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AMU मुद्दे से उभरा संवैधानिक संकट, पूर्व उपराष्ट्रपति पर हमले के सवाल पर भारतीय सेना कर सकती है RSS के खिलाफ कार्यवाही

AMU मुद्दे से उभरा संवैधानिक संकट, पूर्व उपराष्ट्रपति पर हमले के सवाल पर भारतीय सेना कर सकती है RSS के खिलाफ कार्यवाही
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AMU मे जिन्नाह की तस्वीर के मुद्दे पर, जिन्नाह पर हमला या बचाव से लाभ नही है। भाजपा कर्नाटक हार रही थी। पर इस मुद्दे ने इसे वापस मुकाबले मे ला दिया। यद्यपि अभी भी समय है। इसलिये कृपया तथ्यो पर ध्यान केंद्रित करे.
AMU मे जिन्नाह की तस्वीर के मुद्दे पर, जिन्नाह पर हमला या बचाव से लाभ नही है। भाजपा कर्नाटक हार रही थी। पर इस मुद्दे ने इसे वापस मुकाबले मे ला दिया। यद्यपि अभी भी समय है। इसलिये कृपया तथ्यो पर ध्यान केंद्रित करे:
1. मुख्य मुद्दा भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति, जिस पद कि सुरक्षा के लिये भारतीय सेना शपथ लेती है, के ऊपर हत्या के इरादे से किया गया, योजनाबद्ध हमला है। जिसे RSS के नेतृत्व मे, संघी गुंडो द्वारा, यूपी पुलिस के संरक्षण मे अंजाम दिया गया। आप यह समझ लिजीये कि RSS-ABVP के लोग उस दिन अलीगढ़ मे जिन्नाह की तस्वीर हटाने नही गये थे। वो यूनियन आफ इंडिया (UNION OF INDIA) के खिलाफ आतंकवादी हमला करने गये थे!
क्या भारतीय सेना नैतिक और कानूनी तौर पर यूनियन आफ इंडिया (UNION OF INDIA) के विरुद्ध हमले के खिलाफ जवाब देने के लिये बाध्य नही है? हामिद अंसारी यूनियन आफ इंडिया (UNION OF INDIA) के प्रतीक हैं। ये कैसे मुमकिन है कि सेना ऐसी स्थिति मे भी जवाब ना दे जहाँ राज्य और राज्य-बाह्य लोगो के दुरभिसंधि द्वारा भारतीय गणराज्य के आधार पर हमला हो!
हमारे सम्विधान की प्रस्तावना कहती है, "हम भारत के लोगों" द्वारा एक सम्प्रभु देश वैधानिक तरीके बना रहे हैं। सेना ऐसे राज्य-बाह्य या राज्य के लोगो के खिलाफ कार्यवाही करने के लिये बाध्य है, भले ही वो कानूनन चुने गये हों!! यही नियम है!!!
याद रहे कि मोदी ने पहले सेना का राजनीतिकरण किया। जनरल विपिन रावत,जो एक मोदी नियुक्ति है, असम जाकर कहते हैं कि "चिंता का विषय है कि यूडीएफ भाजपा से भी तेज़ बढ़ रही है"। ये एक आर्मी आफीसर के द्वारा अपनी सीमा का उल्लंघन है। ये, वोटर्स को प्रभावित करने के लिये, वैधानिक मामलो मे दखल तुल्य है। क्या एक आर्मी आफीसर एक पब्लिक प्लेटफार्म से किसी राजनितिक दल के लिये वोट मांग सकता है?
