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मोदी सरकार की जीएसटी देश के लिए क्या 'वाटरलू' साबित होगी, पढिये पूरी रिपोर्ट

मोदी सरकार की जीएसटी देश के लिए क्या  वाटरलू साबित होगी, पढिये पूरी रिपोर्ट
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मोदी सरकार जीएसटी को ‘ग्लासनोस्त’ और ‘पेरेस्त्रोइका’ के रूप में ही पेश कर रही थी लेकिन वास्तव में देश के लिए ये 'वाटरलू' ही साबित हुआ है।
आपको याद है मोदीजी ने जीएसटी को लॉन्च करते हुए क्या कहा था ? उन्होंने कहा था कि ये भारत की पेचीदा टैक्स प्रणाली का सबसे सरल रूप है। ये नई टैक्स क्रांति है उनकी इस टेक्स क्रांति के बारे में वर्ल्ड बैंक का कहना है कि यह दुनिया की सबसे ज्यादा जटिल टेक्स प्रणाली है।
वर्ल्ड बैंक ने टैक्स रिफंड की धीमी रफ्तार पर भी चिंता जताई है। इसका असर पूंजी की उपलब्धता पर पड़ने की बात कही गई है। रिपोर्ट में कर प्रणाली के प्रावधानों को अमल में लाने पर होने वाले खर्च को लेकर भी सवाल उठाए गए हैं।
भारत के निर्यातकों का कहना है कि जब से जीएसटी लागू हुई है तब से कारोबार की गति काफी शिथिल हो गई है। पहले ड्यूटी ड्रॉ बैक मिलता था। मगर जीएसटी के प्रभावी होने के बाद इसके रिफंड की बात कही गई थी। मगर कई महीनों से जीएसटी रिफंड फंस हुआ हैं निर्यातक बेहद परेशान है छोटे व्यापारी भी इससे परेशानी महसूस कर रहे हैं उनका कहना है कि जबसे जीएसटी लागू हुआ है व्यापार आधा हो गया है।
जीएसटीलागू होने के बाद देश के विनिर्माण क्षेत्र में 101 महीने की सबसे तेज गिरावट देखी गई थी निक्की इंडिया मैन्युफैक्चरिंग पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) जुलाई में 47.9 रहा है, जबकि जून में यह 50.9 अंक पर था. फरवरी, 2009 के बाद यह विनिर्माण सूचकांक का सबसे निचला स्तर पर पुहंच गया था।
जीएसटी लागू करने के बाद जो सबसे बड़ी समस्या उत्पन्न हुई है। वह व्यापारियों की नहीं है खुद सरकार की है सिर्फ छोटे से राज्य उत्तराखंड का उदाहरण आप देखिए जीएसटी लागू होने के बाद उत्तराखंड के राजस्व में 34 प्रतिशत तक की कमी आई है। अगस्त से जनवरी तक राज्य को एसजीएसटी के रूप में कुल 1785 करोड़ रुपये का राजस्व मिला है। जबकि इसी अवधि में पिछले साल करों से 2701 करोड़ की आय हुई थी।
इस तरह का घाटा सभी राज्यों को हुआ है और इसकी भरपाई के लिए लगाया हुआ टेक्स भी नाकाफी साबित हुआ है। राज्यों के राजस्व में कमी का आंकड़ा 'क्षतिपूर्ति सैस' के रूप में सरकार को प्राप्त हो रही धनराशि से भी अधिक जा रहा है सूत्रों के मुताबिक अगस्त से दिसंबर के दौरान क्षतिपूर्ति सैस से हर महीने औसतन 7615 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं जबकि राज्यों की जरूरत कही ज्यादा की थी।
दिसंबर में ही सभी राज्यों को 8,894 करोड़ रुपये राजस्व हानि हुई जबकि इस महीने में क्षतिपूर्ति सैस से मात्र 7848 करोड़ रुपये ही राजस्व प्राप्त हुआ।
जीएसटी से राज्यों के राजस्व संग्रह में कमी का आंकड़ा अक्टूबर में 17.5 प्रतिशत पर आ गया था लेकिन दिसंबर में यह फिर से बढ़कर 20.7 प्रतिशत हो गया है।
अब इस तरह से घाटा बढ़ता जाएगा तो राज्य सरकारें किस तरह से अपने राज्य में अपना खर्चा चला पाएगी, इसका मतलब यह है कि हम ज्वालामुखी पर बैठे हुए हैं जो कभी भी फट सकता हैं।
मोदी सरकार जीएसटी को 'ग्लासनोस्त' और 'पेरेस्त्रोइका' के रूप में ही पेश कर रही थी लेकिन वास्तव में देश के लिए ये 'वाटरलू' ही साबित हुआ है।
गिरीश मालवीय की कलम से
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