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बिहार: उप चुनाव के परिणाम के राजनीतिक संकेत

बिहार: उप चुनाव के परिणाम के राजनीतिक संकेत
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बिहार के उपचुनाव पर सटीक विश्लेष्ण

बिहार में अररिया लोकसभा और जहानाबाद और भभुआ विधान सभा के उप चुनाव का परिणाम आ चुका है. सरसरी तौर से यह चुनाव परिणाम अप्रत्याशित नही रहा हैंऔर बीजेपी ने अपनी परंपरागत सीट भभुआ को बरकरार रखा है और वहां बीजेपी प्रत्याशी रिंकी देवी पांडे ने करीब 15 हजार वोटों से कांग्रेस के उ्मीदवार शंभु पटेल को पराजित किया है तो दूसरी ओर जहानाबाद की सीट पर भी राजद का कब्जा बरकरार रहा है और वहा राजद के उम्मीदवार सुदय यादव ने करीब 35 हजार से जद यू के अभिराम शर्मा को पराजित किया है.


अररिया लोकसभा सीट भी राजद ने बरकरार रखी है और वहां राजद उ्मीदवार सरफराज आलम ने भाजपा प्रत्याशी प्रदीप सिंह को करीब 61 हजार से पराजित किया है. यानि कह सकते हैं राजद और भाजपा ने अपनी पुरानी सीट बरकरार रखी है. लेकिन आज विधान सभा परिसर में राजद के विधायकों ने जीत की खुशी में जिस तरह होली खेलकर जीत का जश्न मनाया इससे यह साफ संकेत है कि राजद इस जीत को बहुत बड़ी उपलब्धि मान रहा है .


वजह साफ है महागठबंधन से जद यू के अलग होने और चारा घोटाले में लालू प्रसाद को सजा होने के बाद इस पहले चुनाव में राजद ने बाजी मार ली है. तेजस्वी यादव के नेतृत्व में हुए इस पहले चुनाव में राजद की जीत के कई मायने हैं. ऐसा राजद के नेता मानते हैं. भले ही इस चुनाव से सरकार की सेहत पर कोई असर नही पड़ता हो और सहानुभूति वोट भी राजद की नैया पार कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी हो लेकिन इस चुनाव की तैयारी राजद ने पूरे जोर शोर से की थी और अररिया में जद यू विधायक सरफराज आलम को तोड़कर जहां उन्हें चुनाव मैदान में खड़ा किया तो दलितो के बड़े वोट बैेक का लाभ लेने के लिये जीतन राम मांझी , सुखदेव पासवान को भी अपने साथ में जोड़ा . महागठबंधन में कोई विवाद ना हो इस लिये भभुआ की सीट कांग्रेस को दी . यानि एक मजबूत राजनीतिक समीकरण बनाने में वह कामयाब रहा जिसका परिणाम रहा कि इस जीत का स्वाद राजद को चखने को मिला है.


हालांकि एनडीए नेताओं की माने तो 2009 मे इस तरह ही उप चुनाव के परिणाम एनडीए सरकार के खिलाफ रहा जबकि 2010 में इसके विपरीत जनता ने फैसला दिया .लेकिन राजनीतिक पंडितो की माने तो 2010 और 2018 में काफी परिवर्तन आ चुका है राज्य के राजनीतिक समीकरण भी बदल चुके हैं ऐसे में इस चुनाव परिणाम को हल्के में लेना कही से भी उचित नही और राज्य की सत्ता धारी गठबंधन को गंभीरता से इस पर चिंतन करने और सभी गठबंधन के दलों को एक जुट रहने की जरूरत है. दूसरी ओर यह चुनाव परिणाम 2009 की तरह ना हो इसके लिये राजद गठबंधन को भी इस जीत को बरकरार रखन के लिये आगे और मिहनत की जरूरत है. फिलहाल हम कह सकते हैं य़ह चुनाव परिणाम दोनो गठबंधन के लिये भविष्य के संकेत है.


खासकर पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा चुनाव परिणाम जिसने वहा क ेमुख्य मंत्री और उप मुख्यमंत्री की तो भद्द पिटवायी हैी त्रिपुरा में भगवा लहराने वाली भाजपा की जीत जश्न को भी गम में तब्दील कर दिया है . सोनिया गांधी की डीनर पोलिटिक्स के बाद तुरंत हुए इस चुनाव परिणाम ने एनडीए गठबंधन के रंग में भंग डाल दिया है. याद कीजिये इसी तरह 2004 में सोनिया गांधी के डीनर पोलिटिक्स के बाद तत्कालीन अटल जी की सरकार का फील गुड खत्म हो गया था. यूपी में अखिलेश मायावती का साथ और जीत के बाद अखिलेश का अपने बुआ मायावती के घर जाकर उन्हें जीत के लिये धन्यवाद देना यह साफ संकेत है कि इस उप चुनाव के खास मायने है और शायद यह 2019 के लोकसभा चुनाव का आगाज है. देखना है कि इस उप चुनाव के परिणाम के बाद देश की राजनीति किस करवट लेती है फिलहाल कह सकते हैं जो जीता वही सिकंदर और यही वजह है इस चुनाव में जद यू की हार के बाद भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सभी विजयी प्रत्याशियो को बधाई दी है तो जीत के बाद भी तेजस्वी और अखिलेश ने जनता के फैसले को विनम्रता पूर्वक स्वीकार किया है यानि यह सिर्फ आगाज ही नही है राजनीति का निराला अंदाज भी है.

वरिष्ठ पत्रकार अशोक मिश्र की कलम से

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