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नवरात्री में ऐसे करें माँ दुर्गा की आराधना, पूर्ण होगी हर मनोकामनाएं
नई दिल्ली: नवरात्रि महोत्सव को लेकर शहर में तैयारियां शुरू हो गई है। शहर के विभिन्न मोहल्लों में पंडाल सजने लगे है। साथ ही डांडिया नृत्य को लेकर टीमों का अभ्यास चल रहा है। वहीं नवरात्रों को लेकर शहर के सभी मंदिर सज चुके हैं। मंदिरों पर लाइटों को लगाया जा रहा है ताकि रात को मंदिर रोशनी से नहाता हुआ दिखाई दे। नवरात्रों की शुरुआत सनातन काल से हुई है। भगवान श्रीराम ने नौ दिनों तक समुंद्र किनारे मां की अराधना की थी और उसके बाद लंका की तरफ प्रस्थान किया।
पूजा के बाद उन्होंने युद्ध में जीत हासिल की और दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है। नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाएगी। महिलाएं माता के नौ दिनों तक लगातार व्रत रखती हैं और उसके बाद कन्या पूजन करके व्रत का पूरा करती हैं। जब तक कन्या पूजन या उन्हें भोग नहीं लगाया जाता तब तक माता के व्रत का फल नहीं मिलता।
पंडितों के अनुसार, सुबह 6:29 बजे से 7:47 बजे तक घट स्थापना का श्रेष्ठ मुहूर्त है। चौघड़िया अनुसार सुबह 11: 01 बजे से दोपहर 3:32 बजे तक चर-लाभ-अमृत चौघड़िया में घट स्थापना हो सकेगी। इस बार नवरात्र में कोई घट-बढ़ नहीं होने से श्रेष्ठ माना गया है। दुर्गा अष्टमी 28 और रामनवमी 29 सितंबर को मनाई जाएगी। 30 सितंबर को दशहरा मनाया जाएगा। नक्षत्र 27 है, और अभिजीत को जोड़ने पर 28 होते हैं। इस दिन हस्त नक्षत्र के साथ सूर्य चंद्रमा भी कन्या राशि में विद्यमान रहेंगे।
कलश स्थापना आज
नवरात्र के पहले दिन कलश की स्थापना होगी। कलश रखने का शुभ मुहूर्त सुबह छह बजकर तीन मिनट से आठ बजकर 22 मिनट तक रहेगा। कलश स्थापना के बाद कलश पर स्वास्तिक बनाया जाता है, जिसकी हिन्दू धर्म में बहुत मान्यता है। कलश पर मौली का धागा बांधकर व जल भर कर नौ दिनों तक के लिए स्थापित कर दिया जाता।
हवन सामग्री में विशेष है जौ, काले तिल और चावल
नवरात्र व्रत एवं उपासना के बाद नवमी के दिन हवन करें। हवन साम्रगी में जौ काले तिल एवं चावल मिलायें। विसर्जनम् - बायें हाथ में चावल लेकर दाहिने हाथ से देवी-देवताओं पर छिड़कते हुये मन में लक्ष्मी, कुंबेर, इष्टदेवी से प्रार्थना करें कि मेरे यहां निवास करो एवं मुझे आशीर्वाद एवं साधना की, उपासना की, पूजा की सफलता प्रदान करते हुये अपने स्थान को गमन करें।
ऐसे करे पूजन
सामने पट्टे पर सफेद वस्त्र बिछा कर, स्वास्तिक बना कर पुष्प का आसन बनाकर गणपति की प्रतिमा स्थापित करें, हाथ में चावल लेकर गणपति का आवाहन करते हुये संकल्प लें और अपनी पूजा आरम्भ करें, अन्त में आरती करें। देवताओं के सम्मुख 14 बार आरती उतारने का विधान है, आरती के बाद पुष्पांजलि देकर शंख का जल, तांबे के पात्र में भरा जल सभी पर छिड़कें, प्रदक्षिणा करें, नमस्कार करें। अन्त में क्षमा प्रार्थना के बाद फिर प्रदक्षिणा कर निम्न मंत्र के साथ अर्पण करें - मंत्र - ऊँ ऐं हीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