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डॉ. वेदप्रताप वैदिक
देश के करोड़ों किसानों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार ने अनाज की 14 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किए हैं अर्थात सरकार उन अनाजों को अपने घोषित दामों पर खरीद लेगी ताकि किसानों को घाटा न हो। सरकार की घोषणा के मुताबिक किसान को उसकी उपज की लागत से डेढ़ गुना मूल्य सरकार देगी। उन्हें डेढ़ गुना मूल्य मिले, ऐसी सलाह स्वामीनाथन आयोग ने दी थी लेकिन यहां एक पेंच है।
उस आयोग ने फसल का लागत मूल्य तय करने में किसान की ज़मीन का किराया भी जोड़ा था याने फसल उगाने में आप खुदाई, बीज, सिंचाई, खाद, दवा, बिजली, मजदूरी आदि का खर्च तो जोड़ रहे हैं लेकिन जिस जमीन पर यह सब होना है, उसका खर्च कैसे छोड़ सकते हैं ? यदि जमीन का खर्च भी सरकार जोड़ लेती तो उसका अभी जो डेढ़ गुना दाम है, वह पौने दो गुना या दोगुना हो जाता। इसी तर्क के आधार पर कांग्रेस आदि पार्टी का कहना है कि भाजपा सरकार का यह डेढ़ गुना समर्थन मूल्य एक ढकोसला है।
कारखानों में बनी चीजों का लागत मूल्य निर्धारित करते समय कारखाने की जमीन का खर्च क्या हम नहीं जोड़ते हैं ? इस दृष्टि से किसानों को अतिरिक्त लाभ दिया जा सकता है लेकिन इस समय की गई इस घोषणा से भी किसानों को काफी राहत मिलेगी। धान, ज्वार और मक्का जैसे अनाजों की लागत का डेढ़ा मूल्य किसानों को मिलेगा ही लेकिन बाजरे पर 97 प्रतिशत, उड़द पर 62 प्रतिशत और अरहर पर उन्हें 65 प्रतिशत फायदा मिलेगा। इस बढ़ोतरी से सरकार पर 15 हजार करोड़ रु. का नया बोझ पड़ेगा। करोड़ों किसानों पर 15 हजार करोड़ के खर्च और दर्जनभर धन्नासेठों पर लाखों करोड़ रु. डुबो देने में कोई फर्क है या नहीं ?
किसानों को दी गई यह राहत सराहनीय है लेकिन यदि उनकी उपज के दाम बाजार में 10 से 50 प्रतिशत तक गिर गए, जैसा कि होता ही रहता है तो सरकार क्या करेगी ? क्या वह उनकी सारी फसलें खरीद सकेगी ? सरकार के पास ऐसा कोई इंतजाम नहीं है। सरकारी खरीद धान और गेहूं तक सीमित है। आलू, प्याज और टमाटर इस साल कौड़ियों के मोल बिकते दिखे हैं। किसानों को उनकी उपज का डेढ़ गुना दाम वाकई मिल जाए तो यह एक एतिहासिक घटना होगी। जो भी हो, देश के करोड़ों किसानों को इस घोषणा से थोड़ा-बहुत लाभ तो मिलेगा ही मिलेगा।
शिव कुमार मिश्र
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