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क्या जानते हो आखिर भाजपा क्यों हारी...?

क्या जानते हो आखिर भाजपा क्यों हारी...?
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लोकसभा के तीन चुनाव में हार के सबसे बडे कारण यह भी हो सकते है.
किसी भी पार्टी का कार्यकर्ता हो जो पार्टी के कार्यक्रमों में झंडा लगाता आंदोलनों में डंडा खाता रहा हो...भीड़ जुटाता रहा हो उसकी एक इच्छा जरूर रहती है की हमारी सरकार बने ताकि वह शान से गर्व से सरकार और सरकारी दफ्तरों में समाज हित मे जन सरोकार से जुड़े कार्य करा सके ताकि जिस जनता को उसने पार्टी को वोट देने के लिए प्रेरित किया है वो जनता उस कार्यकर्ता की महत्ता को समझते हुए उसके साथ दमदारी से खड़ी रहे जब आम जनता का कार्य पड़े और वह कार्यकर्ता सरकार रहते हुए भी खुद को असहाय ठगा हुआ महसूस करे और जनता को वर्तमान की बजाय पूर्व की सरकार बेहतर लगे तो सत्ता पक्ष के प्रति आक्रोश स्वरूप फूलपुर गोरखपुर के जैसे ही परिणाम आते हैं ।
हार के कारण...मेरे हिसाब से...
1---योगी सरकार बने साल भर हुएं मगर मूल कार्यकर्ताओ की घोर उपेक्षा दलबदलू सत्ता लोलुप चाटूकार पूंजीपति टाइप के कथित कार्यकर्ताओं नेताओं को तरजीह ।
नतीजा- कार्यकर्ता जनता का मनोबल गिरा है।
2---सपा बसपा सरकार बनते ही उन कार्यकर्ताओ नेताओं को जो टिकट के दावेदार रहें हो या पार्टी के लिए जरते मरते हों जो पार्टी के प्रति वफादार रहें हो उन्हें निगमों आयोगों संस्थाओं का अध्यक्ष उपाध्यक्ष सदस्य महीने भर के अंदर नियुक्त कर देती है वहीं यूपी में बीजेपी सरकार बने साल भर हुआ मगर अभी तक इन पदों पर भाजपा के समर्पित वफादार कार्यकर्ताओ की नियुक्ति नही हो पाई है सम्भवतः आने वाले कुछ दिनों में किसी सांसद विधायक के जेबी आदमी या दलबदलू को इन पदों पर बैठा दिया जाये।
नतीजा -पार्टी के प्रति कार्यकर्ताओ का अंदरूनी आक्रोश
3--- सरकार में भ्र्ष्टाचार खत्म करने का वादा कर के आई बीजेपी सरकार में कई दफ्तरों का यह हाल है जहां पूर्व की सरकार में उदाहरण के तौर पर रिश्वत रेट 100 से 200 था वहीं वर्तमान सरकार में यही 500 से 1000 हो गया मने जनता की जेब पहले से ज्यादा कटने लगी।
नतीजा -बीजेपी के प्रति आक्रोश।
4---फूलपुर पर भले ही आम जनता को बीजेपी के जीत पर संसय रहा हो मगर अपराजेय मानी जा रही योगी आदित्यनाथ की सीट राजनीतिक पंडित मान रहे थें की बीजेपी निकाल ले जाएगी मगर इस उपचुनाव में मोदी जी और अमित शाह का दूरी बनाकर रखना प्रचार प्रसार में खुद को शामिल न करना घातक रहा इसलिए बीजेपी के वोटर उदासीन रहें वोटिंग प्रतिशत भी कम रहा।
नतीजा -सपा बसपा वोटर झूम कर निकलें भाजपा वाले सोये रह गए।
5-- प्रदेश में भाजपा की सरकार है और योगी आदित्यनाथ सूबे के मुख्यमंत्री हैं मगर देखा जाए तो भाजपा कार्यकर्ताओं की कम योगी जी द्वारा बनाई गयी हिन्दू युवा वाहिनी के कार्यकर्ता हर जगह हावी रहते हैं कहीं कहीं तो लगता है सरकार भाजपा की नही हिंदू युवा वाहिनी की है डी एम एस पी भी भाजपा के बजाय वाहिनी कार्यकर्ताओ को ज्यादा महत्व देते हैं।
नतीजा--भितरघात
नतीजा--योगी जी के प्रति भाजपाईयों के मन आक्रोश।
6--पूर्व की सपा सरकार से अब तक कई जिलों में अभी भी कई अधिकारी उसी पद पर इस सरकार में भी सेटिंग गेटिंग से वहीं कार्यरत हैं और बेअन्दाज और निरंकुश हो गए हैं इसलिए जनता भी आजिज आ गयी ।
खैर जब मेरे जैसा बीजेपी समर्थक जो सोशल मीडिया पर बीजेपी का पक्ष रखता रहा हो समालोचना भी ।
जिसका खून भी लाल की बजाय केशरिया हो वह आज बीजेपी की हार पर कटाक्ष कर रहा हो जिसके अंदर बीजेपी की कार्यशैली (जिनमें नरेश को शामिल करने सहित कई मुद्दों पर) के प्रति आक्रोश हो तो निःसन्देह बीजेपी के लिए 2019 का सफर आसान नही होगा।
क्योंकि बीजेपी समर्थक बीजेपी को वोट उसूल उद्देश्य राष्ट्रवाद के लिए देते हैं न कि सत्ता के लिए समझौता और उसूल को ताक पर रखने के लिए।
और एक बात यह भी कहना है बुआ के बेस वोटरों ने अपना वोट सपा को ट्रांसफर कर दिया मगर यही बुआ का प्रत्याशी होता तो दावे के साथ कह सकता हूँ कि बबुआ का बेस वोट बुआ के कैंडिडेट को नही मिलता।
हालाकि बुआ बबुआ ने 2019 के लिए अपनी जमीन तैयार करनी शुरू कर दी है जबकि बीजेपी अपनी जमीन बचा ले यही बहुत है।
मोदी जी यहां लोकतंत्र है जब लोकतंत्र पर तानाशाही हावी होने की कोशिश करेगा तो नतीजे ऐसे ही आएगा।
विनय मौर्या
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