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कहा राजा भोज ओर कहा गंगू तेली, कांग्रेस इस काम में बीजेपी के आगे बुरी तरह पस्त!

कहा राजा भोज ओर कहा गंगू तेली, कांग्रेस इस काम में बीजेपी के आगे बुरी तरह पस्त!
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कोषाध्यक्ष वाला मामला बता रहा है कि चुनाव आयोग को भाजपा के नाम पर साँप सूंघ जाता हैं और फिर सब मामला ठंडे बसते में चला जाता है.
भारतीय जनता पार्टी दुनिया के सबसे रईस राजनीतिक दलों में से एक है कांग्रेस उसके आगे कही भी नही ठहरती . राष्ट्रीय दलों ने उन्हें प्राप्त 20,000 रुपये से अधिक राशि वाले 589.38 करोड़ रुपये के चंदे की घोषणा की है पता चला है कि भाजपा को 1,194 स्त्रोतो से 532.27 करोड़ रुपये मिले हैं, लेकिन यदि कांग्रेस की बात की जाए तो कांग्रेस को सिर्फ 41.90 करोड़ रुपये का चंदा 599 स्त्रोतों से मिला हैं.
यह बेहद आश्चर्यजनक तथ्य है कि 589 करोड़ का चंदा कुल सात राष्ट्रीय दलों को मिला हैं जबकि भाजपा को अकेले 532 करोड़ रुपये चंदे में प्राप्त हुए हैं . 2015-16 में भाजपा को जहां 76.85 करोड़ रुपये का चंदा मिला था वहीं 2016-17 में उसे 532.27 करोड़ का चंदा मिला. यानी पिछले साल की तुलना में भाजपा को करीब 593 प्रतिशत ज्यादा चंदा मिला है.
कांग्रेस की कमाई में 14 फीसदी की गिरावट आई है, कांग्रेस को फंड की इतनी दिक्कत हो गई है कि पार्टी ने कई राज्य में अपने कार्यालय चलाने के लिए भेजे जाने वाले फंड पर रोक लगा दी है.
राष्ट्रीय दलों को कुल 563.24 करोड़ रुपये के 708 चंदे कॉरपोरेट व्यापारिक क्षेत्र से मिला. यह कुल चंदे का 95.56 प्रतिशत है.इसमे से भाजपा को 515.43 करोड़ रुपये का मिला. वहीं कांग्रेस को मात्र 36.06 करोड़ रुपये का चंदा ही इस से प्राप्त हो पाया.
यानी भाजपा अब पूरी तरह से बड़े पूंजीपतियों के चंगुल मे।है और सत्ता में बैठकर उन्ही के हित साध रही है.
कल एक ओर आश्चर्यजनक खुलासा पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी ने वायर में लिखे अपने लेख में किया वे लिखती है.
'चुनाव आयोग में अपनी अनिवार्य घोषणा में भाजपा पिछले कुछ वर्षों से अपने कोषाध्यक्ष के नाम का खुलासा नहीं कर रही है.2016-17 के लिए पार्टी द्वारा जमा किए गये रिटर्न में भी पार्टी के कोषाध्यक्ष के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती है बल्कि कोषाध्यक्ष के नाम और दस्तखत की जगह वहां एक अस्पष्ट दस्तखत है, ऐसा लगता है 'कोषाध्यक्ष के बदले' (फॉर ट्रेजरर) किया गया है'.
आखिर पार्टी का कोषाध्यक्ष कौन है? भाजपा ने इस विषय पर चुप्पी साध रखी है.पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालस्वामी ने द वायर को बताया कि ऐसे खातों पर दस्तखत करने वाले जिम्मेदार अधिकारी का नाम और दस्तखत स्पष्ट होना चाहिए और अगर ऐसा नहीं है, तो चुनाव आयोग को उसके बारे में पता लगाना चाहिए.
भाजपा के कोषाध्यक्ष को लेकर गोपनीयता का यह खेल जुलाई, 2014 में अमित शाह के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद शुरू हुआ, जब उन्होंने राजनाथ सिंह की जगह ली .2014 में भाजपा की जीत और नरेंद्र मोदी सरकार के गठन से पहले पार्टी के घोषित कोषाध्यक्ष पीयूष गोयल थे, जो इस वक्त केंद्रीय वित्त और रेलवे मंत्री हैं. जब अमित शाह ने अगस्त, 2014 में पार्टी के पदाधिकारियों का ऐलान किया, उस वक्त पार्टी के कोषाध्यक्ष का नाम उसमें शामिल नहीं था.
स्वाति चतुर्वेदी लिखती है कि एक अन्य पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि चुनाव आयोग द्वारा 2014 में वित्तीय पारदर्शिता के लिए अपनाया गया दिशा-निर्देश साफतौर यह व्यवस्था करता है कि राजनीतिक दल के संचित खाते की देखभाल के लिए 'कोषाध्यक्ष या वैसा व्यक्ति जिसे दल द्वारा अधिकृत किया गया हो' अनिवार्य है.
कोषाध्यक्ष वाला मामला बता रहा है कि चुनाव आयोग को भाजपा के नाम पर साँप सूंघ जाता हैं और फिर सब मामला ठंडे बसते में चला जाता है.
गिरीश मालवीय
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