Archived

विकास यात्रा : नाकामी को ढकने का पैंतरा तो नही...

विकास यात्रा : नाकामी को ढकने का पैंतरा तो नही...
x
छत्तीसगढ़ निर्माण को अट्ठारह वर्ष होने को अपनी तरुणाई में इस राज्य ने कुछ सुख देखें हैं तो बहुत से दुख को भी झेला है।

विकास साहू

छत्तीसगढ़ निर्माण को अट्ठारह वर्ष होने को अपनी तरुणाई में इस राज्य ने कुछ सुख देखें हैं तो बहुत से दुख को भी झेला है। भाजपानीत रमन सरकार विकास के दावे करते हुए हुए पूरे राज्य में"विकास यात्रा" निकाल रहे हैं जिसका मकसद अपनी सरकार की नीतियों, योजनाओं तथा कार्यक्रमों को जनता के समक्ष दावे करती है कि हमारा इतना प्रतिशत और प्रभावी क्रियान्वयन किया है । यह एक चुनावी वोट साधने का अच्छा तरीका भी है। क्या वाकई खनिज संसाधनों से भरपूर और धान का कटोरा कहे जाने वाला राज्य छत्तीसगढ़ के अंतिम व्यक्ति तक विकास का लाभ पहुंचा है सरकार बड़े बड़े दावे कर रही है या घोटाले और भ्रष्टाचार में कहीं विलुप्त हो रही है, यह सवाल भी है और सच्चाई भी कि छत्तीसगढ़ की जनता अभी तक मूलभूत सुविधाओं से वंचित क्यों है । छत्तीसगढ़ बेरोजगारी,गरीबी, अशिक्षा, अपराध, नशाखोरी, नक्सलवाद, आउटसोर्सिंग,पलायन, प्रशासनिक अत्याचार, फर्जी मुठभेड़, किसान आत्महत्याएं जैसी कई समस्याओं से जूझ रही है

किसान आत्महत्याएं और पलायन
रमन सरकार किसानों के लिए शुन्य प्रतिशत पर ब्याज मुहैया कराने की कार्यक्रम का बार-बार जिक्र करती परन्तु यही सरकार1500 रूपए समर्थन मूल्य और300बोनस देने का वादा कर पंद्रह सालों से किसानों को सांत्वना देते ही आ रही है जिससे किसानों को आत्महत्या करने पढ़ रही है साथ ही दूसरे राज्यों में रोजगार के लिए पलायन कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में लगभग ढाई वर्ष में 1271 किसानों ने आत्महत्या की है. साथ हर साल रोजगार की तलाश में अपना गांव-घर व परिजनों को छोड़कर छत्तीसगढ़ के हजारों अन्य प्रदेशों में पलायन करते हैं। प्रदेश के अधिकतर जिले पलायन से प्रभावित हैं। बेरोजगारों का प्रदेश बन गया है छत्तीसगढ़।

उद्योगों के लिए कृषि भूमि अधिग्रहित करने से खेतिहर मजदूरों व छोटे किसानों के बेरोजगार होने और इन उद्योगों में स्थानीय के बजाय बाहरी लोगों को रोजगार मिलने से भी प्रदेश में बेरोजगारी बढ़ रही है। योजना के अंतर्गत गांव-गांव में तालाब गहरीकरण, भूमि समतलीकरण, मेंढ़ बंधान, डैम एवं सड़क निर्माण आदि कार्य कराए जा रहे हैं. चाहे वह ज़िला मुख्यालय के क़रीब के गांव हों या सुदूर वनांचल, काम उपलब्ध कराने का मक़सद यही है कि लोग काम की तलाश में घर-परिवार और गांव छोड़कर न जाएं, लेकिन करोड़ों रुपये ख़र्च होने के बाद भी यह योजना लोगों को ओर आकर्षित नहीं कर पा रही है. मुख्यमंत्री के गृह ज़िले कबीरधाम में आज भी राजनांदगांव ज़िले से श्रम विभाग संचालित हो रहा है

