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राष्ट्रीय
सेक्स मेरी भी जरूरत है, जब बोली ये महिला जानिए क्यों?
शिव कुमार मिश्र
9 Dec 2017 12:17 PM GMT
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ईरान में तकरीबन एक करोड़ लोग किसी न किसी विकलांगता से ग्रस्त हैं. रुढ़िवादी देश ईरान में सेक्स जैसे विषय पर बात करना वर्जित है तो विकलांग महिलाओं के विषय में सेक्स जैसी बात पर तो सोचा भी नहीं जा सकता.
उत्तरी ईरान के एक छोटे से गांव में रहने वाली 41 साल की विकलांग महिला मितरा फ़राज़ंदाह अपने ख़ुद के अनुभव और निराशाओं के बारे में बताती हैं. वह कहती हैं, "मैं एक महिला हूं. मैं एक ऐसी महिला हूं जो 75 फ़ीसदी शारीरिक विकलांगता से ग्रस्त है. हां, मैंने प्यार का अनुभव किया है. मैं हमेशा कहती हूं कि जिस शख़्स ने कभी प्यार का अनुभव नहीं किया या वह प्यार में नहीं पड़ा तो वह खेत में पक्षियों को डराने के लिए खड़े एक पुतले की तरह है."
11 साल की उम्र में प्यार
मितरा कहती हैं कि जब वह 11 साल की थीं तब उन्होंने अपने एक पड़ोसी के बेटे को लेकर खास भावनाओं को महसूस किया और इन भावनाओं का मतलब वो तब समझ नहीं पाईं. वह कहती हैं, "उन दिनों मैं ख़ुद को इंसान नहीं समझती थी. विकलांगता के कारण लगता था कि मुझे जीने का हक़ भी नहीं है. मैं मौत के अवांछित क्षण का इंतज़ार कर रही थी."
मितरा का कहना है कि 14 सालों तक उन्होंने प्यार को अपने सीने में दफ़न रखा. वह बताती हैं कि 14 साल बाद उन्होंने उस शख़्स और अपने परिवार के आगे यह बताने की हिम्मत की. उस शख़्स ने उन्हें सराहा, लेकिन उनके परिवार ने हामी नहीं भरी. वह कहती हैं कि कुछ सालों तक उनकी ज़िंदगी जहन्नुम में तब्दील हो गई, लेकिन उनके प्यार ने उन्हें यह सिखाया कि ख़ुद से प्यार कैसे किया जाना चाहिए.
"उस शख़्स से मैंने 30 सालों तक प्यार किया. हालांकि, हम कभी भी साथ नहीं रहे. लेकिन विकलांगता की परवाह किए बिना सच यह है कि मैं एक महिला हूं जिसको हर उस चीज़ की ज़रूरत होती है जो एक महिला को होती है."
'सेक्स एक ज़रूरत है'
मितरा की तमन्ना है कि उनका प्रेमी उन्हें बांहों में भरे और उनके बालों पर हाथ फेरे. वह कहती हैं कि उनके समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं जो ऐसा सोचते हैं कि उनकी जैसी महिलाएं प्यार करने के लायक़ नहीं हैं और इससे उन्हें दर्द होता है.
वह कहती हैं, "मैं जिसे प्रेम करती हूं उसके साथ मेरे पिता रहने की अनुमति नहीं देते. मेरी तरह कई विकलांग महिलाएं यौन और भावनात्मक ज़रूरतों को दबाए जाने से पीड़ित हैं." "मैं मानती हूं कि सबसे बड़ा बदलाव हमारे अंदर से ही आता है. हमको सबसे अधिक ज़रूरत अपनी यौन क्षमताओं और सीमाओं को स्वीकार करने की है."
मितरा कहती हैं कि "हमें विश्वास करना चाहिए कि हम पूरी तरह से जीवन जीने के हक़दार हैं और विकलांगता की परवाह किए बिना हम इसका पूरा आनंद लें." "मैं बहुत-सी विकलांग महिलाओं को जानती हूं जिनका परिवार इस बात से अनजान है कि वे भी यौन प्राणी हैं क्योंकि ये महिलाएं ख़ुद भी ऐसा विश्वास करने में नाकाम रही हैं. अगर आपको यक़ीन नहीं है कि आप भी प्यार की हक़दार हैं तो आपका परिवार कैसे यक़ीन करेगा?" हालांकि, उनके पिता भी उनकी भावनाओं को अभी भी दबाते हैं लेकिन मितरा को अपनी भावनाओं और ज़रूरतों को ज़ाहिर करने पर गर्व है.
वह कहती हैं, "अभी भी बहुत से लोग हैं जो इस पर विश्वास करते हैं कि विकलांग महिलाओं की प्राथमिकता अपनी यौन और भावनात्मक ज़रूरतें ज़ाहिर करना नहीं है, लेकिन सत्य बिलकुल अलग है." कई दफ़े विकलांग लोगों की यौन ऊर्जा सामान्य मनुष्य से अधिक होती हैं, ऐसा मितरा मानती हैं. वह कहती हैं कि उनके जैसे शख़्स के लिए ऐसा नामुमकिन है क्योंकि उनको गंभीर शारीरिक विकलांगता है. मितरा कहती हैं कि अगर विकलांग महिला की यौन आवश्यकताएं पूरी नहीं होती हैं तो ये बहुत हानिकारक हो सकता है.
साभार बीबीसी
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