इसलिये, AMU मामले मे, हमारे पास, RSS को राष्ट्रविरोधी करार देने का पूर्ण नैतिक आधार हैं। RSS ने यूनियन आफ इंडिया (UNION OF INDIA) को चुनौती देने की भयानक भूल की है।
भारत की सम्प्रभुता को चुनौती दी है।
ये कहना कि आज की तिथि मे, किसी मुसलिम का बचाव करना व्यावहारिक नही है, भले ही वो पूर्व उपराष्ट्रपति ही हो, एक तुच्छ बुर्जुआ कुतर्क है। ना ये उचित व्यावहारिक राजनीति है, ना ही इस तर्क मे अपने विरोधी को फांसने की योग्यता दिखती है।
मोदी ने परम्पराओ को तोड़ा है और भारतीय गणराज्य और हमारे सम्विधान को चुनौती दी है। हिंदुत्व की आड़ मे मोदी ने कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका, को अपने राजनीतिक लाभ के लिये विकृत किया है। वो देखना चाहते हैं कि सिस्टम के कितना दम है। कब तक
सिस्टम उनके संविधान-विरोधी अतिक्रमण को झेल सकता है।
मोदी-RSS का अन्तिम मक़्सद संविधान का ध्वंस है। पर इस वक़्त, मोदी-RSS संविधान से सीधी मुठभेड़ नही चाहते। इसिलिए, मोदी-RSS को एक्सपोज़ करने का यह सही वक़्त है!!
AMU मे अंसारी पर हमले का सवाल, वाम मोर्चा सहित राजनीतिक दलों ने 'RSS द्वारा राजद्रोह' के रूप मे प्रस्तुत नही किया है। उन्होने दक्षिणपंथी संगठनो के खिलाफ सैनिक कार्यवाही की धमकी या डर नही दिखाया। इन्हे ये करना चाहिये था। इन्हे मोदी की रणनीति को उन्ही के खिलाफ इस्तेमाल करने की कोशिश करनी चाहिये थी। पर हम विपक्ष की तरह असफल होने का खतरा नही उठा सकते। यदि हमारी तरफ से इस दृष्टिकोण से हमला किया जाये, तो RSS-मोदी रक्षात्मक होने को मजबूर हो जायेंगे।
2. उत्तरप्रदेश भाजपा AMU से जिन्ना की तस्वीर नही हटा सकती। योगी आदित्यनाथ ने कर्नाटका चुनाव को प्रभावित करने के लिये बतौर राजनीतिक चाल कहा कि 'आज़ाद भारत मे जिन्नाह के लिये कोई जगह नही है। AMU एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है। यूपी सरकार इस मामले मे कैसे कुछ कर सकती है? केंद्र सरकार को भी ऐसा करने के लिये सम्विधान संशोधन की प्रक्रिया आदि पूरी करनी होगी जिसके लिये ये इच्छुक नही है।
3. पाकिस्तान बनने के बाद, जिन्नाह की पुत्री, जिन्होने एक पारसी नेविल वाडिया से शादी की थी वो इंडिया मे ही रहीं। नेविल बाम्बे बाम्बे डाइंग ब्रांड से एक बड़े उद्योगपति बने। नुस्ली वाडिया, नेविल के पुत्र और जिन्ना के नाती, ने RSS को बहुत सालो तक चंदा दिया। नुस्ली ने ही RSS के लीडर नानाजी देशमुख की देखरेख की और उनके चित्रकूट और गोंडा के आश्रम का वित्तपोषण किया।
इसलिये, RSS ये नही कह सकता कि "देखो, हमने जिन्नाह की पुत्री के परिवार को जिन्नाह के खिलाफ कर दिया और फिर उनसे पैसे लिये"। सच तो ये है कि वाडिया ने हमेशा कहा, we are proud of Jinnah (हमे जिन्नाह पर गर्व है)।
फिर भी RSS ने वाडिया से पैसे लिये।
इसलिये नैतिक और राजनीतिक रूप से RSS जिन्नाह चित्र विवाद मे कमजोर विकेट पर खड़ा है।
लेखक अमरेश मिश्र संयोजक 1857 राष्ट्रवादी मंच
हिंदी अनुवाद: पंडित वी. एस. पेरियार
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