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यूपी के गुप्ता भाइयों ने मचाया दक्षिण अफ्रीका भूचाल, देना पड़ा राष्ट्रपति को इस्तीफा

यूपी के गुप्ता भाइयों ने मचाया दक्षिण अफ्रीका भूचाल, देना पड़ा राष्ट्रपति को इस्तीफा
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दक्षिण अफ़्रीका की सत्ताधारी पार्टी अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस (एएएनसी) ने राष्ट्रपति जैकब ज़ूमा को तुरंत पद छोड़ने के लिए कहा तब जाकर ज़ूमा इस्तीफ़ा देने को तैयार हुए.ज़ूमा के ऊपर कई गंभीर आरोप लगे हुए थे, जिनसे उनकी पार्टी परेशान है. 2016 में दक्षिण अफ़्रीका के सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ज़ूमा ने अपने निजी आवास पर खर्च किया धन सरकार को न लौटाकर संविधान का उल्लंघन किया है.
पिछले साल एक अदालत ने यह भी कहा था कि 1999 के हथियार सौदे में भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, रैकेट चलाने और मनी लॉन्डरिंग के 18 मामलों का सामना करना होगा.इसके अलावा ज़ूमा पर भारत से आए गुप्ता परिवार के साथ मिलकर 'स्टेट कैप्चर' का भी आरोप लगा है. गुप्ता परिवार और ज़ूमा इन आरोपों को ग़लत बताते हैं. स्टेट कैप्चर का मतलब ऐसे चरणबद्ध भ्रष्टाचार से है, जिसके तहत किसी को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार की नीतियों को तोड़-मरोड़ दिया जाता है.

