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सावधान! हुजूर ने जॉब क्रिएट करने की बात कही थी!

सावधान! हुजूर ने जॉब क्रिएट करने की बात कही थी!
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वर्ष 2013 के नवंबर महीने में पहली बार आगरा की एक जनसभा में श्रीमान् नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने स्वयं ही कहा था
प्रो दिग्विजय नाथ झा
सूचना का अधिकार अधिनियम के सुसंगत प्रावधान के तहत राष्ट्रीय जनगणना निदेशालय की ओर से उपलब्ध करायी गयी जानकारी के मुताबिक भारत में इन दिनों 18 से 35 साल तक की उम्र के युवक-युवतियों की तादाद तकरीबन 47 कर¨ड़ 68 लाख 40 हजार 586 के आसपास है तथा यह देश की कुल आबादी का 36.68 फीसदी है ओर इससे भी कतई इनकार नहीं किया जा सकता है कि आज की तारीख में युवा आबादी के मामले में भारत दुनिया का सबसे समृद्घ देश है एवं यह भी सच है कि वर्ष 2013 के नवंबर महीने में पहली बार आगरा की एक जनसभा में श्रीमान् नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने स्वयं ही कहा था कि वर्ष 2014 के मई महीने में भाजपा यदि केंद्र की सरकार गठित करने में कामयाब हुई तो प्रतिवर्ष दो करोड़ बेरोजगारों के लिए रोजगार पैदा करेगी, जबकि वर्तमान वर्ष 2018 के फरवरी महीने में भाजपा के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने जब राज्य सभा में अपना पहला भाषण दिया तो आधी स्पीच पकौड़ापरक कारोबार पर थी. और संसद सदस्य इसलिए हंसी उड़ा रहे थे कि देश के उच्चसदन में पकौड़ापरक कारोबार में पीएम के रोजगार के वादे बदल रहे थे तथा भाजपा सुप्रीमों पकौड़ापरक कारोबार को जॉब करार देने की कोशिश में पसीने बहा रहे थे, बावजूद इसके कि वर्ष 2018 के जनवरी महीने में देश की बेर¨जगारी दर 5.7 फीसदी पर पहुंच गयी थी, जो पिछले पांच सालों में सबसे अधिक है।


सेंटर फॉरमॉनीटरिंग इंडियन इक¨नॉमी की जनवरी 2018 की रिप¨र्ट चीख -चीखकर बयां कर रही है कि वर्ष 2013 में देश में बेर¨जगारी की दर 3.8 फीसदी, वर्ष 2014 में 4.7 फीसदी, वर्ष 2016 में 5.0 फीसदी एवं वर्ष 2017 में 5.2 फीसदी थी और तकनीकी शिक्षा ग्रहण करने के बाद वर्ष 2010 तक देश में 60 फीसदी इंजीनियर जॉब पाते थे, पर इन दिनों इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद 60 फीसदी नौजवानों को भारत में नौकरी नहीं मिल रही है। विकास के अच्छे दिन घोटालों के करोड़ों से खरबों में पहुंचने के दिनों में बदल रहे हैं, पर भारतीय बिजनेस स्कूलों के केवल 20 फीसदी एमबीए डिग्रीधारी ही क¨र्स खत्म करने के बाद इन दिनों नौकरी हासिल कर पा रहे हैं तथा भारतीय वाणिज्य एवं उद्य¨ग मंडल (एस¨चैम) की दिसंबर 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक बिजनेस स्कूलों एवं इंजीनियरिंग कॉलेजों के छात्रों को मिलने वाले वेतन पेश कश में भी वर्ष 2015 की तुलना में 40 से 45 फीसदी की कमी आयी है ओर हकीकत तो यहां तक है कि विगत दो सालों में जिन एमबीए डिग्रीधारियों व इंजीनियरों को भारत में नौकरी मिली है, उनमें से आधे से अधिक को योग्यता के अनुरूप वेतन नहीं मिल रहे हैं।





