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इस सरकार ने भारत की संवैधानिक संस्थाओं में लोगो का विश्वास बुरी तरह टूटा!

इस सरकार ने भारत की संवैधानिक संस्थाओं में लोगो का विश्वास बुरी तरह टूटा!
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इस सरकार ने भारत की संवैधानिक संस्थाओं में लोगो का विश्वास बुरी तरह से हिला दिया हैं. अगर ये कहा जा रहा है कि हंगामे के कारण सदन में अविश्वास प्रस्ताव नही रखा जा रहा है तो क्या एक नयी परम्परा की नींव नही डाली जा रही है कि हंगामा होने लगे तो अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार ही नही किया जाए ? यह प्रवृत्ति बहुत खतरनाक है.
कल दिल्ली हाईकोर्ट ने जो सवाल राष्ट्रपति के फैसले पर उठाए हैं वह चुनाव आयोग जैसी निष्पक्ष माने जाने वाली संस्था की मोदी सरकार के पक्ष में झुके होने की साफ साफ गवाही देते हैं. जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस चंद्रशेखर की बेंच ने 79 पेज के आदेश में कहते है कि विधायकों को अयोग्य घोषित करने से पहले मौखिक सुनवाई का मौका तक नहीं दिया गया, ओर न ही उन्हें इस मुद्दे पर दलीलें रखने का पर्याप्त समय मिला.
सदस्यता रद्द करने के लिए गत 19 जनवरी को आयोग की ओर से राष्ट्रपति को भेजी गई सिफारिश को कोर्ट ने न्याय के प्राकृतिक सिद्धांतों के खिलाफ माना.कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा जांच कमेटी का हिस्सा नहीं थे। फिर भी विधायकों की सदस्यता रद्द करने की सिफारिश पर उनके हस्ताक्षर क्यों थे? चुनाव आयुक्त ओपी रावत जांच कमेटी छोड़ने के बाद जब दोबारा उसमें शामिल हुए तो विधायकों को जानकारी नहीं दी गई.
आप क्या रिजर्व बैंक की बात कीजिए क्या चुनाव आयोग का मुंह देखिए हर तरह की संवैधानिक संस्था मोदी जी के गुलाम की तरह व्यवहार कर रही है.
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