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मिशन 150 अमित शाह का है लेकिन, इसे पूरा करने में 22 कांग्रेसी भी लगे हैं

मिशन 150 अमित शाह का है लेकिन, इसे पूरा करने में 22 कांग्रेसी भी लगे हैं
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हर्षवर्धन त्रिपाठी के कलम से

2014 के लोकसभा चुनाव में गुजरात की जनता ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए, सभी सीटों को, बीजेपी की झोली में डाल दिया था। सभी 26 सीटें जिताकर गुजरात ने नरेंद्र मोदी की दावेदारी पक्की कर दी थी। गुजरात में इसके पहले 1980 में लगभग ऐसा हुआ था जब, कांग्रेस को 26 में से 25 सीटें गुजरात ने दे दीं थीं। उसके बाद 1996 से लगभग यही होता रहा कि ज्यादा सीटें बीजेपी के पास और कम सीटें कांग्रेस के पास। 2009 और 2014 के चुनावों में तो परिणाम ही नहीं बदले। बीजेपी के पास 14 और कांग्रेस के पास 12 लोकसभा सीटें रहीं। फिर ऐसा क्या हो गया कि अचानक 2014 में 26 की 26 सीटें गुजरात ने बीजेपी को दे दीं।


राजनीतिक विश्लेषक इसकी सबसे बड़ी वजह एक गुजराती का प्रधानमंत्री बनने की राह पर आगे बढ़ना देखते हैं। लेकिन, गुजरात में भले ही पिछले लगभग 22 सालों से बीजेपी की सरकार है, कांग्रेस यहां खत्म नहीं है। कांग्रेस का अच्छा वोटबैंक है और कांग्रेस के बड़े मजबूत नेता हैं। ऐसी कई सीटें हैं, जहां बीजेपी चुनाव नहीं जीत पाती। और, अमित शाह ने लोकसभा 2014 में मिशन 26 पूरा करने के लिए इसी को साध लिया। उन्होंने कांग्रेस की मजबूत सीटों पर कांग्रेसियों को ही बीजेपी के निशान पर चुनाव लड़ा दिया। बारदोली लोकसभा सीट पर 2009 में कांग्रेस काबिज थी। कांग्रेस के तुषार अमरसिंह चौधरी करीब 48% मत पाकर सांसद बने थे, बीजेपी को करीब 41% मत मिले थे। 2014 में बीजेपी ने कांग्रेस नेता प्रभु वासवा को टिकट दे दिया। वासवा ने करीब 52% मत हासिल करके कांग्रेस के अमरसिंह चौधरी को हरा दिया। इसी फॉर्मूले के तहत जामनगर, पोरबंदर, खेड़ा और सुरेंद्रनगर के कांग्रेसी नेताओं को लोकसभा चुनाव के तुरंत पहले बीजेपी ने टिकट दिया और सीट बीजेपी की झोली में आ गई। पोरबंदर के ताकतवर कांग्रेस सांसद विट्ठलभाई रडाडिया का बीजेपी में आना कल्पना जैसा ही था।

सानंद से चुने गए कांग्रेसी विधायक करमसी पटेल ने अहमद पटेल के राज्यसभा चुनाव के दौरान हाथ का साथ छोड़ दिया और कमल का फूल थाम लिया। अब करमसी पटेल के बेटे कनुभाई पटेल को बीजेपी ने अपना प्रत्याशी बनाया है। ये एक नई किस्म की राजनीति है, जिसे अमित शाह ने साध लिया है। कोई भी राजनीतिक विश्लेषण इस पहलू को सही नजरिये से नहीं देख पाता है। उत्तर प्रदेश में ऐसी सीटों पर जहां दूसरे दलों के मजबूत प्रत्याशी थे, उन्हें अमित शाह ने बीजेपी में लाकर सीट जीत ली थी। क्या गुजरात में भी राजनीतिक विश्लेषक इस पहलू की अनदेखी कर रहे हैं।
इसीलिए अब इसी फॉर्मूले पर विधानसभा चुनावों में भी काम कर रहे अमित शाह की इस रणनीति का विश्लेषण ठीक से करने की जरूरत है। पिछले विधानसभा चुनावों के बाद से अब तक कांग्रेस छोड़कर आए 22 नेताओं को बीजेपी ने टिकट दिया है। इसमें से 5 मोदासा के भीखूसिंह परमार, राधनपुर के लविंगजी ठाकोर, दाहोद के दन्हैयालाल किशोरी, वडगाम के कन्हैयालाल किशोरी और महुधा के भरतसिंह परमार, नवंबर 2017 में ही बीजेपी में शामिल हुए हैं। इसके अलावा इसी साल अगस्त महीने में बीजेपी में शामिल होने कांग्रेसियों- मानसिंह चौहान, रामसिंह परमार, तेजश्री पटेल, अमित चौधरी, धर्मेंद्र सिंह जाडेजा, सानंद के कांग्रेसी विधायक के बेटे कनुभाई पटेल और राघवजी पटेल को बीजेपी ने टिकट दे दिया है।
गोधरा से टिकट पाए सी के राउलजी भी कांग्रेस से बीजेपी में दोबारा अगस्त महीने में ही आए हैं। हालांकि, सीके राउलजी पुराने भाजपाई ही हैं और 1991 में वे इसी सीट से विधायक चुने गए थे। राउलजी शंकरसिंह वाघेला के नजदीकी माने जाते हैं। गोधरा में करीब 36% ओबीसी और 21% मुस्लिम हैं। इस सीट पर पटेल और दलित 5% से भी कम हैं। 10% आदिवासी मत महत्वूपर्ण हैं और दूसरी सभी जातियां करीब 21% हैं। इसीलिए अब ये देखना होगा कि कांग्रेसी से भाजपाई बने ये 22 कांग्रेसी अमित शाह के मिशन को आगे बढ़ाने में कितने मददगार होते हैं।

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