स्वास्थ्य

2023 ने दी टीबी उन्मूलन को एक कतरा उम्मीद पर चुनौती अनेक

Shiv Kumar Mishra
25 Dec 2023 4:42 PM GMT
2023 ने दी टीबी उन्मूलन को एक कतरा उम्मीद पर चुनौती अनेक
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2023 poses many challenges to TB eradication with just a sliver of hope

विश्व स्वास्थ्य संगठन की नवीनतम वैश्विक टीबी रिपोर्ट 2023 (जो पिछले महीने ही जारी हुई है) के अनुसार, एक साल में अब तक के सबसे अधिक नये टीबी रोगियों की पुष्टि पिछले साल ही हुई है। 2022 में 75 लाख से अधिक लोगों को टीबी से ग्रसित पाया गया - जो पिछले सालों की तुलना में अब तक की सबसे अधिक संख्या है। हालाँकि दुनिया में कुल अनुमानित टीबी रोगियों की संख्या पिछले साल 1.06 करोड़ थी - साफ़ ज़ाहिर है कि अधिक रोगियों तक टीबी सेवाएँ पहुँचाने के बावजूद 30% टीबी रोगी सेवाओं से वंचित रहे।

यदि सतत विकास लक्ष्य में दर्ज टीबी मुक्त दुनिया के वादे पर खरा उतरना है तो यह ज़रूरी है कि दुनिया के हर टीबी रोगी तक, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा संस्तुत मॉलिक्यूलर टेस्ट की जाँच पहुँचे, बिना विलंब प्रभावकारी इलाज प्रदान किया जाये और जो भी सहायता और सहयोग उसको टीबी-मुक्त होने के लिए चाहिए, वह उसे सम्मान और अधिकार स्वरूप मिले। यदि टीबी की पक्की जाँच (मॉलिक्यूलर टेस्ट - न कि 140 साल पुरानी और कच्ची जाँच माइक्रोस्कोपी) लोगों को नहीं मिलेगी तो न केवल अनावश्यक मानवीय पीड़ा और असामयिक मृत्यु का ख़तरा मंडराता रहेगा, बल्कि संक्रमण के फैलाव को रोकने में भी हम नाकाम रहेंगे।

इसीलिए 2018 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सभी सरकारों से अपील की कि 2027 तक टीबी की कच्ची जाँच माइक्रोस्कोपी के बजाय सभी रोगियों को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा संस्तुत मॉलिक्यूलर टेस्ट की पक्की जाँच मिले। सितंबर 2023 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा में आयोजित टीबी पर उच्च स्तरीय बैठक में जो राजनीतिक घोषणापत्र जारी किया गया उसमें भी 2027 तक माइक्रोस्कोपी को पूर्णत: मॉलिक्यूलर टेस्ट से प्रतिस्थापित करने का वादा दोहराया गया है।

2022 में 75 लाख लोगों को टीबी रोग होने की पुष्टि हुई - उनमें से आधे से अधिक को कच्ची जाँच माइक्रोस्कोपी मिली थी - जो लगभग 40-50% रोगियों को ही सही चिन्हित कर पाती है। ज़रा सोचें कि यदि कोई व्यक्ति, जिसे टीबी रोग हो और उसकी जाँच सही न हो और रिपोर्ट नेगेटिव आये, तो न केवल यह उस व्यक्ति के लिए हानिकारक है क्योंकि उसे अनावश्यक मानवीय पीड़ा और असामयिक मृत्यु का ख़तरा रहेगा, बल्कि जन स्वास्थ्य की दृष्टि से भी नुक़सानदायक है क्योंकि संक्रमण का फैलाव बढ़ता ही रहेगा।

टीबी मुक्त भारत: 2023 के 3 टॉप बिंदु

दुनिया के सभी देशों की तुलना में सबसे अधिक टीबी रोगी भारत में हैं। सरकार की इंडिया टीबी रिपोर्ट 2022 और 2023 के अनुसार, 3 प्रमुख बिंदु उभर के आये हैं।

बिंदु-1

जिस गति से भारत में 2021-2022 के दौरान मॉलिक्यूलर टेस्ट में बढ़ोतरी हुई है वह बेमिसाल है। दुनिया में शायद ही किसी देश में, एक साल में इतनी तेज़ी से मॉलिक्यूलर टेस्ट में वृद्धि हुई हो।