ग्रामीणों को 100 दिन रोज़गार उपलब्ध कराने के दावों और वादों के साथ चलाई जा रही महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना को लागू हुए चार वर्ष हो गए हैं, किंतु पलायन रुकने का नाम नहीं ले रहा है. ग्रामीणों को रोज़गार उपलब्ध कराने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की ओर से पैसा तो मिल रहा है, बावजूद इसके छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों से रोज़गार की तलाश में लोगों का पलायन जारी है. मुख्यमंत्री के गृह ज़िले में रोज़गार गारंटी योजना के अंतर्गत गांव-गांव में तालाब गहरीकरण, भूमि समतलीकरण, मेंढ़ बंधान, डैम एवं सड़क निर्माण आदि कार्य कराए जा रहे हैं. चाहे वह ज़िला मुख्यालय के क़रीब के गांव हों या सुदूर वनांचल, काम उपलब्ध कराने का मक़सद यही है कि लोग काम की तलाश में घर-परिवार और गांव छोड़कर न जाएं, लेकिन करोड़ों रुपये ख़र्च होने के बाद भी यह योजना लोगों को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पा रही है. मुख्यमंत्री के गृह ज़िले कबीरधाम में आज भी राजनांदगांव ज़िले से श्रम विभाग संचालित हो रहा है । मनरेगा के अंतर्गत काम न मिलने की दशा में बेरोज़गारी भत्ता दिए जाने का प्रावधान है, किंतु ज़िले में आज तक किसी को बेरोजगारी भत्ता नहीं मिला, क्योंकि किसी ने काम की मांग ही नहीं की. योजना के तहत पंजीकृत परिवार के सदस्यों को ग्राम या जनपद पंचायत में काम के लिए आवेदन करना पड़ता है, उसी आधार पर कार्यवाही करके काम उपलब्ध कराया जाता है. संबंधित ग्राम पंचायत में काम न होने की दशा में समीपस्थ ग्राम पंचायत में काम उपलब्ध कराया जाता है. पिछले साल रोजगार की तलाश में अकेले जांजगीर-चांपा जिले के60 हजार पलायन कर गए थे । राज्य ने600 करोड़ मनरेगा मजदूरों को अब वितरित नही किया है मुख्यमंत्री के गोद लिए गांव के मजदूरों को रोजी आवंटित नही हुई है। राज्य सरकार ने मुआवजा वितरण के लिए ऐसी शर्तों को बनाया था कि ज्यादातर सूखा प्रभावित किसान राहत राशि से बाहर हो गए. सयुक्त परिवारों में रहने वाले 25 एकड़ तक के कई छोटे किसान परिवारों की 20 से 30 फीसदी से ज्यादा फसल खराब होने पर भी उनका नाम राहत सूची में नहीं हैं. वहीं, सिंचाई के दौरान बिजली आपूर्ति में भी भारी कटौती की गई थी. हालत यह है कि किसानों के पास खेतों में बोने के लिए तक बीज नहीं बचे. इसे देखते हुए अगले साल बुआई की उम्मीद पर भी पानी फिरता दिख रहा है.राज्य की रमन सिंह सरकार ने केंद्र नरेन्द्र मोदी सरकार से सूखा राहत के लिए छह हजार करोड़ रुपए मांगे थे. केंद्र ने 12 सौ करोड़ रुपए का राहत पैकेज आंवटित किया. राज्य सरकार ने करीब 800 करोड़ रुपए की राशि सूखा पीड़ित किसानों को मुआवजा बांटने के लिए रखी. पड़ोसी राज्य के मलकानगिरि में 350 रुपये प्रति सैकड़ा की दर से खरीद होती है. दर सही नहीं मिलने से छत्तीसगढ़ के संग्राहक मलकानगिरि जाकर तेंदूपत्ता बेच रहे हैं.

