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मूर्ति बनाई ही क्यों? फर्जी नास्तिकों? नपुंसकों?

मूर्ति बनाई ही क्यों?  फर्जी नास्तिकों? नपुंसकों?
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लेनिन की मूर्ति टूटी, अच्छा हुआ। मूर्तियां टूटनी ही चाहिए, चाहे किसी की हों। मानवीय मूल्यों और आदर्शों के प्रणेताओं की मूर्ति बनाना सबसे बड़ा अपराध है। मूर्तियां आदर्शों को निगल जाती हैं। फिर उनके ऊपर शांति के कबूतर सदियों बीट करते हैं।
अफसोस इस बात का होना चाहिए कि मूर्ति हम क्यों नहीं तोड़ सके। आदर्श मूर्तिभंजक तो हम थे! बुद्ध से लेकर कबीर, मार्क्स, लेनिन, गांधी, फुले, पेरियार, ओशो और अंबेडकर सबकी प्रतिमाएं बनाकर हम सबके आदर्शों को घोल कर पी गए। अब मूर्ति टूटी है तो दर्द हो रिया है. मूर्ति बनाई ही क्यों? अपने बीच से दूसरा लेनिन क्यों नहीं पैदा कर सके आज तक? फर्जी नास्तिकों? नपुंसकों?

आपको बता दें कि बीते कई दिनों से मूर्ति टूटने का सिलसिला चल रहा है. पहले लेनिन फिर पेरियार , अब श्यामाप्रसाद मुखर्जी और अम्बेडकर की मूर्तियाँ तोड़ दी गई, अभी तो शुरुआत है. देखिये आगे आगे होता है क्या और टूटता है क्या?
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