ज़ूमा पर कैसे थे आरोप
ऐसा नहीं है कि ज़ूमा पर ये आरोप हाल ही में लगे हैं. पहले से उनके ऊपर ऐसे आरोप लगते रहे हैं और विपक्ष उनके ख़िलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी लाता रहा है. मगर हर बार वह बचते रहे क्योंकि उनकी पार्टी एएनसी के पास बहुमत है. लेकिन अब ऐसा क्या हो गया कि उनकी पार्टी ही उनके ख़िलाफ़ हो गई? इस संबंध में दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर फ़ॉर अफ़्रीकन स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर अजय कुमार दुबे बताते हैं कि इस बार ज़ूमा पर बाहरियों के साथ मिलकर 'स्टेट कैप्टर' का आरोप लगा है.
वह बताते हैं, "आरोप लगने से कोई दोषी सिद्ध नहीं होता. अपने ऊपर लगने वालों आरोपों के ख़िलाफ़ ज़ूमा कोर्ट में लड़ते रहते थे. कोर्ट का फ़ैसला आ जाने तक वह सुरक्षित रहते. पहले ऐसा होता था कि उनके ऊपर जो आरोप लगाते थे, जैसे कि यौन दुर्व्यवहार के आरोप, वे ब्लैक और दूसरे लोग लगाते थे. जब तक अश्वेत ऐसे आरोप लगाते थे, तब तक पार्टी ऐसे हैंडल कर रही थी कि यह गोरे लोगों को प्रोपगैंडा है."
"लेकिन अब पहली बार ऐसा हुआ कि बाहरी शख्स के ऊपर 'स्टेट कैप्चर' का आरोप है. इसे पार्टी हज़म नहीं कर पा रही है. खुले तरीके से यह काम हुआ कि हफ़्ते भर में तीन वित्त मंत्री बनाए गए. और वे भी किसी के घर पर. एक के बाद एक लोगों ने कहा कि उन्हें बनाने और हटाने में किसका योगदान है. पार्टी इसे बर्दाश्त नहीं कर रही."
'गुप्ता से कैसे बने जुप्ता फ़ैक्टर'
दरअसल 2016 में पूर्व उप वित्त मंत्री मकेबिसी जोनस ने आरोप लगाया था कि गुप्ता परिवार ने उन्हें अगला वित्त मंत्री बनकर उन्हें फ़ायदा पहुंचाने के लिए काम करने के बदले 600 मिलियन रैंड का प्रस्ताव दिया था. इसके बाद रिपोर्ट आई थी कि राष्ट्रपति ज़ूमा और गुप्ता बंधुओं ने मिलीभगत से सरकारी ठेके लिए. 2017 में एक लाख ईमेल लीक हुए थे जिनसे पता चलता था कि गुप्ता परिवार का प्रभाव कितना ज़्यादा है. इसके बाद गुप्ता परिवार और राष्ट्रपति के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया था. लोगों ने गुप्ता परिवार और राष्ट्रपति ज़ूमा के इस कथित मेलजोल के आधार पर एक नया शब्द गढ़ा था- ज़ुप्ता.
गुप्ता परिवार के बारे में प्रोफ़ेसर अजय कुमार दुबे बताते हैं, "ये लोग सहारनपुर से हैं. दक्षिण अफ़्रीका जाकर इन्होंने छोटा सा कारोबार शुरू किया. कार के बूट में रखकर जूते बेचते थे. फिर इन्होंने राजनीतिक संपर्क बनाए. जब अश्वेत सत्ता में आए तो उन्होंने राजनीति को खुलकर बिज़नस के लिए इस्तेमाल किया. इन्होंने (ज़ूमा ने) गुप्ता परिवार के बिज़नस को आगे बढ़ाने को काफ़ी योगदान दिया. आज यह स्थिति है कि जैकब ज़ूमा राजनीतिक चीज़ें भी उनकी पसंद के बिना नहीं करते."
क्या है एएनसी की परेशानी?
विपक्ष ने ज़ूमा के ख़िलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी ले आई जिसपर 22 फ़रवरी को मतदान होता. चर्चा है कि इस बार ज़ूमा को विश्वास मत हासिल करने में दिक्कत होती, लिहाजा एएनसी नहीं चाहती थी कि उसके लिए असहज स्थिति पैदा हो. 2016 में स्थानीय चुनावों में एएनसी को नुकसान उठाना पड़ा है. ऐसे में पार्टी को डर है कि ज़ूमा की ख़राब छवि के चलते अगले साल होने वाले चुनावों में भी उसके प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है.
ऐसा इसलिए भी है क्योंकि ज़ूमा के कार्यकाल में दक्षिण अफ़्रीका का आर्थिक मोर्चे पर बहुत ख़राब प्रदर्शन रहा है. नेल्सन मंडेला की 27 साल बाद रिहाई और एएनएसी के सत्ता में आने को दक्षिण अफ़्रीका में करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार सईद नक़वी बताते हैं कि ज़ूमा के नेतृत्व में दक्षिण अफ्रीका की अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई है.
वह कहते हैं, "दक्षिण अफ्रीका की गाड़ी लड़खड़ाती हुई चलती रही. ज़ूमा के आने पर निस्संदेह भ्रष्टाचार हुआ जो एंबेकी और मंडेला के जमाने में नहीं था. ज़ूमा के दौर को कलरफ़ुल नहीं माना जा सकता. यही माना जाएगा कि इस कार्यकाल में दक्षिण अफ़्रीका की छवि ख़राब हुई है.''
जानकार कहते हैं कि एएनसी आम चुनाव से पहले ज़ूमा को हटाकर ख़ुद को बेदाग़ दिखाना चाहती है. इसी कोशिश में पिछले साल दिसंबर में जैकब ज़ूमा को हटाकर सीरिल रामाफ़ोसा को पार्टी का अध्यक्ष चुना गया था.
अफ़्रीकन नेशऩल कांग्रेस का संविधान कहता है कि जो भी पार्टी का प्रमुख होगा, वही उनकी तरफ़ से राष्ट्रपति उम्मीदवार भी होगा. इस तरह से सिरिल रामाफ़ोसा को पार्टी प्रमुख बनने के बाद ज़ूमा को राष्ट्रपति पद छोड़ देना चाहिए था, मगर दो महीने तक पद पर जमे रहे. क्या वजह है कि विरोध के बावजूद ज़ूमा पद पर बने रहे? प्रोफ़ेसर अजय कुमार दुबे मानते हैं उनका व्यक्तित्व करिश्माई है.
"ज़ूमा का कार्यकाल करप्शन भरा रहा, विकास कम हुआ, मुद्रा रैंड में गिरावट आई, ग्रोथ रेट घटा. लेकिन ज़ूमा का व्यक्तित्व करिश्माई है. उनकी तुलना लालू से की जा सकती है. इतने आरोप लगे मगर फिर भी पॉप्युलर रहे." एक दिग्गज नेता का विकल्प एक दिग्गज नेता ही हो सकता है. प्रोफ़ेसर दुबे कहते है कि पिछले साल जब एएनसी ने सिरिल रामाफ़ोसा को अपना प्रमुख चुना तो इसलिए चुना, ताकि वह ज़ूमा को चुनौती दे सकें. पार्टी को ऐसा नेता चाहिए था जिसके पीछे लोग लामबंद हो सकें.
कौन हैं सिरिल रामाफ़ोसा?
भले ही एएनसी अगले साल होने वाले चुनावों के लिए सिरिल को नए चेहरे के तौर पर पेश करना चाह रही हो लेकिन उनका क़द भी काफ़ी बड़ा है.वरिष्ठ पत्रकार सईद नक़वी बताते हैं कि सिरिल एएनसी के काफी वरिष्ठ नेता हैं और नेल्सन मंडेला के बाद राष्ट्रपति पद के दावेदार भी थे, मगर उनकी जगह ताबो एंबेकी को राष्ट्रपति बनाया गया था.
वह कहते हैं, "जिस दौरान नेल्सन मंडेला ने ताबो एंबेकी को अपना उत्तराधिकारी बनाया था, सिरिल भी दावेदार थे राष्ट्रपति बनने के लिए. वह ट्रेड यूनियन के नेता थे. ज़ूमा तो मंडेला के कैबिनेट में बहुत जूनियर मंत्री थे. तब सिरिल बन नहीं पाए थे. अब उन्हें लग रहा है कि मेरा समय आ गया है. ज़ूमा के ऊपर भ्रष्टाचार और सेक्स स्कैंडल जैसे मामले आए हैं. पॉप्युलर टच के कारण भी शायद वह बच निकलते रहे."
आम चुनाव से पहले भले ही एएनसी सिरिल को राष्ट्रपति बनाना चाहती है ताकि उनके नेतृत्व में बेदाग़ चेहरा लेकर चुनाव में जाए. लेकिन अब तक के घटनाक्रम से क्या उसे नुक़सान नहीं होगा? प्रोफ़ेसर अजय कुमार दुबे कहते हैं कि एएनसी को तनिक नुक़सान नहीं होगा क उसे सत्ता से बाहर होना पड़े.

वह बताते हैं, "अभी ऐसी संभावना नहीं है कि एएनसी को सत्ता से बाहर होना पड़े. अभी कोई भी विपक्षी दल एएनसी के बराबर खड़े नहीं होते. अश्वेतों का असंतोष इतना नहीं बढ़ा है कि वे एएनसी से मुंह मोड़ लें. नेता से वे ज़रूर नाराज़ हो सकते हैं. रामाफ़ोसा तो वैसे भी अगली बार चुने जाएंगे." ज़ूमा के इस्तीफ़े से लग रहा है कि अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस की मुश्किल थोड़ी कम ज़रूर हुई है.

बीसीसी की रिपोर्ट
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