भारत के दो प्रदेशों ने पूर्णत: माइक्रोस्कोपी टेस्ट को बंद करके 100% मॉलिक्यूलर टेस्ट को उपलब्ध करवाया है (गोवा और लक्षद्वीप)। एक प्रदेश (आंध्र प्रदेश) ने भी बहुत बड़े स्तर पर मॉलिक्यूलर टेस्ट (~70%) को उपलब्ध करवाया है और माइक्रोस्कोपी थोड़ा कम की है। भारत के सभी प्रदेशों में मॉलिक्यूलर टेस्ट तेज़ी से बढ़ रहे हैं जो निःसंदेह सराहनीय है (पर माइक्रोस्कोपी कम नहीं हो रही है)।



बिंदु-2

अनुमानिक टीबी वाले सभी लोगों को मॉलिक्यूलर टेस्ट जाँच ही मिलनी चाहिए जिससे कि उनकी पक्की जाँच हो, संक्रमण न फैले, टीबी रोगी को बिना विलंब सही उपचार मिले और दवा प्रतिरोधकता पर भी अंकुश लग सके।

एक ओर यह सराहनीय है कि भारत के हर प्रदेश में 2021-2022 के दौरान मॉलिक्यूलर टेस्ट में वृद्धि हुई है, वहीं दूसरी ओर यह चिंताजनक है कि माइक्रोस्कोपी टेस्ट में भी अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। देश में 2021 में 89 लाख माइक्रोस्कोपी टेस्ट हुए थे परन्तु 2022 में इनकी संख्या कम होने के बजाय बढ़ कर 1.39 करोड़ हो गई है। इससे पहले 2018 में अब तक के सबसे अधिक माइक्रोस्कोपी टेस्ट हुए थे (1.21करोड़)।

वैश्विक स्तर पर भी 2021-2022 के दौरान, मॉलिक्यूलर टेस्ट के दर में वृद्धि हुई है: 38% से बढ़ कर यह 47% हो गया है। भारत में मॉलिक्यूलर टेस्ट के दर में बढ़ोतरी 0.6% है (22.4% से बढ़ कर 23%) - परंतु यह "0.6%" की संख्या पूरी कहानी नहीं बता रही है। इस"0.6%" में छिपी है भारत में घटित एक ऐतिहासिक कहानी: भारत में 2021-2022 के दौरान, मॉलिक्यूलर टेस्ट के दर में वृद्धि, "0.6%" नहीं बल्कि 82% हुई! एक साल में इतनी बड़ी संख्या में वृद्धि होना निःसंदेह एक अप्रत्याशित घटना रही है। परंतु 2021-2022 के दौरान जब मॉलिक्यूलर टेस्ट की वृद्धि को कुल टीबी टेस्ट के संदर्भ में देखते हैं (जिसमें माइक्रोस्कोपी टेस्ट की वृद्धि सर्वाधिक हुई है), तो मॉलिक्यूलर टेस्ट की वृद्धि "0.6%" आती है।

2021-2022 के दौरान, भारत में टीबी जाँच के लिए जितनी अधिक संख्या में मॉलिक्यूलर टेस्ट बढ़े, उससे भी अधिक संख्या में माइक्रोस्कोपी टेस्ट बढ़े। सरकारी इंडिया टीबी रिपोर्ट 2022 और 2023 देखें तो पायेंगे कि भारत में निर्मित और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा संस्तुत मॉलिक्यूलर टेस्ट (ट्रूनैट/ Truenat) के उपयोग में 90% वृद्धि हुई। ट्रूनैट, भारत में उपयोग होने वाला सबसे अधिक प्रचलित मॉलिक्यूलर टेस्ट है और 70 अन्य देशों में भी उपयोग हो रहा है। ट्रूनैट, विश्व स्वास्थ्य संगठन का एकमात्र विकेंद्रित टेस्ट है जिसे बिना किसी लेबोरेटरी, बिजली या अन्य चिकित्सकीय ढाँचे के सामुदायिक स्तर पर रोगी के क़रीब उपयोग में लाया जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अन्य संस्तुत मॉलिक्यूलर टेस्ट जिनमें अमरीका का जीन एक्सपर्ट शामिल है (जिसके उपयोग के लिए कुछ केंद्रित व्यवस्था लगती है), भारत में उपयोग होता है। जीन एक्सपर्ट के उपयोग में 2021-2022 के दौरान 67% वृद्धि हुई। भारत में माइक्रोस्कोपी के उपयोग में इसी दौरान 68.1% वृद्धि हुई परंतु यदि संख्या देखेंगे तो पायेंगे कि सबसे बड़ी वृद्धि माइक्रोस्कोपी में हुई। माइक्रोस्कोपी में 55 लाख टेस्ट की बढ़ोतरी हुई परंतु मॉलिक्यूलर टेस्ट में सिर्फ़ 20 लाख बढ़ोतरी हुई।

