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ज्ञानपुंज-संघर्षमूर्ति जार्ज फर्नाण्डीज, एक प्रेरक संस्मरण

ज्ञानपुंज-संघर्षमूर्ति जार्ज फर्नाण्डीज, एक प्रेरक संस्मरण
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मेरे दिमाग में जार्ज साहब की जो तस्वीर थी वह एक अनवरत व अपराजेय योद्धा की थी, मैं उनके वैचारिक अवदान और क्षमता से वाकिफ न था।

दीपक मिश्र

भारतीय राजनीति और समाजवादी विचारधारा के अप्रतिम व्याख्याता तथा जाज्वल्यमान नक्षत्र जार्ज फर्नाण्डीज के साथ किया गया संवाद मेरे जीवन की वह उपलब्धि है जिसे ''मूकास्वादानवत्'' महसूस तो कर सकता हूं पर अभिव्यक्त नहीं कर सकता।' लोहिया के 'मात्रा भेद व सामीप्य के सिद्धान्त को मैं समझ नहीं पा रहा था, विश्वविद्यालय के कई प्रोफेसरों और समाजवाद के विद्धानों से पूछा पर कोई भी स्पष्ट रूप से बतला नहीं पाया।' 'छोटे लोहिया' जनेश्वर जी ने कहा कि इसे सिर्फ दो लोग ही ठीक से बता सकते हैं, एक लोक सभा अध्यक्ष रहे रवि राय और दूसरे जार्ज फर्नाण्डीज।


मेरे दिमाग में जार्ज साहब की जो तस्वीर थी वह एक अनवरत व अपराजेय योद्धा की थी, मैं उनके वैचारिक अवदान और क्षमता से वाकिफ न था। जब जनेश्वर जी ने कहा कि जार्ज ''मात्रा भेद'' सिद्धान्त को बेहतर तरीके से समझा सकते हैं, मुझे थोड़ा अटपटा लगा। दूसरे दिन जार्ज साहब के आवास पर पहुंचा, रक्षा मंत्री, कई बार के सांसद व राजग सरकार के संयोजक रह चुके जार्ज साहब के पूरे आवास में कोई पुलिसकर्मी नहीं दिखा, हिचकते हुए अंदर पहुंचा तो एक व्यक्ति ने टोका कि जार्ज साहब बाइेर् तरफ बैठे हैं, उधर जाइए। जार्ज फर्नाण्डीज के कमरे में पहुंचने के पश्चात् मुझे लगा कि मैं आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में आ गया हूं, एक से एक दुर्लभ पुस्तकें करीने से सजी हुई व कुछ बिखरी पड़ी थीं। एक सोफे पर बैठे जार्ज साहब कोई पुस्तक पढ़ रहे थे। मुझे देखते ही उन्होंने आने का कारण पूछा, मैं भावातिरेक वश आने का हेतुक न बता सका। सिर्फ इतना ही कह पाया कि आपको लोहिया जी व समाजवाद पर लिखी अपनी दो पुस्तकें भेंट करनी है। मैंने ''समाजवाद की अपरिहार्य आधारिकायें'' और 'भारत-रत्न लोहिया' भेंट की। वे पुस्तक के मुख पृष्ठ पर छपी लोलिया की तस्वीर को एक टक देखते रहे, उनकी आंखों से आंसू छलक उठे। उन्होंने लरजते लहजे में कहा कि हम लोग लोहिया के अधूरे कामों को पूरा नहीं कर सकें।
उन्होंने पांच-छह मिनट के निस्तब्ध मौन के बाद मेरी पीठ को थपथपाते हुए शाबासी दी और कहा कि इतनी कम उम्र में लोहिया व समाजवाद पर इस गहराई के साथ लिखना बड़ी बात है, देखकर अच्छा लगा कि नई पीढ़ी समाजवाद पर काम कर रही है। उन्होंने मुझे दो बंडल पुस्तकें दी और लगभग 6 घण्टे तक विभिन्न विषयों पर मेरी तमाम भ्रान्तियों को दूर किया। यदि उनके डाक्टर ने ''वीटो'' न लगाया होता, शायद दो चार घण्टे और ज्ञान देते। वे इस समय के सचमुच जीवित किंवदन्ती है जिसे ज्ञान-पुंज या विद्वता का असीम खजाना कहा जाय तो अतिश्योक्तिपूर्ण कथन नहीं होगा। उन्होंने न केवल मात्रा-भेद सिद्धान्त समझाया अपितु यह भी बतलाया कि इस दर्शन के मूल में अल्बर्ट आइंस्टीन की सापेक्षिकता की अवधारणा है। इन्होंने अल्बर्ट व लोहिया संवाद की भी दुर्लभ जानकारी दी। जार्ज साहब अनन्य योद्धा व लोकसंघर्षों की प्रतिमूर्ति से बड़े विचारक व चिन्तक लगे। उनका वैचारिक पक्ष अभी तक हम सभी के सामने नहीं आया है। जन संघर्षों के पुरोधा व राजनीतिज्ञ जार्ज ने विचारक, संपादक, चिन्तक, लेखक जार्ज को पृष्ठभूमि में कर दिया है। बहुत कम लोग जानते हैं कि जार्ज साहब अंग्रेजी, कोंकडी, उर्दू, लैटिन, हिंदी, मराठी, वर्मन, तिब्बती, टुलू, कन्नड़ समेत 12 भाषाओं के जानकार हैं और राजनीति तथा सामयिक व सैद्धान्तिक सवालों पर कई पुस्तकें लिख चुके हैं, जिसमें 'वाट एल्स द सोशलिस्ट', 'द काश्मीर प्रोब्लम', 'रेलवे स्ट्राइक ऑफ 1974', 'एसे इन सोशलिज्म एण्ड डेमोक्रेसी' प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं। उन्होंने प्रारम्भिक जीवन में 'कोंकणी युवक' नामक कोंकड़ा समाचार पत्र के साथ-साथ कन्नड़ साप्ताहिक 'रैथवाणी' में काम किया था। पत्रकारिता में उनके अनुपम योगदान का उदाहरण अंग्रेजी मासिक 'द अदर साइड' और हिंदी मासिक 'प्रतिपक्ष' हैं। इन्हें लोहिया जी द्वारा प्रकाशित 'मैनकाइण्ड' व 'जन' की अगली कड़ी कही जाय तो गलत न होगा। जार्ज विश्व-नागरिक व वैश्विक समाजवादी हैं। उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर गांधी, लोहिया, लिमए की भांति काफी कार्य किया और अपनी विशिष्ट पहचान बनाई।
तिब्बत की आजादी, म्यांमार का जनान्दोलन और श्रीलंका में तमिल आन्दोलन को उनका खुला समर्थन रहा है। म्यांमार के छात्र उनके आवास पर रहकर अध्ययन भी करते रहे हैं और आंदोलन भी। वे कहा करते हैं कि मैं दुनिया भर में चल रहे सभी प्रकार के लोकतांत्रिक संघर्षों का पक्षधर व मित्र हूँ। उनके अस्वस्थ होने से समाजवाद की वैचारिक ताकत क्षीण हुई है जिसे पुनः ताकतवर बनाने की जिम्मेदारी हम समाजवादियों की है। जार्ज में वीरता व संतत्व दोनों गुणों का अद्भुत समावेश है। वे समाजवाद के ज्ञाता ही नहीं अपितु समाजवादी जीवन शैली को अंगीकृत कर लोकजीवन जीने वाले अप्रितम उदाहरण हैं।
(लेखक समाजवादी बौद्धिक/चिन्तन सभा के अध्यक्ष हैं।)

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