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तो क्या सैनिको की वर्दी के पैसे सरकार अपना चेहरा चमका रही है?

तो क्या सैनिको की वर्दी के पैसे सरकार अपना चेहरा चमका रही है?
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मोदी सरकार सैनिकों को अब जूता और वर्दी देने में आनाकानी कर रही है क्यों?

कभी देश के प्रधानमंत्री से लेकर बीजेपी के नेता सेना को लेकर हमेशा भावुकता की बात करते नजर आये है. लेकिन अब हैरानी तो तब हुई जब सुनने को मिला कि सरकार के पास अब सेना को जूता और वर्दी देने के लिए पैसा नहीं है. एसा हाल बजट में बड़ी कटौती के चलते बताया गया है. जबकि सरकार विज्ञापन के नाम पर जनता का अरबों रुपया फूंक रही है.


यह ख़बर तमाम जगह छपी है कि सेना सरकारी आयुध फैक्टरियों से खरीद में भारी कटौती करने जा रही है क्योंकि सरकार ने सेना को गोला बारूद और पुर्ज़ों की आपात खरीदारी के लिए अतिरिक्त फंड नहीं दिया है. लेकिन यह तो ज़रूरी है. लिहाज़ा सेना ने अपनी ज़रूरतों में कटौती का फैसला किया है.

कहा जा रहा है कि इससे सैनिको को अपनी वर्दी वगैरह तमाम ज़रूरी चीजें सीधे बाज़ार से खरीदनी पड़ सकती हैं. आर्डिनेंस फैक्टरियों से अब तक हो रही 94 फीसदी, खरीद बजट कटौती की वजह से 50 फीसदी पर आ जाएगी तो पहला असर सैनिकों की पोशाक, बेल्ट, जूते वगैरह की सप्लाई पर ही पड़ेगा.

सरकार के इस रुख पर कई सवाल उठ रहे हैं. कहा जा रहा है कि सेना के बजट में कटौती कर रही मोदी सरकार ने विज्ञापनों पर खर्च का रिकार्ड तोड़ दिया है. अब विज्ञापन सरकार को ज्यादा जरूरत की चीज लगी तो बजट उधर दे दिया. सेना की वर्दी और जूता सरकार को उतना प्रभावी नहीं दिखा. इसमें हैरानी की बात क्या है. यह तो सरकारी आदेश है जिसको मानना ही पड़ेगा.


सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि अगर मोदी सरकार के पास सैनिकों को देने के लिए पैसे नहीं हैं तो फिर वह चेहरा चमकाने पर यानी विज्ञापन पर क्यों खर्च कर रही है. आर्थिक मामलों पर सजग टिप्पणी करने वाले गिरीश मालवीय ने सवाल उठाया है कि क्या सैनिकों के पैसे से मीडिया ख़रीद रही मोदी सरकार?

उन्होंने ऊपर के ग्राफ़ का उल्लेख करते हुए फेसबुक पर लिखते है

"ये जो दायी तरफ आपको बड़ी बड़ी मैनहैट्टन की आसमान छूती बिल्डिंगे दिख रही है ये बता रही है कि मोदी सरकार ने मई 2014 में सत्तारूढ़ होने के बाद से अपनी छवि बनाने के लिए विज्ञापनों पर 4,343 करोड़ रूपए खर्च किए हैं. इस आंकड़े को आप ध्यान से देखेंगे तो आप पाएंगे कि पिछले 4 सालों में यूपीए के काल से लगभग दुगुना पैसा खर्च हुआ है और 2018 – 19 तो चुनावी साल है, दिन ब दिन न्यूज़ चैनलों और प्रतिष्ठित अखबारों में सरकार की झूठी उपलब्धियों के विज्ञापन बढ़ते ही जा रहे हैं। साफ दिख रहा है कि 2018- 19 में ये फिगर एम्पायर स्टेट बिल्डिंग को भी मात करने वाला है.

गिरीश मालवीय की फेसबुक से लिया गया

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