत्ते को टहलाना, बच्चों की नहान-धुलान. मैं 15 की थी. ये सारे काम कर सकती थी. मां-बापू मुझे भेजने को तैयार हो गए. चार पैसे हाथ में आएंगे. उस आदमी ने बताया कि शहरी मालिक चाहें तो मुझे पढ़ा भी सकते हैं. इससे मैं आगे चलकर नौकरी भी कर सकती थी.
मैं तितली की तरह यहां से वहां मंडराते हुए जाने की तैयारियां करने लगी. मां ने दुलार में दो जोड़ कपड़े और सिंगार-पटार का छुटपुट सामान भी खरीदकर दिया. वो ऐसे बिदा कर रही थी मानो आखिरी बिदाई हो. मैं हंस रही थी. नहीं जानती थी कि ये सच में आखिरी विदा होगी.
स्टेशन पर वो आदमी एक औरत के साथ था. अपनी पत्नी बताता था. मैं निश्चिंत होकर चल पड़ी. पूरी रात का सफर तय करके उड़ीसा पहुंचे. मैं पढ़ पाती थी. मैंने पूछा-हम तो दिल्ली या पंजाब जाने वाले थे. वो दोनों टालते रहे. मैं भी चुप हो गई.
'मुझे कोठे से भगा दिया गया, उम्र के साथ मैं भद्दी लगने लगी थी'
उस रात ने सबकुछ बदल दिया. खिचड़ी दाढ़ी और सफाचट सिर वाले एक आदमी ने मेरा बलात्कार किया. मैं कूड़े की तरह कमरे में पड़ी रही. धूप चढ़ने पर वही औरत आई और मुझे कपड़े बदलकर कुछ खा लेने कहा. मेरे चुप रहने पर मारा-पीटा. कई दिनों तक रोज नए-नए आदमी आते. मेरे लिए अब दिन-रात का फर्क खत्म हो चुका था. उस कमरे में एक रौशनदान था और वो भी बहुत ऊंचाई पर. उसे ही देखती और दिन-रात का फर्क समझती.
गांव में खुली धूप में खेलती, यहां कमरे के बल्ब से आंखें मिचमिचाने लगी.
एक दिन मुझे नहलाया-धुलाया गया. मैंने सोचा, नया ग्राहक आएगा लेकिन वे मुझे बाहर ले गए. धमकाया कि रास्ते में किसी के भी सामने कुछ कहा तो मेरे घरवालों को मार देंगे. अब मैं एक घर में थी. यहां उन्होंने मेरा नाम और यहां तक कि मेरा धर्म भी बदलकर बताया. बड़े से घर में कुल जमा 4 लोग. मर्द-औरत और दो बच्चे. भले लगे.
मुझे दूसरे कपड़े दिए गए. नया ब्रश, नया तौलिया-कंघा. बच्चों के कमरे के पास स्टोर रूम मेरा कमरा था. घर के गैरजरूरी सामानों के साथ मैं भी बस गई. मुझे तौर-तरीके समझाए गए. मेहमानों के आने पर क्या करना है, बच्चों के साथ कैसे रहना है. मैं हां-हूं करती. लगा- देर से सही, उस आदमी ने अपनी बात पूरी की. अब मुझे दो वक्त ताजा खाना मिलेगा और मैं पैसे जोड़ सकूंगी.
मैं पूरे महीने हाड़तोड़ काम करती रही. बच्चों की संभाल, घर के काम, खाना पकाना. मेहमानों का आना कभी रुकता ही नहीं था. मैं थक जाती. खाना भी अपने लिए अलग पकाना होता.
महीना पूरा हो गया. मैं कई दिनों तक उधेड़बुन में रही, फिर पूछ ही लिया. मैडम ऐसे देखने लगीं मानो किसी ने उन्हें थप्पड़ मार दिया हो. फिर चीखते हुए बताया कि उन्होंने पूरे 50 हजार रुपए मेरे लिए चुकाए हैं. ऊपर से मेरा रहना-खाना-कपड़ा मुफ्त. अब जाकर मैं कुछ-कुछ समझ रही थी. मैंने घर के काम करने से इन्कार कर दिया. भले नजर आने वाले सर ने मुझे बेल्ट से पीटा.
एक दिन मैंने फिनाइल की पूरी बोतल पी ली. अस्पताल ले जाकर इलाज करवाया. घर आने पर खूब मारपीट की. कहा कि खुदकुशी की कोशिश को छिपाने के लिए और इलाज के लिए उन्हें ढेर पैसे खर्चने पड़े. अब तो मैं पैसों की उम्मीद छोड़ ही दूं. तब से मेरी आंतें कमजोर हो गई हैं.
अब मैं खाना पचा भी नहीं पाती हूं, भरपेट खाना दूर की बात.लगभग डेढ़ साल बाद एक संस्था ने 'रेस्क्यू' किया. तब से नारी निकेतन में हूं. संस्था ने घरवालों से संपर्क की कोशिश भी की लेकिन उन्होंने कहा कि हमारी कोई बेटी नहीं है.
(बिहार के पूर्वी हिस्से में रहने वाली इस युवती के अनुरोध पर पहचान गुप्त रखी गई है.)
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