निवेश व बेरोजगारी फिसड्डी
छत्तीसगढ़ निवेश के मामले में फिसड्डी साबित हो रहा है. राज्य के मंत्री और अधिकारी निवेश लाने के नाम पर चाहे जितने विदेश दौरे और करोड़ों रुपये के आयोजन कर लें, लेकिन निवेशक छत्तीसगढ़ में नहीं आ रहे हैं. यह दावा भारत सरकार के ही वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय का है.वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग ने निवेशकों को लेकर आंकड़े जारी किए हैं. ये ताजा ताजा आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल भर में भारत में 3.95 लाख करोड़ रुपये के निवेश के प्रस्ताव आये हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ में महज 0.65 फीसदी लोगों ने दिलचस्पी दिखाई. आंकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ से बेहतर स्थिति तो झारखंड की रही है. जहां 3.09 फीसदी निवेश हुआ. पूरे देश में सबसे ज्यादा निवेश कर्नाटक में 38.48 फीसदी हुआ है, लेकिन प्रदेश की भाजपा सरकार छत्तीसगढ़ में निवेश को बेहतर स्थिति में मान रही है. अगर औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग के ताजा आंकड़ों पर ध्यान दें तो कर्नाटक- 38.48 प्रतिशत, गुजरात- करीब 20.0 प्रतिशत, झारखंड- 3.09 प्रतिशत, मध्य प्रदेश- 1.81 प्रतिशत, छत्तीसगढ़- 0.53 प्रतिशत निवेश हुआ है.


सरकारी आंकड़ों के अऩुसार छत्तीसगढ़ में पंजीकृत शिक्षित बेरोजगारों की संख्या 19 लाख 53 हजार 5 सौ 56 है. इस तरह से छत्तीसगढ़ की करीब 13 फीसदी आबादी के पास कमाई का कोई जरिया नहीं है. गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा में पेश आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 के अनुसार छत्तीसगढ़ में प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक आमदनी वित्तीय वर्ष 2015-16 के त्वरित अनुमानों के अनुसार 84 हजार 767 रूपए दर्ज की गई है. यह चालू वित्तीय वर्ष 2016-17 में बढ़कर 91 हजार 772 रूपए होना अनुमानित है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 8.26 फीसदी अधिक होगी. एक तरफ सरकार द्वारा राज्य में प्रति व्यक्ति औसत आय में वृद्धि होने का दावा किया जा रहा है दूसरी तरफ आबादी के 13 फीसदी के हिस्से में नौकरी तक नहीं है । अनुमान के अनुसार पंजीकृत और अपंजीकृत बेरोजगारों की कुल संख्या 32 से 35 लाख के बीच है। ये स्थिति तब है, जब बेरोजगारी दूर करने के लिए राज्य सरकार मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना, लाइवलीहुड कॉलेज और रोजगार मेला लगा रही है। राज्य सरकार शिक्षित बेरोजगारों को पहले 500 स्र्पए मासिक भत्ता देती थी। 2013-14 में भत्ते को बढ़ाकर 1000 स्र्पए कर दिया गया था। 2010-11 में 4144, 2011-12 में 3461, 2012-13 में 7298, 2013-14 में 9709, 2014-15 में 9579 शिक्षित बेरोजगारों को भत्ता दिया गया था। 20 नवंबर 2015 से बेरोजगारी भत्ता बंद कर दिया गया।

लचर शिक्षा व्यवस्था
छत्तीसगढ़ में सालाना पांच हजार करोड़ रुपए का खर्च करने के बाद भी यहां की शिक्षा व्यवस्था बदहाल स्थिति में है। हालात यह हैं कि छठवीं के विद्यार्थी को तीसरी कक्षा का का भी ज्ञान नहीं और आठवीं कक्षा का विद्यार्थी पांचवीं की किताब भी नहीं पढ़ सकता। 11 फीसदी स्कूलों में कम्प्यूटर तो है, लेकिन बच्चे उसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। यह खुलासा बुधवार को जारी असर-2016 (एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट) में हुआ है। सभी राज्यों में सर्वे के बाद संस्था प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, छत्तीसगढ़ में इस आयु वर्ग के बच्चों को स्कूल में दाखिला कराने में दो सालों के दौरान आंशिक वृद्धि हुई है, जबकि 2014 में यह 02 फीसदी थी, जो बढ़कर अब 02.08 फीसदी हो गई है। हालांकि आंशिक वृद्धि वाले राज्यों में उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश भी शामिल हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ की स्थिति इन राज्यों से कमतर है। हाल ही में पंचायतों और वार्डों के जरिए जो सर्वे करवाए गए, उनमें भी ज्यादातर स्कूल सी और डी ग्रेड के निकले। यह सरकार द्वारा ही सर्वे का नतीजा है। 43 हजार 529 स्कूलों में सर्वे कराया गया, जिनमें करीब 16 हजार स्कूल सी और डी ग्रेड के निकले। ज्ञात हो कि रमन सरकार ने आदिवासी क्षेत्रों के करीब 3500 से अधिक स्कूलों को बंद कर दिया है । छत्तीसगढ़ शिक्षा के मामले में देश के सबसे पिछड़े राज्यों में है। आज भी यहां के 6 से 14 आयु वर्ग के 2 प्रतिशत बच्चों ने स्कूल का मुंह नहीं देखा है। छत्तीसगढ़ की 8 में से 7 यूनिवर्सिटीज में प्रोफेसरों की भारी कमी है। बता दें कि छत्तीसगढ़ में 62 प्रोफेसरों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन महज 18 प्रोफेसर ही पदस्थ हैं।

