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जन्मदिन विशेष : फ़िल्म संगीत की अविरल बहती स्वर सरिता- लता मंगेशकर

Desk Editor
28 Sep 2021 6:51 AM GMT
जन्मदिन विशेष : फ़िल्म संगीत की अविरल बहती स्वर सरिता- लता मंगेशकर
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वर्ष 2001 में लताजी को देश के सर्वोच्च अलंकरण "भारत रत्न" से अलंकृत किया गया। हिंदी सिनेमा की वह एक मात्र महिला हैं जिन्हें दादा साहेब फालके पुरस्कार व भारत रत्न सम्मान दोनों मिले हैं। उनसे पहले यह दोनों सम्मान केवल फिल्मकार सत्यजीत रे को ही मिले हैं।

-योगेन्द्र माथुर

लता मंगेशकर नाम है एक जीवित किंवदंती का। पिछले लगभग आठ दशक से भारतीय सिनेमा संगीत के क्षेत्र में गूँज रही लता जी की आवाज एक मानदंड बन चुकी हैं, जिसकी कसौटी पर हर नई गायिका की प्रतिभा का आकलन किया जाता है।

क, ख, ग पढ़ने वाले एक नन्हें बच्चे से लेकर अपनी उम्र की संध्या वेला में पहुँच चुके वृद्ध तक, देहात से लेकर महानगरीय सभ्यता वाले व्यक्ति तक और अनपढ़ से लेकर उच्च शिक्षित व्यक्ति तक लगभग सभी लताजी की आवाज के कायल हैं, यह बात अपने आप मे कम आश्चर्यजनक नही है।

28 सितम्बर 1929 को इंदौर में जन्मीं लताजी आज अपनी उम्र के 92 वर्ष पूर्ण कर रहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज में पहले सी मिठास व खनक बरकरार है जो कि उनकी लगन और कठिन तपस्या का ही परिणाम कही जा सकती है।

लताजी को संगीत विरासत में मिला है। आपके पिता मास्टर दीनानाथ मंगेशकर मराठी रंगमंच के जाने-माने संगीत साधक थे। 3-4 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने लताजी को नियमित रूप से संगीत की शिक्षा देना आरम्भ कर दिया था। सन 1942 में बसंत जोगलेकर की मराठी फिल्म "किती हसाल" में लता जी ने पहली बार गीत गाया था। उनके पिताजी ने बड़ी मुश्किल से इस बात की स्वीकृति दी थी, क्योंकि वे लड़कियों के फिल्मों मकाम करने के विरुद्ध थे। हालांकि फिल्म में यह गाना फाइनल कट से पहले हटा दिया गया। 1943 की मराठी फिल्म "गजा भाऊ" का हिंदी गीत "माता एक सपूत की दुनिया बदल दे...." लता जी का पहला गाना माना जाता है।

लताजी का बचपन संघर्षपूर्ण परिस्थितियों में बीता है। पिता की आकस्मिक मृत्यु के कारण 13 वर्ष की अल्पायु में ही, जब उम्र लिखने-पढ़ने और खेलने-कूदने की होती है, लताजी को घर की तमाम जिम्मेदारियों का भार वहन करना पड़ा। कारण यह कि पाँच भाई-बहनों में लताजी ही सबसे बड़ी थीं। उन्होंने अपने छोटे भाई हृदयनाथ तथा छोटी बहनों आशा ( भोंसले ), उषा, मीना माँ के भरण-पोषण की जिम्मेदारी का निर्वाह बगैर विचलित हुए हिम्मत के साथ किया।

कठिनाइयों व संघर्ष के दिनों में ही लताजी को बसंत जोगलेकर की हिंदी फिल्म "आपकी सेवा में" मिली, जिसमें लताजी ने सर्वप्रथम पार्श्वगीत गाया और यह दिखा दिया कि उनमें एक श्रेष्ठ गायिका के गुण मौजूद हैं। इस फ़िल्म के बाद लताजी को कुछ अन्य संगीतकारों की फिल्में मिलीं, किंतु लता जी को पहचान मिली फ़िल्म "अंदाज" से। इस फ़िल्म में लताजी के गीत काफी पसंद किये गए और लताजी काफी लोकप्रिय हो गईं।

