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अब बैलेट पेपर से चुनाव की बढ़ी उम्मीद, जानिये क्यों?

अब बैलेट पेपर से चुनाव की बढ़ी उम्मीद, जानिये क्यों?
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ईवीएम पर सर्वदलीय बैठक बुलाना भारत के लोकतंत्र में बहुत अच्छी पहल साबित हो सकती है
इन दो तीन दिनों में जिस तरह से ईवीएम के खिलाफ एक माहौल बन रहा है उससे 2019 के जनरल इलेक्शन के फ्री ओर फेयर होने के बारे में कुछ उम्मीदे जगती है. कांग्रेस ने अपनी सालाना बैठक में ईवीएम के दुरुपयोग की शंका का हवाला देते हुए कहा कि निर्वाचन आयोग को बैलेट पेपर की पुरानी प्रथा को दोबारा से अमल में लाना चाहिए, आम आदमी पार्टी इस विषय मे सर्वदलीय बैठक बुलाने की बात कर रही है ओर बीजेपी महासचिव राम माधव ने भी कहा कि अगर सब लोगों के बीच सहमति बनती हो तो वो भी तैयार हैं, सपा और बसपा पहले ही इस प्रक्रिया पर सवाल उठा चुकी है.
सच तो यह है कि दुनिया के विभिन्न लोकतंत्रों में मतदान के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पसंदीदा विकल्प नहीं है और वास्तव में अधिकतर विकासोन्मुखी देश मतपत्रों से ही चुनाव कराने के पक्षधर हैं.
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि दुनिया में करीब 120 ऐसे देश हैं जहां लोकतंत्र हैं और चुनाव के माध्यम से सरकारें चुनी जाती हैं. लेकिन इनमें से बमुश्किल 25 ही ऐसे देश हैं जिन्होंने EVM के साथ चुनाव कराने का प्रयास किया है.
दुर्भाग्य से भारत उनमें से एक है
भारत का चुनाव आयोग मानता है कि हमारी ईवीएम से छेड़छाड़ नहीं हो सकती. लेकिन सभी इलेक्‍ट्रॉनिक उपकरणों की तरह ईवीएम भी हैक किए जा सकते हैं. अन्य देशों में भी इन्हें बैन कर दिया है या इस्तेमाल ही नही किया गया जैसे नीदरलैंड ने पारदर्शिता ना होने के कारण ईवीएम बैन कर दी थी, आयरलैंड ने 51 मिलियन पाउंड खर्च करने के बाद 3 साल की रिसर्च कर भी सुरक्षा और पारदर्शिता का कारण देकर ईवीएम को बैन कर दिया था, इटली ने इसलिए ईवोटिंग को खारिज कर दिया था क्योंकि इनके नतीजों को आसानी से बदला जा सकता है,यूएस- कैलिफोर्निया और अन्य राज्यों ने ईवीएम को बिना पेपर ट्रेल के बैन कर दिया था., सीआईए के सिक्योरिटी एक्सपर्ट मिस्टर स्टीगल के अनुसार वेनेज्यूएला, मैसिडोनिया और यूक्रेन में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीने कई तरह की गड़बड़ियों के कारण इस्तेमाल होनी बंद हो गई थीं. इंग्लैंड और फ्रांस ने तो इनका उपयोग ही नहीं किया क्योंकि वह इस प्रणाली के दुरुपयोग किये जाने को पहचान चुके थे.
लेकिन जर्मनी का किस्सा सबसे दिलचस्प है उसने ईवीएम का प्रयोग किया ओर उसकी पारदर्शिता पर संदेह करते हुए कोर्ट द्वारा उसे बैन कर दिया.
जर्मनी के कोर्ट ने जो ईवीएम को बैन करते हुए जो रीजन दिया वह बेहद महत्वपूर्ण है उसने कहा 'वोटर और रिजल्ट के बीच टेक्नोलॉजी पर निर्भर करना 'असवैधानिक' है' . ओर यह बहुत महत्वपूर्ण बात है जिसकी चर्चा चुनाव आयोग करना ही नही चाहता.
भारत मे चुनाव को लोकतंत्र का उत्सव माना जाता है पांच साल में एक दिन एक आम आदमी को बोलने का अवसर मिलता है और उसकी आवाज की चोट को भी यदि तकनीक की मदद से बदला जा सकता है तो इससे बड़ा दुर्भाग्य कोई हो नही सकता
