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बाप ने कराया था चीरहरण, बेटा ने छुए दूर से चरण, बुआ ने कर लिया वरण।

बाप ने कराया था चीरहरण, बेटा ने छुए दूर से चरण, बुआ ने कर लिया वरण।
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भतीजे को हुआ 'हरावना' बुखार तो बुआ लगाएंगी नैया पार....यह तो है वोटों का व्यापार।
एक पुरानी कहावत है कि प्रेम और जंग में सब जायज है वर्तमान में यह कहावत खद्दर धारियों के लिए अपना स्वरूप बदल कर "राजनीति और लाभनीति" में सब जायज है हो गयी है ।
कभी लालू को जी भर भर कोसने वाले नीतीश राजनीतिक फायदे के लिए लालू से गलबहियां कर लिए तो कभी लालू से दामन छुड़ा कर भाजपा को कोसने वाले नीतीश कुमार भाजपा के गोद मे जा बैठे ऐसे तमाम उदाहरण हैं जिससे तो यही प्रतीत होता है कि वर्तमान में राजनेता कुर्सी पाने के लिए कुछ भी करेगा टाइप के विचार रखते हैं मतलब नीति सिद्धान्तों से इनका सरोकार न होकर लोक विधानसभा सीटों तक ही सीमित हो गया है आखिर हो भी क्यों जब सोच यह हो कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त दुश्मन नही होता ।
पहले ना नुकुर करने वाली मायावती समर्थन की आस में टुकुर-टुकुर देख रहे भतीजे अखिलेश को अंततः हाँ कर ही दिया इस सहमति से सपा खेमे में होली के बाद जश्न का माहौल जैसा हो गया है सपा के घोषित प्रत्याशी दिन में जीत के सपने से अपनी आंखों में सुनहरे सपने सजोने लगे हैं वहीं लोकसभा में अंडे दे चुकी दम्भी हाथी भी थोड़ी डरी हुई प्रतित होती है वरना इतनी जल्दी सरेंडर की उम्मीद बहिन जी से किसी को नही है।
इसका कारण यह है कि अमितशाह मोदी जी ने जो अश्वमेघ यज्ञ वाला चुनावी घोड़ा छोड़ा था कई प्रदेशों को फतह करते हुए नार्थ ईस्ट तक भगवा झंडा लहरा दिया जहां के समीकरण कभी भाजपा के अनुकूल रहे ही नही घूमते घामते वही घोड़ा 2019 में उत्तर प्रदेश में फिर फतह के लिए आएगा और पिछले बार की तरह इस बार भी टीपू भैया यानी अखिलेश यादव परिवारिक सीटों तक सीमित न रह जाएं और बहिन जी को पुनः मुँह की न खानी पड़े इसलिए उसके पहले ही उपचुनाव में सपा बसपा के साथ रहने का क्या इफेक्ट होता है इसे परख लेना चाहती हैं नही तो बसपा के पास एकला चलो का विकल्प तो है ही ।
जितने पर बसपा यहबसपा यह भी कह सकती है की हमारे समर्थन के ही कारण सपा ने यह सीट निकाल पायी है और हारने के बाद यह कहना आसान होगा कि हमारे बेस वोटरों ने सपा को वोट दिए थे मगर सपा कैंडिडेट ही कमजोर निकले ।
वहीं पिछले चुनाव यूपी को यह साथ पसन्द है वाले नारे के साथ कांग्रेस से गठबंधन के बाद धरासायी हुए अखिलेश को यह उम्मीद है कि सपा के बेस वोटर यादव मुस्लिम और बसपा के बेस वोटर दलित मुस्लिम तथा अन्य पिछड़ी जातियों कुछ सवर्णों ने साथ दिया तो उपचुनाव में सपा का परचम लहराएगा।
बहरहाल जो भी हो दलित यादव मुस्लिम गठजोड़ भाजपा के पेशानी पर बल देने के लिए काफी है हालांकि अमित शाह मोदी जी मौका देखकर चौका मारते हुए हिन्दू कार्ड खेलने से नही चूकेंगे क्योंकि सपा बसपा का भविष्य में होने वाले गठबंधन को यहीं तोड़कर भविष्य के लिए अलग थलग करना इनका उद्देश्य होगा ताकि यह दोनों पार्टियां एक साथ होकर चुनौती न बन सकें।
मगर एक बात जनता को कायदे से समझ लेनी चाहिए कि राजनीतिक पार्टियां अपने लाभ के किसी भी हद तक जा सकती हैं इसलिए कभी दावे के साथ नही कहना चाहिए कि यह नही हो सकता यह राजनीति मेरे भाई यहां सब कुछ सम्भव है यहां शेर बकरी एक साथ एक घाट पर पानी पी सकते हैं यहां हाथी पर साईकिल बैठ सकती है और साइकिल को हाथी धक्का दे सकती ।
फिलहाल नतीजों का इंतजार करें कमल पड़ता है भारी या जनता करेगी साईकिल की सवारी।
विनय मौर्य
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