मुझे यह कहने में यहां बिल्कुल भी हिचक नहीं कि बेरोजगारी उफान पर है ओर शैक्षणिक मोर्चे पर भारत की स्थिति अभी इतनी भी सुदृढ़ नहीं कि पकौड़ा बेचने के लिए देश में किसी को भी एमबीए की डिग्री की जरूरत है अथवा इंजीनियरिंग या मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने की आवश्यकता है तथा कटु सत्य यह भी है कि प्रत्येक भारतीय चाय बिक्रेता लाल किले से देशवासियों को¨ संब¨धित करने की कुव्वत में लैस नहीं है। बेशक ही अमित शाह के अभी व्यक्ति की आजादी पर सवाल खड़े करने का कानूनन हक किसी भी भारतीयों को नहीं है ओर भारतीय भीखारियों को भी कारोबारी बोलने का वैध हक भाजपा सुप्रीमों को है तथा इससे भी कतई इनकार नहीं किया जा सकता है कि लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित देश की मौजूदा राजग सरकार को भारतीय भिखारियों को भी कर कानून के दायरे में शामिल करने का संवैधानिक अधिकार है, लेकिन ये भी फैक्ट है कि लोकसभा में जून 2014 के मुकाबले फरवरी 2018 में भाजपा सांसदों की संख्या घटी है और देश में स्नातक उत्तीर्ण बेरोजगार की तादाद तक बढ़ी है और संयुक्त राष्ट्र श्रमसंगठन का आकलन तो यहां तक है कि मौजूदा वर्ष 2018 के दिसंबर महीने तक स्नातक उत्तीर्ण बेरोजगारों की संख्या भारत में बढ़कर दो करोड़ के आसपास हो सकती है, जो वर्ष 2014 के जून महीने में डेढ़ करोड़ के करीब थी, बावजूद इसके कि देश के शैक्षणिक संस्थान में वर्ष 2017 के मुकाबले वर्ष 2014 में इंजीनियरिंग की सवा तीन लाख एवं मैनेजमेंट की 61 हजार सीटें अधिक थी, क्योंकि वर्ष 2014 तक इंजीनियरिंग और एमबीए का जबर्दस्त क्रेज था।

यद्यपि सबसे चिंता की बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी खुद को कर क्रांति के प्रतीक के तौर पर उतरने की कोशिश में विगत चार सालों से लगे हैं और रोजगार बढ़ने के बजाय देश में प्रतिदिन 550 रोजगार के अवसर समाप्त ह¨ रहे हैं। स्वयं केंद्र सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की रिप¨र्ट में कहा गया है कि देश की कुल आबादी के लगग 11.5 फीसदी लोंगों को इन दिनों नौकरियों की तलाश है तथा 10वीं या 12वीं तक पढ़े बेरोजगार भारतीयों की तादाद लगग साढ़े तीन करोड़ के आसपास है, जबकि नौवीं से नीचे के बेरोजगार साक्षरों की संख्या भारत में तकरीबन साढ़े नौ करोड़ है तथा सौ दिनों की मजदूरी के बदौलत 365 दिनों तक जीवन यापन करने वाले अद्र्घबेरोजगार की आबादी भी देश में चार करोड़ आस पास है।