सच्चाई यह है कि दुनिया की हर इलेक्ट्रॉनिक मशीन हैक या टेम्पर की जा सकती है. कहा जाता है कि गड़बड़ी दो तरह से की जा सकती हैं . हर कोई बारीकी से मतदान देखता है. लेकिन कोई भी मतगणना को नजदीकी से नही देखता
ईवीएम के कण्ट्रोल यूनिट में दो EEPROMs होते हैजो मतदान को सुरक्षित रखते है यह पूरी तरह से असुरक्षित है और EEPROMs में संरक्षित किया गया डाटा बाहरी सोर्स से बदला जा सकता है | EEPROMs से डाटा पढना और उसे बदलना बहुत आसान है
माना जा रहा है कि इसमें कण्ट्रोल यूनिट के डिस्प्ले सेक्शन में ट्रोजन लिप्त एक चिप लगाकर हैक किया जा सकता है यह चिप नतीजो को बदल सकता है और स्क्रीन पर फिक्स्ड रिजल्ट दिखाया जा सकता है, ओर यह सारा खेल मतदान के बाद ओर मतगणना के पहले खेला जा सकता है
दूसरा सिध्दांत यह हैं कि ईवीएम में इस्तेमाल की जानी वाली मूल चिप में गड़बड़ी कर के परिणाम प्रभावित किया जा सकता है.
अपुष्ट जानकारी के अनुसार ईवीएम माइक्रो कंट्रोलर के निर्माताओं में से एक माइक्रोचिप इंक (यूएसए) है माइक्रोचिप इंक न केवल भईवीएम में प्रयुक्त माइक्रोचिप की आपूर्ति करता है, बल्कि माइक्रोचिप पर सॉफ्टवेयर प्रोग्राम राईट भी करता है. उसके बाद इस तरह से उसकी सीलिंग की जाती है कि न तो चुनाव आयोग, न भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और न ही भारतीय कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड उसकी प्रोग्रामिंग को पढ़ सके.
ईवीएम का सोर्स कोड परम गोपनीय (टॉप सीक्रेट) है. यह इतना गोपनीय है कि चुनाव आयोग के पास भी उसकी नक़ल नहीं है. इस सोर्स कोड का महत्व जगज़ाहिर है,
प्रोग्राम कोड को मशीन कोड में बदलने के बाद ही विदेशी चिप निर्माता को दिया जाता है, क्योंकि हमारे पास देश में सेमी-कंडक्टर माइक्रोचिप्स बनाने की क्षमता नहीं है. यहीं पर चुनाव आयोग एक भ्रामक घोषणा करता है और झूठे आश्वासन देता है, क्योंकि चुनाव आयोग जो बात नहीं कह रहा है वो यह है कि जिस प्रोग्राम कोड को बाइनरी लैंग्वेज में राईट किया गया है, उसे माइक्रोचिप विनिर्माण कम्पनियां पढ़ भी सकती हैं और उनके साथ छेड़छाड़ भी कर सकती हैं. दूसरे शब्दों में कहें, तो ये विदेशी कम्पनियां किसी विशिष्ट राजनीतिक दल के हितों के अनुरूप प्रोग्राम के साथ छेड़छाड़ कर सकती हैं.
अब जो लोगो को सबसे अधिक आश्चर्य की बात लगती है उसका जवाब
लोगो को लगता है कि एक चुनाव क्षेत्र में तो हजारों ईवीएम इस्तेमाल होती है उनमें एक साथ कैसे छेड़छाड़ सम्भव है. दरअसल हर चुनाव क्षेत्र का में हर बूथ का एक पैटर्न होता है हर पार्टी के पास इन बूथवार आंकड़े होते है कि पिछले 8 से 10 चुनाव में कितना वोट भाजपा को गया कितना वोट कांग्रेस को गया और कितना अन्य दलों को गया है जिस भी पार्टी को ईवीएम में छेड़छाड़ करनी होती है वह उन इवीएम में छेड़छाड़ नही करती जहाँ वह पहले से ही जीत रही होती है वह चतुराई से सिर्फ उन बूथों पर मशीन हैक करती है जहां वह बुरी तरह से पिछड़ रही होती है इस तरह से पूरे चुनाव क्षेत्र में गड़बड़ी सिर्फ 10 से 15 प्रतिशत मतदान केंद्रों में की जाती है और मनचाहे परिणाम हासिल किए जा सकते हैं.
इसलिए इस ईवीएम प्रणाली को जितना जल्दी हो बदल देना चाहिए, मौजूदा दौर में ईवीम पर सर्वदलीय बैठक बुलाना भारत के लोकतंत्र में बहुत अच्छी पहल साबित हो सकती है.
गिरीश मालवीय की कलम से
शिव कुमार मिश्र

शिव कुमार मिश्र

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