स्वास्थ्य सुविधाएं वेंटिलेटर पर
राज्य के ग्रामीण और आदिवासी बहुल क्षेत्रों में लोगों को सामान्य स्वास्थ्य सेवाएं भी सही तरह से उपलब्ध नहीं हो पा रही है। जहां भी स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर थोड़ा बहुत ठीक है वहां पर महिलाओं की निरक्षरता उन्हें स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ लेने में बाधा उत्पन्न कर रही हैं। इसका परिणाम राज्य की महिलाओं की स्वास्थ्य में दिखने लगा है। बिहार के बाद छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा महिलाएं कुपोषण की शिकार हैं। जितने लोग नक्सली हमले में अपनी जान नही गंवाते उससे कहीं अधिक मलेरिया से जिंदगी चली जाती है जिसके रोकथाम में अबतक सरकार को कामयाबी नही मिल पायी है, गरियाबंद के कई गांव में दूषित पानी पीने से किडनी खराब हो जाने से हजारों जिंदगी मौत के करीब है जो छत्तीसगढ़ की बड़ी समस्या है ।

देशदेश के बाकी सभी राज्यों में महिलाओं के स्वास्थ्य की स्थिति छत्तीसगढ़ से बेहतर है। खासकर ग्रामीण इलाकों में स्थिति बहुत खराब है। इसने शासन के दावों की पोल खोल दी है। रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में पांच वर्ष से कम आयु वाले अाधे से ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं। छत्तीसगढ़ में 53 प्रतिशत बच्चे कुपोषण की श्रेणी में आते हैं। इनमें से बीस प्रतिशत बच्चों की हाइट उम्र के हिसाब से कम है। वहीं अस्सी प्रतिशत का वजन हाइट के हिसाब से कम हैं। यह स्थिति आने वाले समय में राज्य के लिए काफी घातक साबित हो सकती है। छत्तीसगढ़ में पुरुषों के सेहत की स्थिति महिलाओं की तुलना में कम चिंताजनक है। इसका यह मतलब नहीं कि यहां के पुरुषों का स्वास्थ्य बहुत अच्छा है। देखा जाए तो राजस्थान, मध्यप्रदेश और झारखंड के बाद छत्तीसगढ़ में ही सबसे ज्यादा पुरुष कुपोषण से ग्रस्त हैं। छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य सुविधाएं वेंटिलेटर पर है 2014-15 में नसबंदी कांड से करीब28 महिलाओं की मौत हो गई थी, मोतियाबिंद ऑपरेशन से कई लोगों की आंखें चली गई। बीते साल प्रदेश में 3 लाख 14 हजार महिलाओं के प्रसव हुए। इनमें 80 हजार से ज्यादा अस्पतालों तक नहीं पहुंचीं। मुंगेली में 70 प्रतिशत महिलाओं के प्रसव घरों में हुए। माओवाद प्रभावित दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा और नारायणपुर जिलों में 40 प्रतिशत से ज्यादा महिलाओं के प्रसव घरों में हुए ।


