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प्रेस क्लब में 3 घंटे तक खौफनाक तांडव, माई ! मैं मर जाउंगी, लेकिन नही जाउंगी नारकीय ससुराल

महेश झालानी
11 May 2018 7:35 AM GMT
प्रेस क्लब में 3 घंटे तक खौफनाक तांडव, माई ! मैं मर जाउंगी, लेकिन नही जाउंगी नारकीय ससुराल
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माई, मुझे ससुराल वापस मत भेजो। वह घर नही, कसाईखाना है। रोज लात-घूसों की मार अब सही नही जाती। कोई सम्मानभरी जिंदगी और ना ही भरपेट खाना। अगर ससुराल इसी को कहते है तो मुझे नही जाना उस नरक में। बार-बार मां के आगे मासूम गीता घिघियाती अपनी व्यथा रो रोकर सुना रही थी। गीता के शरीर पर अनगिनत घाव, टूटी चूड़िया और मौत का मंजर सामने था। ससुराल के नाम पर ऐसी कपकपाहट हो रही थी, मानो जीते जी नरक की ओर जबरन धकेला जा रहा हो।

पिंकसिटी प्रेस क्लब आज कमोबेश गीता के ससुराल जैसा गुंडागर्दी का अड्डा बन गया है। मारपीट, गाली-गलौच, हत्या की धमकी और साथ मे भारी असला, यही नीयति है इस क्लब की। क्लब में हो रही उठा-पटक और सरे आम मारपीट को आज स्व भैरोसिंह देखते तो शायद वे क्लब को बेश कीमती भवन खैरात में नही देते। उन्होंने क्लब को आमोद-प्रमोद के लिए यह भवन दिया था। मगर आज यह क्लब गुंडागर्दी के अड्डे में तब्दील होकर रह गया है। मारपीट, गाली-गलौच और शरीफ सदस्यो के मुँह पर ताला, इस क्लब की तकदीर बन गई है।

क्लब में गुरुवार यानी 10 मई, 2018 को जो खौफनाक मंजर देखने को मिला, उससे मेरी क्या, क्लब में उपस्थित सब सदस्यो और कर्मचारियों की रूह कांप गई। करीब 2-3 घंटे तक यह खौफनाक हंगामा चलता रहा। एक सदस्य अनिल सिंघल को कुछ लोगो ने टारगेट बनाते हुए उनके साथ घण्टे भर से ज्यादा समय तक जान से मारने की धमकी दी और गालियों की बौछार। मेरी गलती यह थी कि आपसी लड़ाई या मतभेद को क्लब में नही घसीटा जाए। लेकिन आंखों पर खून सवार लोगो ने ना मुझे बख्शा और ना ही सिंघल को। एक आध लोगो ने बीच-बचाव या हस्तक्षेप की कोशिश भी की, लेकिन गुंडे किस्म के लोगो के रौद्र रूप को देखकर लोग खौफ खाकर सहम गए । क्लब के इतिहास में ऐसा खौफनाक, डरावना, आतंकित करने वाला खूनी मंजर इससे पहले कभी नही देखा । क्लब के इतिहास के पन्नो में कल की शर्मनाक और बेहूदी हरकत को स्याह लफ्जो में अंकित किया जाएगा ।

झगड़ा और मारपीट का ऐतिहासिक दृश्य क्यो उतपन्न हुआ, निश्चय ही इसके पीछे की कहानी तो कुछ और होगी । लेकिन जो कहानी उभरकर आई, वह यह थी कि अनिल सिंघल को पत्रकार नही मानते हुए उसे जबरन क्लब से अविलम्ब बाहर निकालने का कुत्सित प्रयास किया गया । मैंने जब इस तरीके पर आपत्ति जाहिर की तो वे मेरे उपर ही पिल पड़े । एक मिनट के लिए मैं मान लेता हूँ कि अनिल सिंघल पत्रकार नही है । यह भी मान लेता हूँ कि वह अनपढ़ और निरक्षर है । इस बात को मानने में भी मुझे कोई गुरेज नही है कि उसका पत्रकारिता से दूर दूर का भी वास्ता नही है । लेकिन सिंघल को जबरन बाहर धकेलने वालो से यह अवश्य पूछना चाहूँगा कि किसी सदस्य को जबरन निकालने का अधिकार इन बेवड़ो को किसने दिया है ? गुंडागर्दी का तांडव मचाने वालो को यह मालूम होना चाहिए कि जब क्लब खुला था, तब अनिल सिंघल, स्व पूरन जोशी, स्व श्रीप्रकाश और मैंने तन-मन-धन से इस क्लब को सिंचित किया था । उस समय किसी ने यह क्यो नही पूछा कि सिंघल तुम यहाँ क्या कर रहे हो । जिस बार रूम में खड़े होकर गुंडई तत्व मारपीट का मंजर दिखा रहे थे, उसकी एक-आध ईंट लगाने में सिंघल का भी बहुत बड़ा योगदान है ।

