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बैंकरों के पत्र आए हैं.... अगर जोक्स शेयर से वक्त मिल जाए तो पढ़िएगा

रवीश कुमार
13 March 2018 7:23 AM GMT
बैंकरों के पत्र आए हैं.... अगर जोक्स शेयर से वक्त मिल जाए तो पढ़िएगा
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हमने सिर्फ कुछ सैंपल पत्रों को आप तक रखा है। हज़ारों पत्रों को पढ़ते पढ़ते मेरी आंखों में दर्द हो गया है। चुभता रहता है। कई पत्रों को पढ़ कर रो देता हूं। कुछ पत्रों को प्राइम टाइम में पढ़ा भी है।

नई दिल्ली : बैंकरों के पत्र आए हैं....अगर जोक्स शेयर से वक्त मिल जाए तो पढ़िएगा..

1) A very good morning sir

सर आपने जो बैंको में महिलाओं की समस्याओं को लेकर मुद्दा उठाया वो सब जायज है ।

मेरी एक अनुरोध है सर कृपया हमारे पीरियड्स को भी लेकर बोले कितने बार हमें इसके लिए तकलीफ होती है।

हम दर्द में होते है लेकिन फिर भी हम छुट्टी नही ले सकते हे जबकि सेंट्रल गवर्नमेंट में इसके लिए महिलाओं को 2 दिन की छुट्टी दी जाती है।

आपसे अनुरोध है सर की बैंको में भी हमे 2 दिन की छुट्टी दिलवाने की कोशिश की जाये इसके लिए मैं सदा आपकी आभारी रहूगी ।

One of the women banker's

And hats off to you for your support to Bankers and thank you

Keep going sir we are with you

2) एक महिला बैंकर ने लिखा है कि ब्रांच मैनेजर सवाल करने पर गंदी गंदी गालियां देता है। मैं एक महिला बैंकर हूं। घर पर 8 महीने का बच्चा मेरी राह देखता है। रिज़र्व बैंक से शिकायत कर सकती हूं कि देर शाम तक रोक कर काम कराया जाता है मगर ब्रांच में सस्पेंड कर दी जाऊंगा या फिर तबादला।

3) रवीश जी, नमस्कार, आपकी वजह से हम बोलना सीख रहे हैं। हमारे सीनियर ब्रांच में आए थे। जिन खातों में बड़े बड़े रीजनल मैनेजर और रिकवरी एजेंट रिकवरी नहीं करा पाए, उन खातों की रिकवरी के लिए हमें बस से या अकेले जाने को बोलते हैं। मैंने अकेले जाने से मना कर दिया।

4) मैं एक महिला बैंकर हूं। बहुत मेहनत से पीओ बनी मगर ट्रक दुर्घटना की शिकार हो गई. व्हील चेयर पर आ गई। मेरा शरीर कमज़ोर हो चुका है जिसका असर काम के रफ्तार पर पड़ता है। मगर मेरी ईमानदारी और इरादे पर कोई शक नहीं कर सकता। चार महीने बाद मेरी तबीयत फिर बिगड़ने लगी है। डॉक्टर ने आराम के लिए बोला मगर मैं काम करती रही क्योंकि इलाज के लिए लिया गया लाखों का लोन भी चुकाना था। इसके बाद भी ब्रांच मैनेजर इस हालत में लोन रिकवरी के लिए घर घर जाने को भेज देते हैं। एक दिन पीरियड के टाइम में मैनेजर से कहा कि आज बाहर नहीं जा सकती तो उसने बोला कि अदालत चली जाओ मगर तुम्हीं जाओगी। उसके बाद मेरा तबादला घर से 2000 किमी दूर कर दिया। मुझे फिज़ियो की ज़रूरत है लेकिन सुबह 9 से शाम के 8 बजे तक बैंक में काम करना पड़ता है। मैं कब कराऊं। मेरी शरीर मेरे हाथ से छूट रहा है। इसके बाद भी मैं अपना काम 110 फीसदी करती हूं। रवीश सर, बैंकिंग में बहुत कुछ सहना पड़ता है जो खुलकर बोल नहीं पा रहे लेकिन आपकी वजह से आज एक छोटी सी बैंकर भी कुछ बोलना चाहती है। मुझे जीने का मन नहीं करता है। रोज़ मरने का मन करता है। मां बाप के लिए जी रही हूं। मेरे अलावा उनका कोई नहीं है।