मूलभूत सुविधाएं और परिवहन
छत्तीसगढ़ की जनता आज भी बिजली, पानी , सड़क, खाद्य, से वंचित है कोरबा में नेशनल थर्मल पावर प्लांट है जिसे ४३ साल हो गए बिजली उत्पादन करते राज्य सरप्लस बिजली उत्पादन करने वाला राज्य भी कहलाता है परन्तु उसी जिले के कई गांवों तक आज भी बिजली नही पहुंच पाई है। बस्तर में तो राशन का कालाबाजारी खुले आम होता है, वहां के लोगों को40-50 किलोमीटर तक राशन के लिए जाना होता है, नक्सली राशन को बीच में ही लूट लेते है । गांवों में आज भी पीने का स्वच्छ पानी तक नहीं है, अंदरूनी क्षेत्रों में बिजली नहीं है, सड़क नहीं है. यही नहीं, सरकारी राशन की कालाबाजारी हो रही है. बाजार बंद हैं, सोसाइटी, उचित मूल्य की दुकानें बंद पड़ी हैं, 15 साल में दोरनापाल से जगरगुंडा तक 5 किलोमीटर सड़क का निर्माण भी नहीं हो सका है

नक्सलवाद राज्य का नासूर
नक्सली समस्या राज्य की नासूर बन गई है, 2003 तक कुछ ब्लाक ही इस समस्या से प्रभावित थे जो आज 19 जिलों को लाल आतंक ने अपना गढ़ बना लिया है, यह समस्या बातचीत से ही खत्म हो सकती है परन्तु सरकार ही वार्ता के लिए तैयार नही दिख रही। जब जब विधानसभा चुनाव नजदीक आते है वैसे ही नक्सली गतिविधियां तेज हो जाती है, अबतक नक्सलियों ने577 बेकसूर आदिवासियों की हत्या कर चुके है और 709 जवान शहीद हो गए हैं । 2007 में नक्सलियों ने 23 पुलिसकर्मियों की नृशंस हत्या कर दी थी मार्च2007 में ही 55 जवानों को मार दिया, नक्सलियों की अबतक की दो सबसे बड़े हमले झीरम और ताड़मेटला है जिसमें कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को निर्दयता से मौत के घाट उतारा था, 12 जुलाई को मुख्यमंत्री रमन सिंह के विधानसभा क्षेत्र राजनांदगांव में एसपी विनोद चौबे समेत 29 पुलिसकर्मियों को नक्सलियों ने मार दिया था

फर्जी मुठभेड़ और प्रशासनिक अत्याचार
छत्तीसगढ़ के सुरक्षा जवानों ने महिलाओं से बलात्कार किया है जिसे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और सीबीआई ने भी सच पाया, 2010 में मीना खलको की नक्सली बता मार दिया गया था, सोनी सोरी के गुप्तांग में पत्थर और बालू डाल प्रताड़ित किया गया, जांजगीर-चांपा में दलित युवक की पुलिस थाने में ने पीट पीटकर मार डाला गया। यह अनुमानित है कि लगभग 10 हजार आदिवासी लड़के और पुरुष छत्तीसगढ़ की जेलोँ मेँ नक्सलियोँ से संबंध रखने के फर्जी आरोप मेँ बंद है।

यहाँ तक लड़कियोँ और महिलाओँ को नहीँ छोड़ा जा रहा है ये साबित करने के लिए कि वो नक्सली नहीँ है उनका स्तन को दबाया जाता है और देखा जाता है दूध निकलता है या नहीँ। अगर दूध नहीँ निकलता तो इन बेचारोँ को नक्सली बोलकर जेल मेँ ठूस दिया जाता। छत्तीसगढ़ के बस्तर मेँ फर्जी मूठभेड़ मेँ निरीह आदिवासियोँ को गोली मारा जा रहा है उनकी लड़कियोँ और महिलाओँ से बलात्कार करने के बाद बेरहमी से वर्दी पहनाकर नक्सली बता कर हत्या कर दी जा रही है।

अपराध का गढ़ बनता छत्तीसगढ़
राज्य में पिछले पांच वर्षों में 19,670 महिलाएं लापता हुई हैं और सरकार उन्हें तलाश भी नहीं कर पा रही है। विधानसभा में दिए गए आंकड़ों के अनुसार राज्य में बलात्कार की घटनाएं 12 प्रतिशत की दर से बढ़ रही हैं और हर दिन औसतन छह महिलाएं बलात्कार की शिकार हो रही है। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार बच्चियों के खिलाफ यौन शोषण के मामलों में पॉक्सो कानून के तहत दर्ज अपराध के मामले में छत्तीसगढ़ देश में दूसरे नंबर पर है। कांकेर के छात्रावास में बच्चियों का यौनशोषण यह बताते है कि छत्तीसगढ़ में अपराध कहां तक पहुंच गया है, शिव डहरिया के घर में हथियार बंद लोगों ने हमला कर हत्या कर दी थी । एनसीआरबी को मिले रिकॉर्ड के अनुसार देशभर में 74 हजार 9 सौ 54 मामले दर्ज किए गए हैं।