सिंघल को क्लब से अविलम्ब जबरिया निकालना चाहिए । लेकिन उससे पहले क्लब को पत्रकारिता की परिभाषा भी तय करनी होगी । शुरुआत मैं अपने से ही करना चाहता हूँ । पिछले दस-पंद्रह साल से मैं बहुत ज्यादा पत्रकारिता में सक्रिय नही हूँ । तो क्लब मुझे निकाल देगा ? अगर क्लब मुझे निकालता है तो पत्रकार कम और पेशेवर लोग ज्यादा काबिज हो जाएंगे । अगर मैं पत्रकार नही हूँ तो राधारमण और महासचिव मुकेश चौधरी पत्रकार कैसे हो सकते है ? फाइल कॉपी छापने से कोई पत्रकार नही बन जाता है । रात को जगदीश शर्मा, सत्य पारीक और बृहस्पति शर्मा की पत्रकारिता और उनके व्यवहार को लेकर अनेक लोगो ने सवाल उठाए ।

जगदीश शर्मा के बारे में कहा गया कि वे रिलाइंस कम्पनी के वेतनभोगी कर्मचारी है । हो सकता है कि उनकी बात सही हो । जिस व्यक्ति की जिंदगी के 45 साल से ज्यादा पत्रकारिता को समर्पित रहे हो, आज उनहे एकाएक उनकी पत्रकारिता पर सवाल क्यों ? जगदीश शर्मा अपने आप मे पत्रकारिता की एक संस्थान है । दर्जनों लोग उनके अधीन कार्य कर नए मुकाम हासिल कर चुके है । मैंने भी उनके मार्गनिर्देशन में बहुत कुछ सीखा है । वे आदर्श और पथ प्रदर्शक है । जब उनको ही पत्रकार नही माना जा रहा है तो मेरी बिसात ही क्या है ? इस हिसाब से आज की तारीख में प्रवीण चन्द छबड़ा, मिलापचन्द डांडिया, ईशमधु तलवार, सीताराम झालानी, वशिष्ठ कुमार, एफसी जैन, चिरंजीव जोशी सरोज, राजेन्द्र बोड़ा, स्तय पारीक और बृहस्पति शर्मा आदि भी पत्रकार नही है ।

रात को जो मुझे जो बात अखरी, वह यह थी कि क्लब में 3-4 घण्टे तक खौफनाक तांडव चलता रहा, मेज पर मुक्के मारकर यह धमकी दीगई कि मेरे सर पर खून सवार है । क्या यही सबकुछ सुनने के लिए लोग क्लब जाते है । लगता था कि सारा कांड प्रायोजित था । पदाधिकारी क्यो नही आये । महासचिव मुकेश चौधरी रोजाना 12 तक रहते है । निखिलेश का सटक जाना, रघुवीर जंगिड की चुप्पी और मांगीलाल के प्रयासों के बाद भी बेकाबू होकर घण्टो गाली गलौच करना, कोई गहरे षड्यंत्र की ओर इशारा करती है ।

मेरा सभी सम्मानीय सदस्यो से आग्रह है कि आपमे अपमान सहने, मारपीट करने की क्षमता, गाली निकालने का तजुर्बा और प्रतिष्ठा को धूल में मिलवाने का माद्दा है तो क्लब अवश्य आइये । वरना यहां आए दिन खौफनाक मंजर दिखाई दे । किसी रोज आपको यह भी सुनने को मिले कि किसी "असली" पत्रकार ने "नकली" पत्रकार से अध्यक्ष बने राधारमण की ही पिटाई करदी । कल के मंजर को देखते हुए यह सबकुछ संभव है ।
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