"अंदाज" के बाद " महल" और "बरसात" में गाए गीतों ने लताजी को शिखर पर पहुँचा दिया। फ़िल्म " महल" में खेमचंद प्रकाश के संगीत निर्देशन में गाया गया "आएगा...आएगा...आएगा आने वाला..." लताजी का प्रिय गीत है। मंच पर जब भी वह अपना निजी कार्यक्रम प्रस्तुत करतीं रहीं, तब यह गीत उन्होंने निश्चित रूप से गाया।

अपनी स्वर यात्रा में लताजी नें हर तरह के हजारों फिल्मी, गैर फिल्मी गीत, गजल व भजन गाये हैं, लेकिन पाश्चात्य संगीत पर आधारित गाने नही के बराबर गाये हैं। यदि थोड़े-बहुत गाये भी हैं तो समझ लीजिए कि वह निश्चित ही किसी नवोदित संगीतकार के लड़खड़ाते कदमों को जमाने के लिए सहयोग की भावना से गाये हैं या फिर किसी निर्माता की फ़िल्म को पिटने से बचाने के लिए।

प्रत्येक छोटे-बड़े संगीतकार का लताजी ने साथ दिया है। ऐसा माना जाता रहा कि लताजी के सहयोग के बगैर किसी भी संगीतकार की सफलता अधूरी है। केवल ओपी नैयर ही इस बात के अपवाद रहे। उन्होंने अपने संगीत जीवन में लताजी के एक भी गीत को संगीतबद्ध नही किया लेकिन फिर भी वह करीब 20 वर्षों तक हिंदी फिल्म संगीत की दुनिया में छाए रहे।

लताजी जब भी कोई गीत गाती हैं, उसमें प्राण फूँक देती हैं। उनके स्वरबद्ध किये गए गानों में से अधिकांश समय के मान से कॉफी पुराने हो चुके हैं, लेकिन श्रोता उन्हें पूर्व की तरह ही तरजीह देकर सुनते और गुनगुनाते हैं। लताजी की आवाज के जादू ने कई गीतों को अमर कर दिया है।

29 जनवरी 1963 को दिल्ली के लाल किले की प्राचीर पर शहीद सैनिकों की स्मृति में राष्ट्र को समर्पित एक विशेष कार्यक्रम में लताजी ने संगीतकार सी, रामचन्द्र के संगीत निर्देशन में स्व.प्रदीप के लिखे गीत "ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा याद करो कुर्बानी....." गाया तो लताजी की यह आर्त पुकार सुनकर देश के बच्चे-बच्चे की आँखे भर आईं थी। स्वयं मंच पर उपस्थित प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी अपने आँसू नही रोक पाए थे। अब भी राष्ट्रीय अवसरों पर यह गीत बजाया और सुना जाता है। अब तो लताजी अपनी उम्र के चलते गाना लगभग बंद ही कर चुकी हैं।

गायन के साथ-साथ लताजी ने अभिनय व फ़िल्म निर्माण भी किया है। सन 1942 में पिता की मृत्यु के पश्चात सर्वप्रथम उन्होंने मराठी फिल्म "पहली मंगला गौर" में एक छोटी-सी भूमिका की थी। इसके बाद लगभग आधा दर्जन मराठी व हिंदी अन्य फिल्मों में भी लताजी ने छोटी-मोटी भूमिकाएँ की, किंतु गायन के प्रति गहरा लगाव होने के कारण उन्होंने अपना पूरा ध्यान इसमें ही लगाया। वैसे लताजी ने फ़िल्म निर्माण भी किया है । लताजी द्वारा निर्मित फिल्में 1955 की "कंचन" व 1990 की "लेकिन" ( दोनों हिंदी ) हैं। 1955 में ही उन्होंने संगीतकार सी.रामचन्द्र के साथ मिलकर एक अन्य हिंदी फ़िल्म "झांझर" का भी निर्माण किया। इससे पूर्व वह एक मराठी फ़िल्म का भी निर्माण कर चुकीं थीं।

