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कर्नाटक तो अंगड़ाई है, मोदी शाह की जोड़ी ने पहली मात खाई है, क्योंकि?

कर्नाटक तो अंगड़ाई है, मोदी शाह की जोड़ी ने पहली मात खाई है, क्योंकि?
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इस खबर को पढ़कर आप जान जायेंगें , कर्नाटक की हकीकत

पिछले 15 मई से शुरू हुए कर- नाटक के पहले एपिसोड का अंत शनिवार को विधान सभा में मुख्यमंत्री यदियुरप्पा के इस्तीफे की घोषणा के साथ ही अंत हो गया. 15 मई को विधान सभा चुनाव परिणाम के रूझान के बाद भाजपा नेता और उनके समर्थको के जश्न के साथ ही इस नाटक की शुरूआत हुई जिसका सस्पेंस अंत तक बरकरार रहा. या यू कहे कि अभी भी सस्पेंस खत्म नही हुआ है खत्म क्यो मेरे जैसे लोग मानते है कि कर- नाटक के नाटक के सस्पेंस की सुरूआत तो अब हुई है.


देश में शायद विधान सभा का यह पहला चुनाव है जिसके कास्टिंग में ही संस्पेस दिखायी दिया. कर्नाटक की सत्ता पर काबिज कांग्रेस ने भाजपा को मात देने के लिये लिगायत का मुद्दा उठाया तो भाजपा ने ,सिद्धारमैया के बहाने कांग्रेस के युवराज और उनके पूरे परिवार की ऐसी तैसी करने में कोई कसर नही छोड़ी. कर्नाटक की जनता ने भी इस नाटक में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी और ऐसा जनादेश दिया कि सभी दलों की पोल ही खोल कर रख दी है. पहले चुनाव परिणाम के संकेत से बौराये जहां भाजपा के नेताओं को 104 सीट पर लाकर उन्हें अपनी औकात दिखा दी वही शाह मोदी के दिल्ली में जश्न मनाने की मंशा पर पानी फेर दिया.

यही हाल कांग्रेस और जेडी एस का रहा . कांग्रेस ने अपनी सत्ता गवाई तो कांग्रेस को रसातल में पहुंचाने वाली जेडी एस 37 सीटों पर सिमट गयी. लेकिन कहते है ना राजनीति सांप सीढ़ी का खेल है और तीनो प्रमुख दलों ने इस हार को जीत में तब्दील करने के लिये सत्ता का घिनौना खेल खेला. एक तरफ कांग्रेस ने जहा वक्त गवाये देवगौड़ा जी के सुपुत्र कुमार स्वामी को मुख्यमंत्री का पद देकर भाजपा का जूता उसके सर पर ही दे मारा और गोवा और मणिपुर जैसे राज्यों के हार का बदला लेने की कोशिश.


वही बहुमत नही मिलने के बावजूद मोदी शाह की जोड़ी ने राज्यपाल बजुभाई वाला को बलि का बकरा बना कर 75 वर्ष की उम्र पर पहुंचने वाले मार्गदर्शक मंडल के पात्र येदियुरप्पा को कर्नाटक की कमान थमा दी. लेकिन बार - बार सत्ता के लिये नये - नये दाव चलने वाली भाजपा का यह दाव उल्टा पड़ गया और मोदी सरकार में विरोधी दलों के निशाने पर रही न्यायपालिका ने भी अपने फैसले से सारी गंदगी धो डाली. न्यायपालिका मेंमात खायी भाजपा के नेता तब भी नही चेते. अगर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी की तुरंत बाद कर्नाटक के राज्यपाल या मुख्यमंत्री का इस्तीफा हो जाता तो राजनीतिक पंड़ितो की माने तो भाजपा फायदे में रहती . लेकिन अंत तक अधंरे में रहे भाजपा नेतृत्व को इस बात का तनिक भी भान नही रहा कि कोर्ट के फैसले ने भाजपा विरोधी खेमें को वह संजीवनी दी जिसके चलते कर्नाटक के भाजपा सरकार की अकाल मौत हुई. खैर मरने के बाद भी ना तो भाजपा मरी है और ना ही यदियुरप्पा.


खेल तो अब शुरू हुआ है. लगभग 22 वर्षो के बाद कुमार स्वामी उसी कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बनने जा रहे है जिसने उनके पिता को प्रधानमंत्री बनाया था.यानि दोनो पिता पुत्र भाग्यशाली रहे है जिन्होनें कांग्रेस की सीढ़ी पर चढकर सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने में सफलता पायी.भाजपा समर्थको का मानना है कि कांग्रेस ने जे डी एस को समर्थन देकर भारी भूल की है. और उसका हश्र बिहार और यू पी की तरह होगा. लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञो की माने तो खुद को अस्तित्व विहीन होने से पहले कांग्रेस की लीड़र शीप ने बुझते दिये की तरह तेज लौ में मोदी शाह को जो मात दी है वह काबिले तारीफ है. ये मानी हुई बात है कि मोदी शाह की जोड़ी कर्नाटक की हर घटना पर पैनी नजर रखे हुए है और यह असंभव नही की आने वाले समय में शतरंजी चाल के तहत वे जे डी एस विधायको के एक बड़े धड़े को अपने पाले में ना कर ले.


शायद इसी रणनीति के तहत मोदी शाह की जोड़ी ने दो कदम पैर पीछे खिंचा है. कुमार स्वामी के मंत्रिमंडल का गठन और विश्वास मत प्राप्त करने में फिलहाल कोई कठिनाई नही है. लेकिन आने वाला समय आसान भी नही है.कर्नाटक के बहाने कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिये विपक्षी एकता की ऐसी नींव रखी है जिसके साफ संकेत है कि भाजपा को हराने के लिये सबको अपनी शहादत देनी होगी. जाहिर तौर पर कर्नाटक की लोकसभा सभा की सीट पर मजबूत दावेदारी देकर कांग्रेस जे डी एस से समर्थन का पूरा कीमत वसूलेगी. भाजपा के विरोधी दल जहां अब सभी राज्यो में होने वाले चुनाव के पहले गठबंधन की कोशिश करेगें तो भाजपा भी अपने सहयोगियो को आंखे नही दिखायेगी. हालांकि इन सब मुद्धो पर हम बाद मेंचर्चा करैेगें फिलहाल यही कहा जा सकता है कि कर्नाटक में भाजपा और कांग्रेस के बीच शुरू हुई लड़ाई तो एक अंगड़ाई है आने वाले दिनों में बड़ी लड़ाई है. यानि भाजपा के विजय रथ को कांग्रेस ने फिलहाल रोका है मात देना बाकी है.

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