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बेटा करेगा मुख्यमंत्री पद की दावेदारी, जिससे पिता का सीएम न बन पाने का सपना भी होगा पूरा

बेटा करेगा मुख्यमंत्री पद की दावेदारी, जिससे पिता का सीएम न बन पाने का सपना भी होगा पूरा
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मध्य प्रदेश की राजनीति में चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गई है. अगले साल लगभग इसी वक्त राज्य में चुनावी बिगुल बज चुका होगा. माना जा रहा है कि प्रदेश में भाजपा का सर्वमान्य चेहरा और मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चुनौती देने के लिए कांग्रेस की तरफ से ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे.
दिलचस्प बात है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता और दिवंगत कांग्रेसी नेता माधवराव सिंधिया दो बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए. मध्य प्रदेश के स्थापना दिवस पर न्यूज18 आपको उनसे जुड़े कुछ ऐसे ही किस्से बताने जा रहा है. 1989 में चुरहट कांड के चलते अर्जुन सिंह पर इस्तीफे का दबाव बढ़ा तो राजीव गांधी की इच्छा तत्कालीन रेलमंत्री माधवराव सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाने की थी. उधर, अर्जुन सिंह इस्तीफा न देने की बात पर अड़े थे.
बताया जाता है कि अंतिम समय तक सिंधिया भोपाल में अपने मुख्यमंत्री बनने का इंतजार करते रहे, लेकिन अंतत: एक समझौते के तहत मोतीलाल वोरा को मुख्यमंत्री बना दिया गया. हालांकि, इसके बाद राजीव गांधी अर्जुन सिंह से खासे नाराज रहे. अर्जुन सिंह के धुर विरोधी श्यामाचरण शुक्ल को कांग्रेस में वापस ले लिया गया और वोरा के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया गया. इसके बाद अर्जुन सिंह मध्यप्रदेश की राजनीति में कभी वापस नहीं आए.
मध्य प्रदेश में शुरू से ही दिग्विजय सिंह और माधवराव सिंधिया के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंदिता रही. वर्ष 1993 में जब दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बने, उस समय माधवराव सिंधिया का नाम भी मुख्यमंत्री बनने वालों में शीर्ष पर था. किन्तु, एक बार फिर एकदम से पांसे पलट गए और अर्जुन गुट ने दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनवा दिया. सिंधिया अब दूसरी बार मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए थे.
माधवराव सिंधिया ने वर्ष 1979 में अपनी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया के विपरीत जाकर कांग्रेस पार्टी ज्वॉइन कर ली थी. इसे लेकर राजमाता और माधवराव के बीच कटुता की खबरें आईं.
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी किताब 'न दैन्यं न पलायनम्' में लिखा है कि मां और पुत्र के बीच खाई पैदा हो गई है. वह कम से कम मुझे तो अच्छी नही लगी. जब राजमाता विजयाराजे सिंधिया की मौत हुई, तब माधवराव की उनसे बातचीत बंद थी. जब वे अपनी मां के अंतिम संस्कार के लिए आए तो वहीं पर फूट-फूट कर रोने लगे. तब लोगों ने उन्हें ढांढस बंधाया था.
हालांकि, वर्ष 1971 में महज 26 साल की उम्र में माधवराव सिंधिया जनसंघ के समर्थन से लड़े थे. वर्ष 1977 में माधवराव ने निर्दलीय रूप से ग्वालियर का चुनाव लड़ा. माधवराव के लिए यह चुनाव जीतना लोहे के चने चबाने जैसा था. जिसके बाद राजमाता को उनके पक्ष में अपील करनी पड़ी, तब जाकर माधवराव अकेले ऐसे प्रत्याशी थे, जो मध्य प्रदेश की 40 लोकसभा सीटों में से एक पर निर्दलीय विजयी हुए. बाकी पर जनसंघ की जीत हुई.
माधवराव सिंधिया और संजय गांधी को हवाई जहाज उड़ाने का बहुत शौक था. दोनों सफदरजंग हवाई पट्टी पर हवाई जहाज उड़ाने जाते थे. उस समय संजय गांधी के पास नया लाल रंग का जहाज पिट्स एस-2ए वापस आया था, क्योंकि इस विमान को जनता पार्टी की सरकार ने जब्त कर लिया था.
इस जहाज को संजय और माधवराव सिंधिया उड़ाने वाले थे, लेकिन किसी वजह से सुबह सिंधिया की नींद नहीं खुल पाई और अकेले संजय उसे उसे उड़ाने पहुंच गए. यह उड़ान संजय के लिए अंतिम उड़ान बनकर रह गई, क्योंकि जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो गया और संजय गांधी की मृत्यु हो गई.
इसके बीस साल बाद 30 सिंतबर 2001 को माधवराव सिंधिया की भी एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई. इस बार 8 सीटों वाले सेसना सी-90 हवाई जहाज से माधवराव सिंधिया कानपुर में एक चुनावी सभा का संबोधित करने जा रहे थे. इस हादसे में चार पत्रकारों की भी मौत हो गई थी.
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