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फिलीपिंस में ट्रंप से मिले पीएम मोदी, बढ़ सकती है चीन की मुश्किलें

आनंद शुक्ल
12 Nov 2017 1:29 PM GMT
फिलीपिंस में ट्रंप से मिले पीएम मोदी, बढ़ सकती है चीन की मुश्किलें
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आसियान सदस्य देशों के शिखर सम्मेलन में भाग लेने आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की। दोनों नेताओं ने फिलीपिंस के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेर्ते द्वारा आयोजित रात्रि भोज में एक-दूसरे से संक्षिप्त बातचीत भी की।

नई दिल्ली: आसियान सदस्य देशों के शिखर सम्मेलन में भाग लेने आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की। दोनों नेताओं ने फिलीपिंस के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेर्ते द्वारा आयोजित रात्रि भोज में एक-दूसरे से संक्षिप्त बातचीत भी की। उनके सम्मान में पसाय सिटी के एसएमएक्स सम्मेलन केंद्र में इस रात्रि भोज का आयोजन किया गया था।

यहां राजनयिकों ने बताया कि मंगलवार को आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान विवादास्पद दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में चीनी की आक्रामक सैन्य गतिविधियों, उत्तर कोरिया के परमाणु मिसाइल परीक्षणों और क्षेत्रीय सुरक्षा परिवेश जैसे मुद्दों पर भी चर्चा होगी। प्रधानमंत्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप, जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे और रूस के प्रधानमंत्री दिमित्री मेदवेदेव के साथ मुलाकात की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह बैठक इसलिए भी अहम है क्योंकि भारत को चीन के आक्रमक विदेश नीति का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी संभावना जतायी जा रही है कि चीन के इस आक्रमक नीति से निपटने के लिए भारत, अमेरिका और जापान के बीच अहम बैठ हो सकती है।



सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे, आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैकोल्म टर्नबुल और रूस के प्रधानमंत्री दमित्री मेदवेदेव और कुछ अन्य देशों के नेताओं के साथ अलग से द्विपक्षीय मुलाकातें कर सकते हैं। दस प्रमुख देशों का संगठन दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) की बैठक में भाग लेने के लिये म्यांमा की नेता आंग सान सू की, कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन सेन, मलेशिया के प्रधानमंत्री नजीब रज्जाक, सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सिएन लूंग और न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जे आरडेर्न पहले ही यहां में पहुंच चुके हैं। व्यापार और निवेश के साथ सुरक्षा एवं रक्षा क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर जोर के साथ भारत और आसियान के बीच संबंध पिछले कुछ साल से मजबूत हो रहा है।

मजूमदार ने कहा कि आतंकवाद एक प्रमुख मुद्दा है जिसपर न केवल आसियान शिखर सम्मेलन में बल्कि पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भी चर्चा होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि आतंकवाद के लिये धन के प्रवाह पर रोक आतंकवाद पर शिकंजा कसने के मकसद से सम्मेलन में कुछ प्रस्ताव पारित किए जा सकते हैं। आसियान शिखर सम्मेलन में व्यापार और निवेश संबंधित मुद्दों पर अधिक जोर दिये जाने की संभावना है। पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में नेताओं के समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद, अप्रसार और पलायन जैसे मुद्दों पर गहन विचार-विमर्श होगा। दस आसियान सदस्य देशों के अलावा पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भारत, चीन, जापान, कोरिया गणराज्य, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड तथा अमेरिका और रूस शामिल हो रहे हैं।

मोदी आसियान-भारत तथा पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलनों को मंगलवार को संबोधित करेंगे। वह आसियान की 50वीं वर्षगांठ के मौके पर आयोजित विशेष कार्यक्रम में भी भाग लेंगे। भारत समेत आसियान क्षेत्र की कुल आबादी 1.85 अरब है जो वैश्विक आबादी का एक चौथाई हिस्सा है। क्षेत्र का सकल जीडीपी 3800 अरब डॉलर से अधिक का है।

पिछले 17 साल में आसियान से भारत में 70 अरब डॉलर का निवेश आया जो कुल एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ) का 17 प्रतिशत है। वहीं भारत का आसियन में निवेश इसी अवधि में 40 अरब डालर से अधिक है। कट्टरता से मुकाबला करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने के भारत के प्रस्ताव पर भी चर्चा होने की संभावना है। भारत इसके लिये तारीख तय करना चाहता है।

प्रधानमंत्री आसियान व्यापार और निवेश शिखर सम्मेलन के साथ-साथ क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) के नेताओं की बैठक में भी भाग लेंगे। आरसीईपी में 10 सदस्यीय आसियान के अलावा भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं। यह समूह मुक्त व्यापार समझौते के लिये बातचीत कर रहा है। फिलीपीन की अपनी पहली यात्रा के दौरान मोदी भारतीय समुदाय द्वारा आयोजित स्वागत समारोह में शामिल होंगे और अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआरआरआई) तथा महावीर फिलिपीन फाउंडेशन भी जाएंगे।

फिलीपीन में भारत के राजदूत जयदीप मजूमदार ने कहा, आसियान का प्रत्येक देश चाहता है कि भारत हर संभव तरीके से क्षेत्र से जुड़े. यह एक वास्तविक गठजोड है. अमेरिका, फ्रांस और जापान रणनीतिक रुप से महत्वपूर्ण भारत-प्रशांत क्षेत्र (इंडो-पैसेफिक रिजन) में भारत की बडी भूमिका की वकालत करते रहे हैं. चीन इस क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढाने का प्रयास कर रहा है.

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