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जो जीता वही सिकंदर, लेकिन कांग्रेस को भी मिली नई उर्जा
गुजरात और हिमाचल विधान सभा चुनाव परिणाम के बाद आज भाजपा कार्यालय में आयोजित प्रेस कांफ्रेस में बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने गुजरात चुनाव के बारे में एक लाइन में सधी प्रतिक्रिया दी जो जीता वही सिकंदर . ठीक उसी तरह की प्रतिक्रिया गुजरात पाटीदार के नेता हार्दिक पटेल ने अपनी हार के बाद ही कहा कि जो जीता वही सिकंदर . लेकिन क्या गुजरात और हिमाचल चुनाव के सही में ये संदेश काफी है.
गुजरात के पहले हम हिमाचल चलते हैं. जहां वीरभद्र के भष्टाचार के कारण और कांग्रेस के अंदर मचे घमासान और पार्टी नेतृत्व की उपेक्षा के बावजूद भाजपा को वह जीत हासिल नही हो पायी जिसकी वह हकदार थी. इतना ही नही जिस 70 वर्ष की आयु सीमा के चलते लाल कृष्ण आडवानी , मुरली मनोहर जोशी जैसैे बड़े नेताओं को हाशिये पर धकेल दिया गया वही हिमाचल चुनाव की जीत के लिये धूमल जैसे चेहरे को फिर मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के बाद भी धूमल खुद तो चुनाव हारते ही है उनके प्रदेश अध्यक्ष भी जीत का स्वाद नही चख पाये . यानि मोदी की लहर में भाजपा के मुख्यमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार पर भी हिमाचल की जनता भरोसा नही कर पायी.
अब गुजरात चुनाव परएक नजर डाले इसके पहले हम एक वाकया की चर्चा करना चाहेगे. रविवार की रात एक पत्रकार मित्र के यहा लिट्टी चोखा का भोज था जिसमें प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकारो का जमघट था. एक पत्रकार मित्र ने हमसे गुजरात चुनाव पर अपनी प्रतिक्रिया पूछी तो मेरे मुंह से निकला मैं चाहता हूं कि वहा भाजपा सत्ता में आये और कांग्रेस मजबूत विपक्ष के रूप में . उनका पूछना था ऐसा क्यों. मैने कहा कि अगर कांग्रेस का गुजरात में शासन होता है तो कांग्रेस की सरकार भाजपा चलने नही देगी और केन्द्र सरकार से उसे भरपूर सहयोग नही मिलेगा. इत्तफाक से कहुिये की गुजरात की जनता ने कांग्रेस को भले ही सत्ता ना दिया हो लेकिन उसकी झोली जरूर भर दी है. उस कांग्रेस की झोली में 80 विधायक उसने दिये हैं जो भाजपा शासन में सबसे ज्यादा मजबूत विपक्ष में है.
जबकि चुनाव से पहले गुजरात में कांग्रेस के दिग्गज नेता पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिहं बघेला एक दर्जन से अधिक विधायकों को तोड़कर ले भागे और 42 विधायकों की संख्या पर पहुंची कांग्रेस में ऐसा कोई कद्दावर नेता नही था जिसे पूरे गुजरात के समीकरण की जानकारी हो या उसकी हैसियत अपने बूते कुछ सीटो को जीतकर लानी हो. पिछली 22 वर्षो से चुनाव हारते - हारते विपक्ष में रहने के कारण कांग्रेस के समर्थको का मनोबल भी टूट चुका था.
एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी , अमित शाह जैसे दिग्गज चुनावी विशेषज्ञ तो केन्द्र और राज्य में भाजपा की सरकार और फिर चुनाव मैदान में मतदाताओं को रिझाने के लिये एक दर्जन से ज्यादा राज्यो के मुख्यमंत्री , केन्द्रीय कैबिनेट के सदस्य और फिर भाजपा नेताओं की लंबी फौज. यानि साम दाम दंड भेद से परिपूर्ण भाजपा के सामने पप्पू था जिसके साथ थे हार्दिक , अल्पेश और जिगनेश जैसे नौ सिखिये.तो आग में घी डालने वाले कपिलसिब्बल और मणिशंकर जैसे नादान दोस्त. लेकिन इसके बावजूद अपने विधायकों की संख्या दूना करने में कामयाब रही कांग्रेस के बारे में इतना तो कहा जा सकता है कि भले ही वह सत्ता से कुछ कदम दूर रह गयी हो लेकिन गुजरात की जनता ने उसे भी सिकंदर बनाने में कोई कसर नही छोड़ी.