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सऊदी अरब के सरकारी मीडिया में शाही फ़रमान जारी हुआ है जिसमें कहा गया है कि पुरुषों की तरह महिलाओं को भी ड्राइविंग लाइसेंस जारी किया जाएगा और अन्य ट्राफ़िक क़ानून लागू होंगे। सऊदी अरब में महिलाओं को बहुत से से सामाजिक अधिकारों से वंचित रखा गया है। पूर्व नरेश शाह अब्दुल्लाह ने वर्ष 2013 में महिलाओं को शूरा काउंसिल में शामिल होने की अनुमति दी थी और म्युनिसिपल चुनावों में महिलाओं के भाग लेने और वोट डालने की भी घोषणा की थी।
अभी हाल ही में सऊदी अरब ने जब अपना 87वां राष्ट्रीय दिवस मनाया तो स्टेडियम में आयोजित कार्यक्रमों में महिलाओं को भी भाग लेने की अनुमति मिली। जिद्दह शहर में एक म्युज़िकल कंसर्ट भी आयोजित किया गया जिसमें सऊदी अरब के 11 संगीतकारों ने भाग लिया। यह सब सऊदी अरब में बदलाव के संकेत है जिनके बारे में टीकाकारों का कहना है कि वर्तमान प्रशासन पश्चिमी देशों को संतुष्ट करने के लिए देश के भीतर बदलाव कर रहा है लेकिन इसके लिए उसे कट्टर वहाबी धड़े से मोर्चा लेना पड़ रहा है जो सऊदी अरब के भीतर बहुत अधिक ताक़तवर माना जाता है।
देश में किए जा रहे बदलाव से कट्टरपंथी वहाबी धड़ा बहुत अधिक नाराज़ है। दूसरी ओर सऊदी अरब की सरकार अपनी क्षेत्रीय नीतियों के कारण बहुत बुरी तरह फंस गई है और देश के भीतर आर्थिक संकट जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है। सऊदी अरब ने सीरिया, इराक़, बहरैन, यमन और लीबिया में युद्ध की आग भड़काने में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया लेकिन उसे किसी भी मोर्चे पर सफलता नहीं मिली और इस बीच वह लगातार आर्थिक संकट में उलझता चला गया। इस समय आर्थिक समस्याओं के कारण आम लोगों में आक्रोश पनप रहा है। अतः सरकार कुछ लोक लुभावन क़दम उठाकर असंतुष्ट लोगों को बहलाने की कोशिश कर रही है।