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सरकार के तमाम दावों के बावजूद रबी की फसल में भी किसान की लूट जारी

सरकार के तमाम दावों के बावजूद रबी की फसल में भी किसान की लूट जारी
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जय किसान आंदोलन, स्वराज अभियान और अन्य संगठनों द्वारा आयोजित MSP सत्याग्रह के पहले चरण की अंतरिम रपट जारी
केंद्र सरकार के इस बजट में वित्त मंत्री ने घोषणा की थी कि सरकार किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने के लिए विशेष प्रयास कर रही है। पिछले 2 महीने में प्रधानमंत्री ने भी बार-बार यह दावा किया है कि सरकार किसानों को फसल का भाव दिलाने के लिए ऐतिहासिक प्रयास कर रही है। इन दावों की जांच करने और किसानों में न्यूनतम समर्थन मूल्य के अधिकार के प्रति चेतना जगाने के लिए स्वराज अभियान के जय किसान आंदोलन और अन्य सहमना संगठनों, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, किसान संघर्ष समिति, रैयतु स्वराज वेदिका, कर्नाटक राज्य रैयतु संघ, और तेलंगाना जेएसी के द्वारा 14 मार्च से एमएसपी सत्याग्रह आयोजित किया गया है। इस सत्याग्रह के तहत 5 राज्यों में मंडियों का दौरा हो चुका है। और इस दौरान बाजार की समीक्षा से यह निष्कर्ष निकलता है कि किसानों को फसल का भाव दिलवाने के बारे में सरकारी दावे खोखले हैं।
MSP सत्याग्रह के तहत जिस भी मंडी का दौरा किया गया उनमें से एक भी मंडी में किसी एक भी फसल में सभी किसान अपनी पूरी फसल एमएसपी पर भेजने में असमर्थ हैं। यानी कि हर मंडी में और हर फसल में किसान की कम-ज्यादा लूट जारी है। इस दौरान बाजार की समीक्षा करने से हमारा यह अनुमान है की हर साल की तरह इस साल भी रबी के मौसम में रबी की फसलों में किसान की बड़े पैमाने पर लूट होगी। हमारा अनुमान है कि अगर रबी की फसल में गेहूं और सर्दी के धान को छोड़ दे तब भी बाकी मुख्य फसलों में किसान को 14474 करोड रुपए की लूट का सामना करना पड़ेगा। इसमें सिर्फ चने की फसल में 6,569 करोड रुपए की लूट की आशंका है। मूंगफली में 1,016 करोड़, सरसों में 3,327 करोड मसूर में 1452 करोड़ मक्का में 1785 और 54325 करोड की लूट का अनुमान है।
MSP सत्याग्रह में शामिल टीम का मानना है कि वास्तव में किसान की लूट इससे भी अधिक होगी क्योंकि जमीनी स्तर पर जहां भी हमने कीमत की जांच की, हर मंडी में पाया कि सरकारी वेबसाइट पर दिए गए आंकड़े से कहीं कम पर स्थानीय स्तर पर फसल बिक रही है। इस बार रबी की फसल में बंपर पैदावार हुई है लेकिन फसलों के दाम एमएसपी से 10 से 20 फ़ीसदी कम चल रहे हैं। चना सरसों और जौ तीनों में बड़े पैमाने पर किसानों की लूट जारी है। प्रेस को संबोधित करते हुए स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेन्द्र यादव ने कहा कि किसानों को कहीं भी एमएसपी नहीं मिल रहा है। तरह तरह के फ़िल्टर लगाकर खरीद केंद्र उपज की ख़रीद को ख़ारिज कर दे रहे हैं। एक तरफ सरकार ज्यादा पैदावार होने पर श्रेय लेती है, औऱ दूसरी तरफ पूरी मात्रा की ख़रीद नहीं कर किसानों को ज्यादा उपजाने की सज़ा देती है।
किसान संघर्ष समिति के डॉ सुनीलम ने कहा कि रबी की ख़रीद में बड़े पैमाने पर किसानों की लूट हो रही है। मध्य प्रदेश में एमएसपी से नीचे खरीदारी करने के बावजूद अभी तक कोई गिरफ़्तारी नहीं हुई है। जय किसानों आंदोलन के संयोजक अविक साहा ने कहा कि किसान के MSP आजीविका का सवाल है, औरसरकार इस अपने वायदे को पूरा नही कर पाती है तो यह किसानों के साथ सबसे बड़ा छल है।
