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पेनकिलर दवा बनी मुसीबत, पति को हुई 24 साल जेल की सजा

Majid Khan
20 Nov 2017 1:30 PM GMT
पेनकिलर दवा बनी मुसीबत, पति को हुई 24 साल जेल की सजा
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बीमार पति के लिए पत्नी ने भारत से दवा भेजी लेकिन वहीं दवा मुसीबत बन गई. पति को 24 साल की जेल की सजा हो गई. लक्ष्मी मोताम के पति संयुक्त अरब अमीरात में नौकरी करते हैं...

बीमार पति के लिए पत्नी ने भारत से दवा भेजी लेकिन दवा मुसीबत बन गई. पति को यूएई में 24 साल की जेल की सजा हो गई. लक्ष्मी मोताम के पति संयुक्त अरब अमीरात में नौकरी करते हैं. कुछ समय पहले पति की तबियत खराब हुई. फोन पर बातचीत के बाद लक्ष्मी ने अपने पति के लिए ट्रैमाडॉल की 20 टैबलेट्स भेंजी.

लक्ष्मी को जरा भी अहसास नहीं था कि यही दर्द निवारक दवा उनके पति को जेल पहुंचा देगी. संयुक्त अरब अमीरात में 400 से ज्यादा दवाओं पर प्रतिबंध है. ट्रैमाडॉल भी इन्हीं में से एक है. प्रतिबंध 2010 से है. समाचार एजेंसी थोमस रॉयटर्स फाउंडेशन से बातचीत में लक्ष्मी ने कहा, "वह कुली का काम करते थे और अक्सर मुझसे दवाएं भेजने को कहते थे. यह तीसरा मौका था जब मैंने उन्हें दवाएं भेजी. " 2016 में भेजी गई दवा के चलते लक्ष्मी के पति को यूएई में 24 साल की जेल हो चुकी है.

लक्ष्मी को सजा का पता भी थोड़ी देर से चला, "पहले वह रोज फोन किया करते थे और कुछ महीने बाद पैसा घर भेजा करते थे. अब मैं उन्हें पैसा भेजती हूं ताकि वह हमें फोन कर सकें. दो महीने में एक बार वह फोन करते हैं. आखिरी बार जब हमारी टेलिफोन पर बात हुई तो वह रो रहे थे." खाड़ी के देशों में काम कर रहे भारत के कामगार अक्सर खुद को ऐसी मुश्किलों में पाते हैं.

चिलचिलाती गर्मी में कई घंटे काम करने के बाद वे पेनकिलर का सहारा लेते हैं. कई कामगारों को लगता है कि छुट्टी करने पर पैसा कटेगा, इसीलिए दर्दनिवारक दवा के सहारे वे काम पर लगे रहते हैं. कबूतरबाजों और बिचौलियों के संपर्क में आने से भी कई लोग खाड़ी के देशों तक पहुंच जाते हैं. बहुतों को पता ही नहीं होता कि खाड़ी के देशों में कई दवाएं प्रतिबंधित हैं.

दवाओं के गैरकानूनी कारोबार के चलते यूएई में अब सख्त तलाशी हो रही है और सजा दी जा रही है. दुबई में ऐसे मजदूरों की मदद करने वाली वकील अनुराधा वोबीलिसेल्टी कहती है, "ऐसे लोगों में ज्यादातर गरीब और अशिक्षित होते हैं. वे बड़े सपनों के साथ यूएई आते हैं. दवाओं की वजह से मुझसे मदद मांगने वाले भारतीयों में से ज्यादातर के पास ट्रैमाडॉल थी."

अनुराधा अब तक ऐसे छह भारतीयों का केस लड़ चुकी हैं. भारत सरकार के रुख से अनुराधा निराश हैं, "भारत इस समस्या के लिए कुछ नहीं कर रहा है. भारत के माइग्रेंट प्रोटेक्शन अफसर या इमीग्रेशन अधिकारी कामगारों को इस दवा को ले जाने से जुड़ी चेतावनी नहीं देते हैं." अब भारतीय विदेश मंत्रालय का कहना है कि वह यूएई के संपर्क में है और मामले का हल निकालने की कोशिश कर रहा है.

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