दुर्भाग्य तो यह कि 18 से 35 आयुवर्ग के जिन भारतीयों ने वर्ष 2014 में केंद्र की सरकार में भाजपा के आने का रास्ता साफ किया था, उन भारतीयों का रसूख ही मोदी की नीतियों में सर्वाधिक कमज¨र पड़ता दिख रहा है और भारतीय बेरोजगार में 47 फीसदी 22 से 39 आयु वर्ग हैं, जबकि केंद्र एवं राज्य सरकार में इन दिनों 20 लाख से ज्यादा स्वीकृत पद खाली हैं, बावजूद इसके कि माननीय रेलमंत्री पीयूष गोयल ने भारतीय रेलवे में दो लाख से अधिक पदों को समाप्त कर दिया और देश के सरकारी बैंको में कर्मचारियों का इस कदर अकाल है कि मौजूदा बैंककर्मियों को अधिकतर शाखाओं में नियमित तोर पर बारह घंटे से अधिक काम करने पड़ रहे हैं। स्वयं ही केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय ने मौजूद वर्ष के आरम्भ में खुलासा किया है कि केंद्र सरकार के विभिन्न वर्गों में इन दिनों ग्रुप ए के 15284 ग्रुप बी के 49740 एवं ग्रुप सी के 321410 पद खाली है, परंतु खबरें आ रही है कि केंद्र सरकार के कार्यालयों में लगातार पांच सालों से खाली पड़े पदों को केंद्रीय वित्त मंत्रालय समाप्त करने जा रही है। 




लो इससे अधिक शर्मनाक बात और क्या हो सकती है कि भारत के दो तिहाई से अधिक राज्यों में भाजपा या भाजपा समर्थित सरकार है, पर कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की व्यापक कमी के वजह से उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में जारी गिरावट का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है और सरकारी विद्यालयों, पुलिस स्टेशनों तथा अस्पतालों में 59 फीसदी पद विगत चार सालों से रिक्त पड़े हैं तथा केंद्रीय कर्मचारी चयन आयोग के दफ्तरों के बाहर बेरोजगार की आक्रोशित भीड़ चीख-चीखकर बयां कर रही है कि काली अर्थ व्यवस्था से भारत की मुक्ति के विधि विशेषज्ञ वित्तमंत्री के कांसैप्ट को यथार्थ के धरातल पर आने की उम्मीद बिल्कुल भी इसलिए नहीं की जा सकती कि प्रतिभाऔं की अनदेखी करते हुए प्रधानमंत्री के नाक के नीचे इनकम टैक्स, कस्टम व एक्साइज इंस्पेक्टर के पदों की खुलेआम बिक्री हो रही है। हो सकता है कि सत्ता के नशे में बुरी तरह से मदहोश मोदी जी को हमारी आवाज सुनाई नहीं दे हैं, लेकिन इतना तो सच है कि,

''टैलेंट की कमी नहीं अब भी भारत की सड़कों पर।
दुनिया बदल देंगे भरोसा करो इन लडकों पर।।
आज भी विश्व के प्रतिष्ठित आईटी कंपनियों के सीईओ भारतीय हैं, पर भारत में युवा भारतीयों के हालात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राजस्थान सचिवालय में अभी हाल ही में चपरासी के 18 पदों की भर्ती के लिए 18 हजार से अधिक नौ जवानों ने आवेदन किया था अंदर आवेदन करने वालों में 129 इंजीनियर, 23 वकील 1 सीए तथा 393 पोस्ट ग्रेजुस्ट थे। इसी तरह वर्ष 2016 में उत्तर प्रदेश में करीब तीन हजार स्वीपर की भर्ती प्रक्रिया प्रारंभ हुई तो एक लाख दस हजार से अधिक अर्जिया मिली थी और अर्जियां देने वालों में एमटेक एवं एमबीए जैसी डिग्रियां हासिल किये हुए युवायों की तादाद भी बड़ी थी। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने चतुर्थ श्रेणी के रिक्त 738 पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया तो तीस दिनों के भीतर 2 लाख 81 हजार से अधिक युवकों ने अप्लाई कर दिया और अप्लाई करने वालों में विधि स्नातकों की भरमार थी। इसी साल हरियाणा के करनाल जिले में चपरासी के रिक्त स्तर पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हुई तो दस हजार से अधिक स्नातकों की अर्जियां मिली और स्वयं सीएम को चपरासी की नियुक्ति की प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाने के आदेश यह कहकर देने पड़े कि स्नातकों की नियुक्ति चपरासी के पदों पर कतई भी न्याय¨चित नहीं है।

