

बिहार में लालूप्रसाद के नेतृत्व वाला राष्ट्रीयजनतादल सबसे प्रमुख भाजपा विरोधी दल है . कांग्रेस इसके साथ है . अभी दिल्ली में लालूप्रसाद ने राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रस की प्रासंगिकता को चिन्हित किया है . इससे उनके उसके साथ मजबूत रिश्ते का इज़हार होता है . मौजूदा बिहार विधान सभा में 243 में से 107 विधायक इसके हैं . अब इस गठबंधन में जीतनराम मांझी भी हैं . एनडीए के कुछ नेता इधर उझक रहे हैं . यह उझकना राजनीतिक अनुकूलता भांपकर ही होता है .
इसलिए यह स्वीकारना होगा कि भाजपा की राजनीतिक मुश्किलें यहां बढ़ रही हैं . भाजपा की सबसे बड़ी मुश्किल नीतीश कुमार बन गए हैं ,जिन्हे लेकर वह सांप -छछूंदर वाली स्थिति में आ गयी है . पिछले वर्ष जुलाई में किसी चमत्कार की तरह नीतीश अचानक भाजपा की गोद में आ गिरे . आरंभिक तौर पर तो भाजपा को लाभ ही लाभ था . सत्ता सुख भी मिला और विरोधी खेमे में फूट भी हो गई . सब तरह से पौ -बारह थी . लेकिन जैसे ही सृजन घोटाले का मामला उभरा, मजा किरकिरा हो गया . बाद में तो घोटालों का सिलसिला ही बन गया . हाल के समय में सामाजिक सद्भाव बिगड़ने से कानून व्यवस्था ख़त्म होने की बात सामने आई है तब नीतीश मुश्किल में हैं . उनकी कुछ भी चल नहीं रही है . उनकी स्थिति 1857 के ठीक पहले वाले बहादुर शाह जफर जैसी हो गई है ,जो नाममात्र के शासक थे . एक दरोगा भी उनकी कदर नहीं करता था . सार्वजनिक रूप से भी नीतीश ने अपनी बेचारगी का प्रकटीकरण किया है . लालू जहाँ ताल ठोंक कर आडवाणी को गिरफ्तार कर सकते थे ,नीतीश की घिग्घी बंधी है . वह केंद्रीय मंत्री के एक मामूल बेटे को छू भी नहीं पा रहे हैं . इस दयनीयता का इस हद तक प्रकटीकरण हुआ है कि नीतीश कुमार एक मज़ाक बन कर रह गए हैं . जदयू इस हाल में बहुत दिन भाजपा के साथ रह पायेगी, यह संभव नहीं दिखता . बहुत संभव है 2019 का लोकसभा चुनाव दोनों एक साथ नहीं लड़ें . लेकिन अभी इस बात पर हम ज्यादा बल नहीं देना चाहेंगे ,क्योंकि राजनीति अटकलों पर नहीं , वास्तविकताओं पर टिकी होती है . अभी हम नीतीश को भाजपा के साथ ही रख कर स्थितियों का आकलन करना चाहेंगे .