करीब 17 फीसदी अपराध के साथ राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली इस मामले में टॉप पर है। वहीं, करीब 6.5 फीसदी मामले के साथ छत्तीसगढ़ पांचवें स्थान पर है।
प्रदेश में बच्चों को शहरी चकाचौंध के नाम पर बहला-फुसलाकर मानव तस्करी जैसे कृत्य बदस्तूर जारी है। देश में छत्तीसगढ़ मानव तस्करी के मामले में चौथे स्थान पर है, 2010 से 201६ तक के सरकारी आकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ से पिछले पांच सालों में कुल 15,118 बच्चे तथा 20,670 लड़कियां तथा महिलायें लापता हुई हैं. ये वो आंकड़े हैं, जो पुलिस रिपोर्ट में दर्ज हैं. वरना आदिवासी इलाकों में तो अधिकांश मामलों में पुलिस रिपोर्ट ही नहीं दर्ज करती. यही कारण है कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी जिलों में बच्चों तथा लड़कियों के लापता होने की संख्या तथा प्रतिशत रायपुर एवं बिलासपुर की तुलना में काफी कम है. मानव संसाधन, सामाजिक संरक्षण, अपराध, कानून और व्यवस्था के मामले में 10वें स्थान पर रहा है। आवश्यक बुनियादी सुविधाओं में 13वें और पर्यावरण के मामले में 16वें स्थान पर है।

भ्रष्टाचार
राज्य में भ्रष्टाचार चरम पर है, 36 हजार करोड़ का नान घोटाला, बार दान घोटाला, पौधारोपण के नाम पर करोड़ों का गबन, फोरलेन डायवर्सन के नाम पर आदिवासियों की जमीनों को दूसरे के नाम पर खरीद कर500 करोड़ का घोटाला हुआ है। नान घोटाले में कई आईएएस अधिकारियों को आरोपी बनाया गया है। मध्य प्रदेश की भांति व्यापंम घोटाले का छत्तीसगढ़ में भी अनुमान लगाया जा रहा है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार देश के 29 राज्यों में एंटी करप्शन ब्यूरो तथा सतर्कता विभाग द्वारा संज्ञेय अपराध के मामले में 147 मामलों की जांच नही की गई है या जांच बंद कर दी गई है जिसमें 81 मामले छत्तीसगढ़ के है। 45 आईएएस अधिकारियों के खिलाफ मामले लंबित है। नागरिक आपूर्ति निगम में 36 हजार करोड़ रुपए का घोटाला सामने आया है, एंटी करप्शन ब्यूरो द्वारा जब्त कथित एक डायरी के हवाले से इस मामले में मुख्यमंत्री रमन सिंह और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ भी रिश्वतखोरी के आरोप लगे है । इस मामले में 17 बड़े अफसरों को गिरफ्तार दो साथ ही दो आईएएस अधिकारी की गिरफ्तारी की अनुमति केंद्र से मांगी है। पनामा पेपर लीक में रमन सिंह के सांसद पुत्र अभिषेक सिंह के मेडिकल फर्म के नाम घुस लेने वालों में आया है।

आउटसोर्सिंग
राज्य 5-6 वीं अनुसूची के अंतर्गत विशेष राज्य है जहां आउटसोर्सिंग जैसे असंवैधानिक नीतियां लागू नही किया जा सकता परन्तु राज्य की रमन सरकार सभी नियमों को ताक पर रखकर आउटसोर्सिंग करा रही है वही राज्य में 32-35 लाख बेरोजगार युवा हैं। स्थानीय युवाओं को केंद्र-राज्य के उपक्रमों में नौकरी नही दी जाती । मेडिकल, शिक्षा क्षेत्र में धड़ल्ले से आउटसोर्सिंग किया जा रहा है...इतनी समस्याओं के बाद भी विकास यात्रा बेईमानी है...



























विकास साहू


Next Story