हालांकि, हो सकता है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर इससे वाकिफ न हों कि प्रशासनिक, पदों की अहमियत को दरकिनार करते हुए स्वयं उन्हीं की पार्टी भाजपा के सहयोग से दस सालों पूर्व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अंचल पदाधिकारी के पदों पर सर्किल इंस्पेक्टरों की नियुक्ति की प्रक्रिया को पूरी करने का निर्देश भी राजस्व विभाग को दिया था और भी राजस्व सचिवालय ने नीतीश के निर्देशों की बिल्कुल भी अनदेखी संवत इसलिए नहीं की थी कि राज्य स्तरीय सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए भारतीय राज्यों में अवस्थित चयन आयोग तो बेरोजगार भारतीय नौजवान के अभी भी वर्करों को वित्तीय रूप से बर्बाद करने की प्रयोग शाला ही बनकर रह गये हैं। अन्यथा, इसे तो कतई भी नजरंदाज नहीं कर सकते कि ऐसे भारतीय अभी भी वर्करों की तादाद बड़ी है जो परीक्षाओं में प्रतिभा के बदौलत बच्चों की कामयाबी सुनिश्चित करने के मकसद से क¨चिंग पर लाखों रुपये खर्च करता है, बावजूद इसके कि प्रतिभाओं की अनदेखी के आरोप में बिहार लोकसेवा आयोग, असम लोक सेवा आयोग व बिहार कर्मचारी चयन आयोग के अध्यक्षों क जेल तक जानी पड़ी है। अजीब विडंबना है कि युवा भारत में इन दिनों सरकार की बुद्घि की शुद्घि के लिए युवा या तो देहरादून में यज्ञ कर रहे हैं या दिल्ली की सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं, पर म¨दी के जुमले राज्य विधानसभाऔ में लगातार भाजपा की ताकत बढ़ा रहे हैं। हम क्षुब्ध हैं कि पकौड़ापरक रोजगार को बेरोजगारी के लिए रामवाण करार देने के क्रम में भाजपा सुप्रीम¨ ने आखिर राज्यसभा में यह खुलासा क्यों नहीं किया कि युवा भारत के सपने को साकार करने की जिम्मेदारी नरेंद्र दाम¨दर दास म¨दी के नेतृत्ववाली सरकार ने सीबीआई प्रवर्तन निदेशालय एवं आयकर विभाग के अफसरों के कंधों पर डाल दी है और यही वजह है कि वर्षों बाद भी राज्य अभियंत्रणा सेवा परीक्षा के परिणामों को प्रकाशित करने में उत्तर प्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन की क¨ई दिलचस्पी नहीं दिखी तथा बिहार लोकसभा आयोग ने 60वीं व 62वीं संयुक्त प्रतिय¨गिता परीक्षा की तिथि तक मुकर्रर नहीं की और प्रश्न पत्र लीक करने में केंद्रीय कर्मचारी चयन आयोग ने बिल्कुल भी संकोच नहीं की है।

बहरहाल, पकौड़ापरक रोजगार पर अमित शाह की राय से ले ही पकौड़ा व्यवसायी सहमत हों, पर हमारी अपनी राय तो अक्षरश स्पष्ट है कि बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र म¨दी जितने भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हुए हैं, उतने भारत के लिए त¨ कतई भी नहीं और यह निर्विवाद सत्य है कि 27 मई, 2014 से 26 मई, 2016 के बीच कई राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा व भाजपा समर्थित दलों की हुई शर्मनाक पराजय के पश्चात प्रधानमंत्री को यह समझ में आया कि वादाखिलाफी के नतीजे सुकूनदायक नहीं हो सकते तथा वर्ष 2013-14 में हमने जो वादे किये थे वो तो निभाएगे नहीं और इसलिए अचानक ही उन्होंने 8 नवंबर, 2016 की मध्य रात्रियों को नोटबंदी कर दिया। ये ऐसा ही भयानक कदम था, जैसे इन इमरजेंसी थी। म¨दी की दलील थी कि 8 नवंबर 2016 के सरकार के फैसले से अमीरों को नुकसान और गरीबों को फायदा होगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ तथा करोड़ों जन धन खाते बंद हो गये। दरअसल, म¨दी का यह स्वभाव है कि एक कदम आगे रखते हैं तो वापस कदम हटाना नहीं जानते हैं, चाहे गलत कदम ही क्यों न हो, अच्छा राजनीतिज्ञ वह होता है, जो तीन कदम आगे बढे, त¨ एक कदम पीछे हटे ताकि उससे क¨ई रास्ता मिले, पर इस गुण का मोदी में सर्वथा अभाव है। वो सोचते हैं कि मैंने जो कर दिया, उसे मैं सही साबित करके छोड़ूंगा।

