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तमिलनाडु के सूखे को सूखा न कह त्रासदी या विपदा कहना जायज़ होगा - योगेंद्र यादव
शिव कुमार मिश्र
19 Sep 2017 11:44 AM GMT
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किसान मुक्ति यात्रा का आज चौथा दिन है। तेलंगाना, आंध्र प्रदेश की यात्रा करते हुए हम तमिलनाडु के चेन्नई पहुंच गए हैं। सड़क से यात्रा करते हुए हमें यहां की खेती किसानी को करीब से देखने का मौका मिल रहा है। अन्ना नगर की सभा केवल किसान कार्यकर्ताओं के साथ-साथ अभिनेता, व्यापारी वर्ग और मानव अधिकार से जुड़े लोगों की मौजूदगी है। किसान मुक्ति यात्रा का स्वागत और समर्थन के लिये मैं सभी का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं।
साथियों, तमिलनाडु के किसान जब दिल्ली में धरना प्रदर्शन कर रहे थे, तब मीडिया का ध्यान यहाँ के सूखे की तरफ़ गया था। थोड़ी बहुत रिपोर्टिंग के बाद मीडिया की रुचि समाप्त हो गयी। लेकिन आज इन इलाकों में घूमने और किसानों से मिलने के बाद भयावह सूखे की स्थिति समझ आती है। साथियों, इस देश सूखा पड़ना इतनी साधारण घटना हो गयी है कि इसके असर का अंदाज़ा लगाना मुश्किल हो गया है। इसलिए तमिलनाडु के सूखे को सूखा न कह त्रासदी या विपदा कहना ज्यादा जायज़ होगा। तमिलनाडु में इस साल का सूखा पिछले 140 सालों का सबसे बड़ा सूखा है। किसानों के ऊपर कर्ज़ का बोझ दुगुना हो गया है। खेती पर आश्रित किसान को परिवार का पेट पालने मुश्किल हो गया है। राहत मिलने की बात तो दूर, सरकार सुनने तक को तैयार नही है।
स्वामीनाथन आयोग की अनुशंसा को किसी भी सरकार ने नहीं माना। किसान क़र्ज़ के क़र्ज़ के बोझ तले आत्महत्या करता गया। भारत सरकार की किताबो ने लिखा की किसान क़र्ज़ कि आदयगी नहीं करते हैं, जबकी सच्चाई यह है की उपज की लागत से 50% अधिक दाम देकर खरीदारी न होने की वजह से किसानों की इन दस सालों में लगभग 20 लाख करोड़ रूपये का नुकसान हुआ। इसलिए किसान मुक्ति यात्रा को समर्थन करने वाला हर साथी कहता है की किसान के ऊपर क़र्ज़ नहीं है बल्कि देश के ऊपर किसान का क़र्ज़ हैं। इसलिये AIKSCC ने दो माँगों को उठाया है-ऋण मुक्ति, और उपज का ड्योढ़ा दाम।
स्वराज अभियान का जय किसान आंदोलन एक ऐसी राष्ट्रीय नीति की माँग करता है जो किसानों को नियति की मार से मुक्त कर सके।
शिव कुमार मिश्र
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