जब भारत में ही दुनिया का एकमात्र विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा संस्तुत विकेंद्रित मॉलिक्यूलर टेस्ट - ट्रूनैट - निर्मित होता है और 2018 से विश्व स्वास्थ्य संगठन सरकारों से गुहार लगा रहा है कि टीबी जाँच के लिए माइक्रोस्कोपी का उपयोग बंद करें और मॉलिक्यूलर टेस्ट का उपयोग करें, तब माइक्रोस्कोपी के उपयोग को बढ़ाने का, न तो कोई वैज्ञानिक आधार है और न ही जन स्वास्थ्य आधार।

दुनिया की सभी सरकारों को यह भी विवेचना करनी होगी कि भविष्य में शायद आने वाले "नये बेहतर टेस्ट, इलाज और वैक्सीन" के इंतज़ार में, हम आज मौजूदा दौर के सबसे बढ़िया टेस्ट, इलाज और वैक्सीन को, सबसे ज़रूरतमंद तक पहुँचाने में क्यों विफल हैं?

कोविड-19 वैक्सीन को जिस ग़ैर-बराबरी से आबादी तक पहुँचाया गया था वह हाल ही का प्रमाण है कि सबसे धनवान और सामर्थ्यवान लोगों और देशों तक तो टीकाकरण आराम से पहुँचा पर अनेक विकासशील देश ऐसे थे जहां लोगों को एक खुराक तक मुहैया नहीं हो पा रही थी। अमीर देशों ने अपनी आबादी के अनेक गुना टीका ख़रीद कर रख लिया था जो जब निर्धारित समय अवधि में उपयोग नहीं हुआ तो फेंक दिया गया पर समय रहते ज़रूरतमंद लोगों को नहीं दिया गया। रोगों से बचाव, जाँच और इलाज के अनेक ऐसे उदाहरण मिल जाएँगे जहां सरकारों ने ग़ैर बराबरी से लोगों तक पहुँचाया और सबसे वंचित और ज़रूरतमंद वर्ग अभाव में रहा।

यदि सरकारें मौजूदा दौर में, सबसे बढ़िया जाँच, इलाज और वैक्सीन आदि को पूरी आबादी तक (विशेषकर कि वंचित और सबसे ज़रूरतमंद वर्ग तक) बराबरी से पहुँचा सकेंगी, तो यह अनोखी पहल होगी - और दुनिया को सीखने को मिलेगा कि कैसे बराबरी और न्याय के साथ नयी वैक्सीन, जाँच, इलाज आदि को पूरी आबादी तक पहुँचाया जा सकता है। संभवत: जब टीबी की नयी प्रभावकारी वैक्सीन - शोध में प्रमाणित होने के बाद - निकट भविष्य में यदि आएगी तो हम उसे लोगों तक पहुँचा तो पायेंगे। यदि आज मौजूदा स्वास्थ्य तकनीकि को हम आबादी तक नहीं पहुँचा पायेंगे तो यह कैसे मान लें कि जब टीबी की नयी वैक्सीन यदि आएगी, तो वह ज़रूरतमंद तक पहुँचेगी - और कोविड वैक्सीन की तरह अमीर लोग और देश उसकी होड़ नहीं करेंगे?

