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रोहिंग्या मुस्लमानों के घर वापसी पर बांग्लादेश और म्यांमार में हुआ समझौता
यंगून: रोहिंग्या शरणार्थियों की सुरक्षित घर वापसी पर बांग्लादेश व म्यांमार सरकार के बीच में गुरूवार को समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। समझौते में कोई एक समय सीमा निर्दिष्ट नहीं की गई। लेकिन संभावना जताई जा रही है कि अगले दो महीने के भीतर रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार में घर वापसी शुरू कर सकते है। हजारों रोहिंग्या मुसलमानों की घर वापसी को लेकर म्यांमार व बांग्लादेश के बीच में सकारात्मक वार्ता सम्पन्न हुई है। लेकिन एक सरकारी अधिकारी ने चिंता जताते हुए कहा है कि म्यांमार की शक्तिशाली सेना इस काम में प्रतिरोधी साबित हो सकती है।
म्यांमार की सेना द्वारा की गई कार्रवाई को अमेरिका ने 'जातीय सफाया' करार दिया है। हफ्तों तक चले गतिरोध के बाद रोहिंग्याओं की वापसी की शर्तों पर म्यांमार की राजधानी में आम सहमति बनी। गुरुवार को म्यांमार की प्रभावशाली नेता आंग सान सू ची और ढाका के विदेश मंत्री ए. एच. महमूद अली के बीच इस मसले पर विस्तार से चर्चा हुई। म्यांमार के श्रम और आव्रजन मंत्रालय के स्थायी सचिव मिएंट क्यांग ने पुष्टि करते हुए बताया, 'म्यांमार और बांग्लादेश ने आज MoU पर हस्ताक्षर किए।'
म्यांमार सरकार के प्रवक्ता ने भी ट्वीट कर समझौते की जानकारी दी। उधर, बांग्लादेश के विदेश मंत्री अली ने कहा, 'यह पहला कदम है। वे रोहिंग्याओं को वापस लेंगे। अब हमें काम शुरू करना है।' हालांकि कितने रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार वापस लेगा या समयसीमा क्या तय की गई है, इसकी जानकारी अभी नहीं मिली है। मानवाधिकार समूहों ने चिंता जताई है कि अगर रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार ने वापस आने की अनुमति दी तो उन्हें बसाया कहा जाएगा क्योंकि उनके घरों और गांवों में तो आग लगा दी गई थी।
इसके अलावा चिंता इस बात की भी है कि एक ऐसे देश में जहां मुस्लिम विरोधी भावनाएं बढ़ रही हैं, आगे उनकी सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाएगी। यह डील ऐसे समय में हुई है जब पोप फ्रांसिस दोनों देशों की यात्रा पर आने वाले हैं। रोहिंग्याओं की दुर्दशा पर पोप भी काफी मुखर होकर सामने आए हैं। म्यांमार में कई वर्षों से रोहिंग्याओं को निशाना बनाया जा रहा है। आरोप है कि सरकार भी उनके लिए कुछ नहीं करती, उन्हें देश का नागरिक ही नहीं समझा जाता।