बहुत कम लोग जानते हैं कि पार्श्वगायन, अभिनय व फ़िल्म निर्माण के साथ-साथ उन्होंने फिल्मों में संगीत भी दिया। उन पर प्रकाशित एक पुस्तक " लता मंगेशकर, इन हर ऑन वॉइस" के अनुसार उन्होंने मराठी फिल्म "साधी मानसं" ( 1955 ) में आनंदघन नाम से संगीत दिया। वैसे उन्होंने 4 अन्य मराठी फिल्मों फिल्मों " में भी संगीत निर्देशन किया। "राम राम पाव्हना" में उन्होंने मराठी गीत भी लिखा।

लताजी को अब तक कई सम्मान व पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। फ़िल्म "मधुमती" ( 1958 ), "बीस साल बाद" (1962 ), "खानदान" ( 1965 ) व "जीने की राह" ( 1969 ) के लिए चार बार "फ़िल्म फेयर अवार्ड" एवं फ़िल्म "परिचय" ( 1972 ), "कोरा कागज" ( 1975 ) व "लेकिन" ( 1990 ) के लिए तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार के अतिरिक्त सन 1969 में भारत सरकार उन्हें "पद्म भूषण", सन 1989 में "दादा साहेब फालके पुरस्कार" व सन 1999 में "पद्म विभूषण" अलंकरण से सम्मानित कर चुकी है। वर्ष 2001 में लताजी को देश के सर्वोच्च अलंकरण "भारत रत्न" से अलंकृत किया गया। हिंदी सिनेमा की वह एक मात्र महिला हैं जिन्हें दादा साहेब फालके पुरस्कार व भारत रत्न सम्मान दोनों मिले हैं। उनसे पहले यह दोनों सम्मान केवल फिल्मकार सत्यजीत रे को ही मिले हैं। इनके अलावा अन्य ढेरों पुरस्कार व सम्मान लता जी को मिल चुके हैं। लता जी अपने जीवन में मात्र एक दिन ही स्कूल गईं है लेकिन विश्व की आधा दर्जन से अधिक विश्वविद्यालय उन्हें मानद उपाधि से अलंकृत कर चुके हैं।

मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति विभाग द्वारा लताजी के सम्मान में सन 1984 से संगीत को लोकप्रिय बनाने के लिए प्रतिवर्ष 1 लाख रुपये का "लता मंगेशकर पुरस्कार" दिया जा रहा है। फ़िल्म संगीत को समृद्ध करने के लिए उल्लेखनीय योगदान देने वाले गायक-गायिकाओं व संगीतकारों को यह पुरस्कार दिया जाता है। विश्व मे सर्वाधिक गीतों की रिकार्डिंग के लिए सन 1974 में लताजी का नाम विश्व रिकार्ड की पुस्तक "गिनीज बुक" में भी अंकित हो चुका है। 20 भाषाओं के लगभग 8 हजार गानों को लता जी ने अपनी आवाज दी है।

फिल्मों में गायन के साथ-साथ लताजी मंचीय कार्यक्रमों में भी सक्रिय रहीं। दुनिया के कई देशों में लताजी मंच के सफल कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुकी हैं।

स्वर कोकिला लताजी की 91 वीं वर्षगाँठ के अवसर पर सभी सिने संगीत प्रेमी उनके स्वस्थ व दीर्घायु जीवन की मंगलकामना करते हैं। साथ ही यह कामना भी करते हैं कि यह स्वर सरिता सदैव अविरल बहती रहे।

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