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Archived
कूलर में पानी भरने की समस्या से जूझ रहा है देश का युवा वर्ग!
शिव कुमार मिश्र
5 May 2018 8:29 AM GMT
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गर्मियों का समय आ गया है. ये वो समय है जब क्रैश कोर्स कराने वाले सेंटर, कोल्ड ड्रिंक की बोतलें, मच्छर, काले चश्मे देश में अचानक से बढ़ जाते हैं.
गर्मियों का समय आ गया है. ये वो समय है जब क्रैश कोर्स कराने वाले सेंटर, कोल्ड ड्रिंक की बोतलें, मच्छर, काले चश्मे देश में अचानक से बढ़ जाते हैं.जंगल से ज्यादा लकड़ियां आइसक्रीम के ठेलों पर डंडी और चम्मच के रूप में मिलने लगती हैं. अपना भविष्य पूर्व में बर्बाद कर चुके लोग परिचितों के घर बैठते हैं और राय दे-देकर टीनएजर्स के भविष्य के साथ खेलते हैं.
शहरों में भी गमछे बढ़ जाते हैं और नेताओं के पीछे घूमने वाले चमचे घट जाते हैं. खलिहर से खलिहर आदमी व्यस्त हो जाता है क्योंकि हर शाम उसे तीन जगह शादियों में जाना होता है.
ये वो समय होता है, जब सबसे ज्यादा मौज मिस्त्रियों और इस्त्रियों से काम लेने वालों की होती है. क्योंकि गर्मी में ढेर सा बिजली का सामान फुंकता है और इस्त्री करने वालों के पास बारातों में पहनने के लिए रोज़ धुले कपड़ों का ढेर पहुंचता है.
लेकिन एक कौम और भी है जो गर्मी में सबसे ज्यादा परेशान होती है.....ये होते हैं हर घर में पाए जाने वाले लड़के.
मन ही मन मान लिया जाता है कि अगर ये लड़के हैं तो बलिष्ठ भी होंगे और अगर बलिष्ठ हैं तो कूलर में पानी भर ही सकते हैं. इसलिए ये सुनिश्चित किया जाता है कि इनसे बाल्टियों में भरवा-भरवाकर कूलर में पानी डलवाया जाए.
कई जगह ऐसी प्रथा भी है कि अगर कूलर तक पाइप पहुंच सकती है तो कूलर को जान-बूझकर ऐसी जगह पर रख दिया जाता है, जहां बाल्टी लेकर ही पहुंचा जा सके.
किवदंती है कि एक बार एक लड़के ने जुगाड़ से कूलर तक पाइप पहुंचा दी थी. इस अनहोनी घटना के बाद उसके घरवालों ने कूलर को बाहरी खिड़की पर ऐसी जगह पर फिट करा दिया, जहां पहुंचने मात्र के लिए घर का आधा चक्कर लगाना पड़ता था.
इस बात का विशेष ध्यान दिया जाता है कि कूलर के आसपास ढेर से मच्छर हों.
आठ साल की उम्र से कूलर में पानी भर रहे कूलेंद्र बताते हैं कि उनके घर वाले तो कूलर के पानी में ही मच्छर पाल लेते हैं ताकि कूलर खोलते ही वो उन्हें काट सकें.
मच्छरों के काटने पर लड़कों के हाथ से अक्सर पानी छलक जाया करता है. ऐसे मौकों पर "एक काम ढंग से नहीं कर सकता नालायक" कहने के लिए विशेष तौर पर बड़ी बहन या मां वहीं कहीं खड़ी रहती हैं.
प्रताड़ना का दौर यहीं ख़त्म नहीं होता, इस प्लास्टिक युग में लड़कों से जान-बूझकर स्टील या लोहे की बाल्टी में पानी भरवाया जाता है. जिन बाल्टियों का वजन, उनमें आने वाले कुल पानी के वजन से भी दुगुना होता है.
नाम न बताने की शर्त पर एक युवक ने हमें ये बताया कि कई बार घर वाले और क्रूर हो जाते हैं. बजाय कूलर में सीधे पानी उड़ेलवाने के वो मग्गे से एक-एक मग्गा पानी जाली पर बने सुराख से डालने को कहते हैं. बदले में घरवालों की ये दलील होती है कि बार-बार साइड से खोलने से कूलर में लगी जाली झड़ने लगती है. ऐसी परिस्थिति में उन्हें कूलर के पास देर तक झुककर खड़े रहना पड़ता है और कमरदर्द के अलावा देर तक मच्छर उन्हें काट पाते हैं.
कुछ लड़कों का अनुभव और भी बुरा है, वो बताते हैं कि मुश्किल तब होती है जब एक तरफ आप कूलर भर रहे हों और दूसरी तरफ नल पर भरने को दूसरी बाल्टी लगा आए हों. समय के साथ न चल पाने पर अगर एक चुल्लू पानी भी बाल्टी से बह जाए तो वैश्विक जल संकट पर आधे घंटे का भाषण सुनने को अलग मिल जाता है.
हमारी आत्मा तो ये जानकर कांप गई कि इतना सब करने के बाद भी अगर कभी टुल्लू फुंक गया तो लड़कों को ये सुनने को मिलता है कि तुमने ही मोटर पर पानी उड़ेल दिया होगा.
अब तक इस बड़े मुद्दे पर दुनिया के किसी नेता का ध्यान नहीं गया, न मीडिया या मानवाधिकार संगठनों ने ही इस शोषण के खिलाफ आवाज उठाई. युवावर्ग खुद इसके खिलाफ आगे नहीं आ पा रहा है क्योंकि जैसे ही वो कूलर में पानी भर कर ठंडी हवा में सांस लेना चाहता है. उसे फ्रिज की बोतलें भरने में लगा दिया जाता है.
अतुल कुमार श्रीवास्तव
शिव कुमार मिश्र
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