5) रवीश जी, महिला दिवस पर प्राइम टाइम की बैंक सीरीज़ देख कर ऐसा लग रहा है जैसे कोई मेरी ही कहानी कह रहा हो। सभी फीमेल बैंकर एक ही नाव में हैं। सर, अपनी भी परेशानी शेयर करना चाहती हूं। मैं 6 साल से बैंकर हूं। आज भी क्लर्क हूं। मैं एम बी ए हूं, सारे इम्तहान पास किए हैं। मगर बैंकिंग सिस्टम ही हालत देखकर प्रमोशन लेने की हिम्मत नहीं होती है। बहुत सपने देखे थे आगे बढ़ने के। पर प्रमोशन से डर लगता है। तबादला हो जाएगा, टारगेट का दबाव बढ़ जाएगा, रात 9 बजे तक दफ्तर में रहना होगा। सर, ये मेरी नहीं हज़ारों प्रतिभाशाली महिला बैंकर की कहानी है।

6) रविश सर, मैं पंजाब नैशनल बैंक में कार्यरत हूँ | पंजाब नैशनल बैंक ने हरयाणा अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी) से एग्रीमेंट किया है की बैंक उनके पानी के बिल लेगा | रविश जी यहाँ मैं बताना चाहता हूँ की बैंकर का काम पानी बिल लेना नहीं हैं, खैर हम ले रहे हैं, बंधुआ मजदूर जो हैं| पर एक बिल को लेने में जो परेशानी आती है वो आपके साथ साँझा करना चाहता हूँ| सबसे पहले तो हमें एक बिल की डिटेल्स अपने फिनेक्ल सॉफ्टवेयर में लेने के लिए बिल की डिटेल्स को हुडा पोर्टल पर अपलोड करना पड़ता है| उसके पंद्रह मिनट बाद उस बिल को क्लर्क सॉफ्टवेयर में एंटर करेगा, कैश लेगा, उसके बाद अधिकारी एक एक बिल वेरीफाई करेगा| मतलब की अगर हमारे पास दिन के एक सौ पचास बिल भी लगा कर चलें तो तीन स्टेप के प्रोसेस के हिसाब से चार सौ पचास लोग हो जाते हैं, जो की बैंकिंग काम से अलग हैं. ऊपर से ब्रांच में ३ लोगों का ही स्टाफ है| इसमें क्या तो हम बिल लें, क्या बैंकिंग करें| और तनख्वाह तो आप जानते ही हैं| काम खत्म करते करते रात के नौ बज जाते हैं. खुल कर आवाज़ भी तो नहीं उठा सकते| प्लीज मदद कीजिये|

7) इलाहाबाद बैंक के बहुत सारे बैंकरों ने पत्र लिखा है कि उन्हें बैंक का शेयर ख़रीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है। इसके लिए उन्हें लोन लेकर खरीदने के लिए बोला गया है। बैंक का शेयर गिर रहा है और हम सबको घाटा हो रहा है। जो पत्र आया है ज़ाहिर है उसमें ऐसी भाषा नहीं हो सकती मगर पत्र के अलावा दूसरे तरीके से दबाव डाला जा रहा है कि आप बैंक का शेयर ख़रीदें। ऐसे सैंकड़ों पत्र आए हैं।

8) एक ब्रांच में काग़ज़ पर 10 अधिकारियों को छुट्टी दी गई ताकि रिकार्ड से पता चले कि सबको छुट्टी मिलती है। मगर रीजनल मैनेजर के आदेश से वे वहां काम करते रहे। पत्र भेजने वाले का दावा है कि अगर सीसीटीवी फुटेज की जांच हो तो पता चल सकता है। कुछ और लोगों ने भी ऐसी शिकायतें भेजी हैं।

ऐसे पत्र भी आते हैं....

9) रवीश भाई मैं 6 साल से फॉलोवर था आपका सत्य लेकिन बायस्ड होने के कारण आपका प्रोग्राम देखता नही...23 साल फौज में रहने के बाद आज तीन साल से बैंकर हूँ... कुछ इनबॉक्स में भेजूंगा तो बिना नाम का संज्ञान लेना..हालांकि हम भक्त रोज गरियाएँगे.. बदनाम होंगे तो नाम भी होगा

अब हमारा छोटा सा भाषण-

हमने सिर्फ कुछ सैंपल पत्रों को आप तक रखा है। हज़ारों पत्रों को पढ़ते पढ़ते मेरी आंखों में दर्द हो गया है। चुभता रहता है। कई पत्रों को पढ़ कर रो देता हूं। कुछ पत्रों को प्राइम टाइम में पढ़ा भी है। एक बैंकर मां को सात महीने के बीमार बच्चे को देखने के लिए घर जाने नहीं दिया गया। उसका पति दूर ट्रांसफर कर दिया गया है। बुखार बढ़ा तो आया के सहारे नहीं छोड़ सकती। बच्चे को मेज़ के ऊपर रखकर काम करती रही। रोती रही। मैं उस तस्वीर को देखकर रोने लगा।

