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क्या हिन्दू मुस्लिम के बीच घृणा फैलाने का काम किया जाता!

क्या हिन्दू मुस्लिम के बीच घृणा फैलाने का काम किया जाता!
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अब पीआर एजेंसिया ही लोकतंत्र की दशा और दिशा तय कर रही हैं.
सोशल मीडिया पर 2 वीडियो इंटरव्यू तेजी से वायरल हो रहे हैं पहला वीडियो अवि डांडिया का है और दूसरा वीडियो ध्रुव राठी का है, दोनों ही वीडियो में बीजेपी की आई टी सेल का एक ही बन्दा महावीर बैठा हुआ है और वो बीजेपी आई टी सेल के सारे राज फाश कर रहा है, कि कैसे बीजेपी की आईटी सेल में झूठी खबरें फैलाने का काम किया जाता है। उसका कहना है कि वह बीजेपी के आइ टी सेल में 2012 से 2015 के बीच ट्रोलर की हैसियत से काम कर चुका है और वहां किस तरह से पेजेस बना कर हिन्दू मुस्लिम के बीच घृणा फैलाने का काम किया जाता है इसकी रग रग से वाकिफ है.
महावीर बताता है कि बीजेपी की आईटी सेल में 150 लोग काम करते हैं, उन्हें प्रधानमंत्री से मिलने का मौका मिलता है और उनके द्वारा विशेष कंटेट को ट्रोल किया जाता है और फिर उसे निचली रैंक के सद्स्यों के द्वारा शेयर किया जाता है।
लम्बा इंटरव्यू है आप स्वयं देखे और निर्णय करे जहाँ तक मुझे लगता है यह बन्दा सच बोल रहा है क्योंकि जिस तरह की मोडस ऑपरेंडी वो ट्रोलर्स की बता रहा है उस से हम जैसे लोग रोज दो चार होते है. सवाल पैदा होता है कि क्या सोशल मीडिया वाकई में इतना महत्वपूर्ण हो गया है कि वह उस पर इतने ज्यादा पैसे खर्च कर राजनीतिक दल अपनी हवा बनाने और विपक्षियों की हवा खराब करने में यकीन रखते है.
यह मानना कठिन है लेकिन अब यह एक कड़वी सच्चाई है साधारण शब्दो मे अपनी बात रखूंगा. दरअसल फेसबुक की नई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत में फेसबुक के सबसे ज्यादा यूजर्स हैं। भारत ने इस मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ा है.

फेसबुक की इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत 241 मिलियन (24.1 करोड़) फेसबुक यूजर्स के साथ दुनिया में पहले पायदान पर है, वहीं 240 मिलियन यूजर्स (24 करोड़) के साथ अमेरिका दूसरे नंबर हैं 2014 में अमेरिका पहले नम्बर पर था अब 2018 में भारत में सबसे बड़ा फेसबुक का नेटवर्क हैं.
राजनीतिक दलों को जो सबसे ज्यादा आकर्षक बात लगती है वो ये है कि भारत में फेसबुक के 50 फीसदी से ज्यादा यूजर्स की उम्र 30 साल से कम है. अब आप देखिए कितना पोटेंशियल है इस सोशल मीडिया में आपको जो लिखना है जिसका चरित्र हनन करना हो जिस धर्म को नीचा दिखाना हो कितनी आसानी से यह सब किया जा सकता है,

आप यदि सोच रहे हैं कि दल सिर्फ चुनाव जीतने के लिए इतनी मेहनत कर रहे है तो आप गलत सोच रहे है यह एक पीढ़ी के दिमाग मे ऐसा जहर भर रहे है जो सिर्फ 5 सालो के लिए नही सदा के लिए उसे अपना गुलाम बना कर के रखेगा.आपको शायद अब भी भरोसा नही हो रहा होगा यह सिर्फ भारत मे ही नही हुआ यह प्रवृत्ति वैश्विक रूप अख्तियार कर चुकी है 2008 का अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव वह पहला चुनाव था, जिसके बारे में कहा गया था कि इसे सोशल मीडिया पर लड़ा गया. ओर उसके बाद के राष्ट्रपति चुनाव में सोशल मीडिया सबसे अहम भूमिका निभाता हुआ आ रहा है
अपनी छवि के निर्माण के लिए पार्टियां अब पी आर एजंसियों को हायर करती है पीआर यानि 'पब्लिक रिलेशन' और पीआर कंपनियों का काम होता है 'ब्रांडिंग और इमेज बिल्डिंग' जिससे नेताओं या पार्टी की समाज में सकारात्मक छवि बनायी जा सके और उसके सहारे उसकी 'चुनावी' नैय्या पार हो सके! इसकी कार्यप्रणाली की बात करें तो, पीआर कंपनियां जनता या टार्गेट ऑडियंस के मन में किसी भी पार्टी की सकारात्मक इमेज बनाने में सक्षम होती हैं और इसके लिए, गलत या सही तरीके से टार्गेट ऑडियंस को प्रभावित करने वाले लोगों और चीजों पर उनका ध्यान सर्वाधिक होता है.
ये एजेंसिया अब सबसे ज्यादा सोशल मीडिया को महत्व देती है जहाँ मैन टू मैंन कॉन्टेक्ट सबसे अधिक प्रभावी ढंग से होता है.पी आर एजेंसियां अब यह तक डिसाइड करती है कि मंत्री ट्वीट क्या करेंगे, महावीर जैसे ट्रोलर्स क्या ट्वीट करंगे क्या स्टेटस डालेंगे यह भी पी आर एजेंसी ही तय करती है अब इस क्रम में गड़बड़ी हो जाती है जिससे ये एजेंसिया एक्सपोज हो जाती है.
उदाहरण के लिए आप देखिए कि नोटबन्दी के बाद 2017 आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया कि 99 फीसदी बैन किए गए नोट वापस आ गए हैं। इसके बाद नोटबंदी के मकसद को लेकर सरकार पर सवाल उठने शुरू हो गए तुंरन्त सरकार के कई मंत्रियों को नोटबंदी को सफल बताने के कार्य मे लगाया गया और मंत्रियों द्वारा एक के बाद एक ट्वीट किये गए लेकिन कई मंत्रियों के ट्वीट हूबहू एक दूसरे से मिलते-जुलते थे। इससे यह साफ हो गया कि इन मंत्रियों के ट्विटर हैंडल एक ही जगह से ऑपरेट किये जा रहे हैं.
अब पीआर एजेंसिया ही लोकतंत्र की दशा और दिशा तय कर रही हैं.
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