बिंदु-3 - आशा की अनेक किरण

2023 में एक और महत्वपूर्ण बात रही। भारत सरकार की संसदीय रिपोर्ट जो 21 सितंबर 2023 को राज्य सभा और लोक सभा में साझा हुई, उसने महत्वपूर्ण सुझाव दिये हैं। इनमें, भारत में निर्मित और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा संस्तुत मॉलिक्यूलर टेस्ट ट्रूनैट को बड़ी मात्रा में ब्लॉक स्तर पर शीघ्रतम् उपलब्ध करवाने की बात है जिससे कि लोगों को पक्की टीबी जाँच सहजता से मिल सके। अगले चरण में इसको प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक ले जाने की बात की गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा करने से कच्ची जाँच की वजह से जिन लोगों को टीबी की सही रिपोर्ट नहीं मिल पाती (और संक्रमण फैलता है और वह भी अनावश्यक कष्ट झेलते हैं), उनको पक्की जाँच - मॉलिक्यूलर टेस्ट ट्रूनैट - मिलेगा और दवा प्रतिरोधकता में भी गिरावट आएगी।

इस रिपोर्ट ने भी यह सुझाव दिया है कि घुमंतू मोटर गाड़ी में ट्रूनैट मॉलिक्यूलर टेस्ट और वहनीय (हाथ में आ जाने वाला) एक्स-रे लगा के दूर-दराज और ग्रामीण इलाक़ों में टीबी की पक्की जाँच पहुँचायी जानी चाहिए। ऐसा भारत समेत अनेक देशों में हो रहा है और जन स्वास्थ्य दृष्टि से सकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिल रहा है।

सभी टीबी रोगियों को पक्की जाँच, अधिकार और सम्मान से मिले

140 साल पहले जब माइक्रोस्कोपी टीबी जाँच आयी थी तो वह क्रांतिकारी क्षण था - पर आज मौजूदा युग में वैज्ञानिक प्रमाण के आधार पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2018 में सभी सरकारों से अपील की, कि 2027 तक टीबी की कच्ची जाँच माइक्रोस्कोपी के बजाय सभी रोगियों को मॉलिक्यूलर टेस्ट मिले। सितंबर 2023 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में आयोजित टीबी पर उच्च स्तरीय बैठक में भी यह वादा दोहराया गया है।

भारत समेत सभी देशों में इस दिशा में प्रगति हुई भी है - पर जिस दर से माइक्रोस्कोपी में गिरावट और मॉलिक्यूलर टेस्ट की वृद्धि हो रही है - उससे यह संशय पैदा होता है कि 2025 तक भारत में और 2030 तक समस्त विश्व में टीबी उन्मूलन कैसे संभव होगा?

इसीलिए 400 से अधिक संस्थाओं और लोगों ने सभी सरकारों से गुहार लगायी है कि 100% मॉलिक्यूलर टेस्ट जाँच हो और सभी टीबी रोगियों को पक्की जाँच (मॉलिक्यूलर टेस्ट), अधिकार और सम्मान से मिले। यह माँग सर्वप्रथम गोवा में 3 नवंबर 2023 को एक बैठक में उठी और 8 दिसंबर 2023 को अफ़्रीका की सबसे बड़ी एड्स कांफ्रेंस में इसके अफ़्रीकी संस्करण को हरारे, ज़िम्बाब्वे, में जारी किया गया - www.bit.ly/findalltb .

भारत ने, सबसे अधिक टीबी वाले देश होने के बावजूद, टीबी उन्मूलन की दिशा में अभूतपूर्ण प्रगति की है परंतु चुनौती भी सबसे गंभीर यही हैं। 2023 तक जिस स्तर से टीबी रोकधाम और उन्मूलन कार्यक्रम बढ़ा है उससे कहीं अधिक तेज़ी की ज़रूरत है। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि माइक्रोस्कोपी जैसे कम-प्रभावकारी टीबी टेस्ट को बढ़ावा न मिले बल्कि वैज्ञानिक आधार पर मॉलिक्यूलर टेस्ट को अधिकार और सम्मान से सभी लोगों तक पहुँचाया जा सके जो टीबी की जाँच करवा रहे हैं।

शोभा शुक्ला, बॉबी रमाकांत - सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)

(शोभा शुक्ला और बॉबी रमाकांत, सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) के संपादकीय से जुड़े हैं।


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