सरकार द्वारा MSP पर खरीद की व्यवस्था मैं इतने दोषपूर्ण हैं कि वह 10 या 20% किसानों को ही न्यूनतम समर्थन मूल्य दिला पा रही है। सरकारी खरीद की व्यवस्था में निम्नलिखित प्रमुख दोष पाये गये:
1. कई फसलों के लिए कुछ राज्यों में सरकारी खरीद की घोषणा ही नहीं हुई है जैसे कि राजस्थान में जौ की सरकारी खरीद नहीं हो रही है।
2. जहां सरकारी खरीद की घोषणा हुई है, सामान्यतः खरीद तब शुरू होती है जब तक अधिकांश किसान अपनी फसल कम दाम पर बेच चुके होते हैं। खरीद थोड़े दिन के लिए होती है, और किसान के पास कुछ फसल बच भी जाती है।
3. फसल बिक्री केंद्र कई बार अनाज मंडी के बाहर लगाए जाते हैं, जिससे किसानों के लिए वहां पहुंचना और बेचना कठिन हो जाता है।
4. लगभग हर राज्य में गेहूं और धान को छोड़कर बाकी सब खरीदो में खरीद की ऊपरी सीमा बांधी हुई है। प्रति एकड़ किसान कितनी फसल बेच सकता है और कुल मिलाकर कितनी फसल बेची जा सकता है, दोनों तरह की बंदिशें लगाई गई हैं। सामान्यतः यह सरकारी उत्पादन के मात्रा से कम होती है।
5. सरकारी खरीद के लिए किसान को अनेकों औपचारिकताओं को पूरा करना होता है। रजिस्ट्रेशन,आधार नंबर, गिरदावरी, बैंक पासबुक, इसके चलते अनेक किसान और सभी बटाईदार और ठेके पर खेती करने वाले किसान सरकारी खरीद के लाभ से वंचित हो जाते हैं।
6. क्वालिटी नियंत्रण के नाम पर किसान की फसल को बिना सही कारण के खारिज कर दिया जाता है। इसमें धांधली और भ्रष्टाचार की शिकायतें मिली हैं।
7. किसान को फसल बेचने के बाद कई बार 2 महीने तक भी दाम नहीं मिलता, पेमेंट नहीं किया जाता।
ऐसे में यह सख्त जरूरी है की सरकार बाजार में दखल देकर फसलों के दाम को कम से कम एमएसपी के स्तर तक लाए जो किसान अपनी फसल अब तक MSP से कम में बेच चुके हैं उनकी हुए नुकसान की भरपाई की जाए और सरकारी खरीद की व्यवस्था में तत्काल सुधार किए जाएं।
MSP सत्याग्रह के सुझाव :
किसान अपनी पूरी उपज एमएसपी पर बेच सके। सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल सभी प्रबंध करने चाहिए।
खरीदारी में अनाज की गुणवत्ता प्रत्येक जिले के अनुमानित पैदावार की क्वालिटी की ऊपरी सीमा से तय हो।
अक्सर किसानों को बेचने से पहले 4 -5 तरह के दस्तावेज/प्रमाण पत्र जुटाने पड़ते हैं, इसे सरल और आसान बनाये जाएं।
खरीदारी का काम फ़सल चक्र के अनुसार ससमय पूरा किया जाय, ताकि किसानों को मजबूरी में नहीं बेचना पड़े।
सरकारी खरीद केंद्र पर्याप्त संख्या में खोले जाएं, यह केंद्र 20 किलोमीटर के दायरे में हो ताकि किसान आसानी से निकट खरीद केंद्र पहुँच सके।
खरीद केंद्र का प्रचार अख़बारों टीवी रेडियो के माध्यम से हो। यथसंभव गांव में मुनादी करवाई जाये।
इस तरह खरीद के काम कृषिमंडी (APMC) में हों।
किसानों को भुगतान रसीद (Fund Payments Order), 24 घंटे के भीतर उपलब्ध जाएं। साथ ही पूरा भुगतान भी जल्दी किया जाये।
ख़रीद एजेंसी और निजी व्यापारियों द्वारा नमी जाँच के लिए उपयोग में लाये जा रहे उपकरण मानक हों।
पंजीकरण की सुविधा ऑन स्पॉट हो। कागजों की जाँच एकल विंडो से किया जाये। पहचान के लिए कागजों के विकल्प दिए जाएं।
बटाईदार और tenant किसान के उपज की खरीद के लिए विशेष प्रावधान हो ।
सरकार की तमाम तैयारियों के बावजूद अब तक किसी भी मंडी में किसी भी फसल की खरीद MSP पर नहीं हुई है। स्वराज इंडिया इस दावे की जांच के बाद सरकार को चुनौती देता है कि वह किसी भी मंडी में किसानों की कोई एक फसल की पूरी मात्रा की खरीद MSP पर होता हुआ दिखाए। चूंकि MSP किसानों के लिए आजीविका का सवाल है और अगर वह इतने के बावजूद भी सही दाम हासिल नहीं कर पाता है तो उसके लिए आंदोलन के सिवाय कोई दूसरे उपाय नहीं है।

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