11 सीरीज़ के बाद भी बैंकों के चिरकुट चेयरमैनों पर कोई फर्क नहीं पड़ा। लोग वाकई लोफर से भी बदतर हो चुके हैं। सबको सत्ता की सोहबत ही जीवन का सत्य लगता है। मंत्रियों के जूते चाटने वाले इन चेयरमैनों से इतना नहीं हुआ कि अपने लोगों की सुन लें, उनका दर्द बांट लें, कुछ हो सकता है तो कर दें। पता नहीं इनके घर वालों ने बैंक सीरीज़ देखी है या नहीं। कितना पाप ये पचा ले जाते हैं, मेरी समझ नहीं आता। और बैंकर कितने कायर हो चुके हैं कि ग़ुलामी बर्दाश्त कर लेते हैं।

अगर आप नागरिक वाकई कुछ कर सकते हैं तो बैंकों में काम कर रहीं इन महिला बैंकरों को बचा लीजिए। उनकी आवाज़ को दूर दूर तक पहुंचा दीजिए कि कैसे उन्हें ग़ुलाम बना कर रखा गया है। यही समस्या हु ब हू मर्दों की है लेकिन मर्दों को गर्भ धारण नहीं करना पड़ता है, उन्हें पीरीयड नहीं होते हैं। उन्हें छह महीने के बच्चे को दूध नहीं पिलाना पड़ता है।

मर्दों को भी तरह तरह की बीमारियां हो गई हैं। वे भी शिकार हैं मगर उनमें से कई महिलाओं पर क्यों ज़्यादती कर रहे हैं। अच्छा लगा कि कई मर्द बैंकर महिलाओं की व्यथा को अपनी व्यथा से आगे रख रहे हैं मगर महिलाओं को सताने वाली मानसिकता किसने बनाई। कई महिला रीजनल मैनजर भी उसी तरह ज़ुल्म करती हैं जैसे कोई मर्द रीज़नल मैनेजर करता है। यह सबसे घटिया लिंक है बैंक। सरकार से दबाव आता है, चेयरमैन उसे कार्यकारी निदेशक को थमा देता है और वहां से सारे रीजनल मैनजरों के ज़रिए कहर बरपाया जाता है।

पुरुष बैंकरों को सोचना होगा। यह कैसे मुमकिन है कि 13 लाख बैंकर ग़ुलाम की ज़िंदगी स्वीकार कर सकते हैं। मैंने होली के दिन पत्र लिखा कि आप कोई पर्व त्योहार न मनाए न इस दिन पर किसी को मुबारकबाद दें। पता नहीं कितनों ने उसका पालन किया। जब आप ग़ुलाम हो जाते हैं तो बाहर आने में सौ साल लग जाते हैं। शादी बारात में जाकर लोगों को पकड़ पकड़ कर बताएं। ऐसा तो हो नहीं सकता कि आप झूठी शान भी जी लें और आज़ादी भी पा लें। झूठी शान भी ग़ुलामी है।

जब आपको पता है कि आपकी कोई औकात नहीं रही, तो आप लोगों से छिपाते क्यों हैं, बता दीजिए सबको। होली पर मैंने बैंकरो से कहा था कि आप अपना हाल लिख कर बोतल में बंद कर गंगा में बहा दें। लाखों बोतल रात को नदी में छोड़ आएं। मंदिर के बाहर रख आएं। पत्र लिख कर कम से कम सौ घरों में भेज दें ताकि भारत को पता चल जाए। पता है उनके पास वक्त नहीं है, लेकिन ग़ुलामी से मुक्ति के लिए रातों को जागना पड़ता है वैसे ही जैसे आप ग़ुलामी के लिए रात रात जागकर काम करते हैं।

जो लोग प्राइवेट बैंक में काम करते हैं और इस सीरीज़ को देखकर अपना धीरज खो रहे हैं उनसे यही कहना चाहता हूं कि अभी आप हिन्दू मुस्लिम कीजिए। आप अपनी लड़ाई किसी को आउट सोर्स नहीं कर सकते। खुद लड़ना सीखें। नाइंसाफी से लड़ नहीं सकते तो मुझे पर आरोप न लगाएं कि मैं केवल सरकारी बैंकरों की बात कर रहा हूं। मुझसे पूछ कर ग़ुलामी करने गए थे क्या। तकलीफ आपको है तो बोलेगा कौन। आप या हम? यह शिकायत उन दौ कौड़ी के नेताओं से क्यों नहीं करते जिनके लिए आप लाइन में लगकर मतदान के दिन सत्तर फीसदी बनते हैं, उंगली दिखाकर सेल्फी खींचाते हैं।

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