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नेपाल के प्रधानमंत्री द्वारा पाकिस्तान की वकालत चिंताजनक

नेपाल के प्रधानमंत्री द्वारा पाकिस्तान की वकालत चिंताजनक
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चीन के प्रति उनके झुकाव पर बाद में चर्चा कर लेंगे। किंतु वे भारत में आकर पाकिस्तान की वकालत कर रहे हैं तो इसका मतलब है कि उनके इरादे नेक नहीं है।
अवधेश कुमार
नेपाल के प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली इस समय भारत दौरे पर हैं। जब कोई नेता किसी देश की यात्रा करता है तो यह सामान्यतः ध्यान रखता है कि वह ऐसा कोई प्रस्ताव न करे, अपील न करे जिससे मेजबान देश नाखुश हो। नेपाल के साथ परंपरागत संबंधों को देखते हुए उससे उम्मीद होना स्वाभाविक है कि वह भारत की भावनाओं को ध्यान रखे।
किंतु ओली ने इसके विपरीत किया है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से कहा कि नेपाल चाहता है कि अगला सार्क सम्मेलन जल्दी पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में हो और भारत उसमें शामिल हो। भारत के लिए नेपाल की ओर से ऐसा प्रस्ताव या अपील धक्का पहुंचाने वाला है, हालांकि यह हैरत में डालने वाला नहीं है। नेपाल को मालूम है कि 2016 में इस्लामाबाद में आयोजित सार्क सम्मेलन में भारत ने क्यांें लाने से इन्कार किया था। भारत की ओर से सम्मेलन में जाने की पूरी तैयारी थी। लेकिन उड़ी में आतंकवादी हमले के बाद भारत को न जाने का निर्णय करना पड़ा। सार्क का लक्ष्य क्षेत्र के देशों के बीच आपसी सहकार एवं सहयोग को उच्चतम अवस्था में ले जाना है। पाकिस्तान भारत में लगातार आतंकवाद को प्रायोजित कर रहा है। यह आज से नहीं है। भारत ने कई बार पाकिस्तान से संबंध सुधारने के लिए एक कदम आगे बढ़कर पहल की। किंतु परिणाम में हमें आतंकवादी हमले झेलने पड़े।
क्या के. पी. शर्मा ओली को यह नहीं पता कि भारत पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का शिकार है? उन्हें क्या पूरी दुनिया को यह पता है। भारत के साथ नेपाल के संबंध को देखते हुए तो उनको आतंकवाद के मामले मंें हमारे साथ खड़ा होना चाहिए। इसके विपरीत अगर वो पाकिस्तान की वकालत कर रहे हैं तो फिर हमें नेपाल को लेकर पहले से कहीं ज्यादा चौकन्ना होने की आवश्यकता है। पिछले महीने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहिद खकान अब्बासी ने नेपाल यात्रा किया था। ओली के प्रधानमंत्री बनने के बाद किसी प्रधानमंत्री की यह पहली यात्रा थी। इसने आम भारतीयों को चौंकाया, लेकिन ओली के इरादे से भारत पूरी तरह अवगत हो गया।
हालांकि ओली के प्रधानमंत्री बनने पर प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें फोन पर बधाई दी। इसके बाद विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को वहां भेजा। किंतु लगता है ओली कुछ दूसरी दिशा में ही सोच रहे हैं। उन्होंने भारत आने के पूर्व कहा था कि हम चीन के साथ अच्छे रिश्ते चाहते हैं। भारत के साथ हमारे रिश्ते हैं, सीमा भी खुली हुई है लेकिन हम एक देश पर निर्भर नहीं रहना चाहते। इसके पूर्व जब वे प्रधानमंत्री थे उन्होंने चीन के प्रति केवल झुकाव ही नहीं दिखाया, भारत विरोधी बयान लगातार दिए। प्रधानमंत्री मोदी के साथ आज साझा पत्रकार वार्ता में भी उन्होंने कहा कि हम चीन और भारत दोनों से अच्छे रिश्ते बनाए रखना चाहते हैं।
चीन के प्रति उनके झुकाव पर बाद में चर्चा कर लेंगे। किंतु वे भारत में आकर पाकिस्तान की वकालत कर रहे हैं तो इसका मतलब है कि उनके इरादे नेक नहीं है। हालांकि पाकिस्तान इस पर अवश्य खुश होगा कि चलो नेपाल जैसा पहले भारत के साथ खड़ा होने वाला देश हमारे लिए वकालत कर रहा है। कूटनीति में एक शिष्टाचार होता है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनसे शिष्टतापूर्वक कहा कि आतंकवाद के जारी रहते भारत के लिए सार्क सम्मेलन के लिए इस्लामाबाद जाना संभव नहीं है। अगर कूटनीतिक शिष्टाचार का पालन नहीं करना होता तो भारत कह सकता था कि आप अपनी सीमाओं में रहिए और पाकिस्तान के प्रति हमारी नीति हमें तय करने दीजिए। वैसे यह समझ से परे है कि नेपाल के अंदर पाकिस्तान प्रेम क्यों पैदा हो गया है? यह भी चीन का ही प्रभाव दिखता है।
तो हमें नए सिरे से नेपाल की सरकार से निपटने के लिए अपने को तैयार करना होगा।
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