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इस लेख में लेखक ने अपने विचार रखें है.
पुरानी कहावत है कि बंदर के हाथ उस्तरा नहीं लगना चाहिए । इसका अभिप्राय यह है कि मूर्ख व्यक्ति के हाथ कोई शक्ति या अधिकार नहीं आना चाहिए क्योंकि अपनी मूर्खता के वशीभूत वह उसका सदुपयोग न करके दुरुपयोग कर सकता है जिसका परिणाम उसके लिए ही नहीं, समाज और दूसरों के लिए भी हानिकारक हो सकता है।
इसी बात को आधुनिक संदर्भों में मैं यूँ कहना चाहता हूँ कि किसी भी विभाग या संगठन या संस्था या शासन के सर्वोच्च पद पर कोई अपरिपक्व और अदूरदर्शी व्यक्ति नहीं पहुँचना चाहिए क्योंकि सर्वोच्च पद स्वाभाविक रूप से बहुत अधिक अधिकार-सम्पन्न होता है और अविवेकी व्यक्ति के हाथ असीमित अधिकारों का लगना बंदर के हाथ उस्तरा लगने के सादृश्य ही होता है। और यदि कोई विवेकहीन व्यक्ति भारत जैसे विशाल और विविध देश के सर्वोच्च कार्यकारी के पद पर जा बैठे यानी कि प्रधानमंत्री बन जाए तो उसके कार्यकलाप जनता, समाज और राष्ट्र के लिए कोढ़ में खाज ही सिद्ध होते हैं।
दुर्भाग्यवश आज कई संस्थानों, संगठनों, क्लब, सरकारी दफ्तर और देश के शासन में यही हो रहा है। नासमझ, गंवार, अज्ञानी और मूर्ख लोग आज उस्तरे से लैस है। ये शासक खुद तो लहूलुहान हो ही रहे है, देश की जनता, संगठन के सदस्य भी खून से लथपथ है। बन्दर को ना तो उस्तरे की अहमियत का पता है और ना ही कमी का। उसका कार्य उस्तरा चलाना है। लिहाजा उसके घातक और भयावह परिणाम सामने आ रहे है। आप किसी बन्दर के हाथ में उस्तरा देने से पहले उसके संभावित परिणामो का आकलन अवश्य करले। अन्यथा वह उस्तरा आपके लिए ही कष्टकारी साबित हो सकता है।
महेश झालानी
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