जीएसटी एक बहुत पुराना पेंडिंग मसला था और जल्दबाजी में उसको पास करवाकर लागू कर दिया। अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र जो नोटबंदी से निराश थे, वो जीएसटी से और पूरी तरह हताश हो गये। वित्तीय वर्ष 2017-18 से ही निकल गया। अब लोकसभा चुनाव महज 14 महीने दूर है और मोदी अब कुछ करना भी नहीं चाहें तो इन दिनों कुछ नहीं कर सकते। ई-वे बिल की अनिवार्यता से सिर्फ व सिर्फ इंस्पेक्टर राज की वापसी होगी, न तो रोजगार के नये अवसर पैदा होगे और न ही जीएसटी के लागू ह¨ने के बाद राजस्व में आई कमी क¨ पूरा किया जा सकता है। वर्ष 2018-19 के बजट में सरकार ने ऐसे वादे कर दिये हैं, जिसे आगामी 14 महीने में कतई भी पूरा कर ही नहीं सकते हैं। मसलन, व्यर्थ की बाजीगरी से भारतीय बेटे बेटियों को व्यापक नुकसान हुए हैं और रजामंदी के बजाय रंजिश की म¨दी की नीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था की चूंलें हिला दी हैं। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में युवा वर्क फ़ो¨र्स का अपना खास महत्व ह¨ता है और स्वयं भारत सरकार की वर्ष 2017 की यूथ इंडिया रिपोर्ट के मुताबिक एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों में शुमार चीन की कुल आबादी में 18 से 35 आयु वर्ग के युवक युवतियों की संख्या 22.31 फीसदी के मुकाबले भारत की कुल आबादी में 18 से 35 आयु वर्ग के युवक युवतियों की तादाद 36.68 फीसदी है तो फिर सहज ही सवाल खड़े होंगे कि भारतीय नौ जवानों पर नरेंद्र की कुदृष्टि की वजह क्या है?

अब पार्लियामेंट को मोदी एंड कंपनी इलेक्शन कैंपन के लिए इस्तेमाल करें, तो ये वक्त जाया करने की बात है अन्यथा, इससे तो कतई भी इनकार नहीं किया जा सकता कि पकौड़ा व्यवसाय को जॉब करार देने की पीएम की हरकत पर अमित शाह भाईशाह की सत्य की बगैर परवाह किये राजस्थान की जनता ने 1 फरवरी 2018 को भाजपा को साइलेंटली उठाकर अजमेर व अलवर लोकसभा क्षेत्र से बाहर फेंक दिया और हुजूर को मैसेज दे दिया कि देश वर्ष 2017 की श्रम व रोजगार मंत्रालय की रिप¨र्ट से वाकिफ है कि संगठित क्षेत्र में महज तीन करोड नौकरियां हैं, जबकि 44 करोड़ से अधिक भारतीय कामगारों की फौज को असंगठित क्षेत्र में र¨जगार मिला हुआ है, जहां सीमित सामाजिक सुरक्षा मिलती है और न्यूनतम वेतन का मुश्किल से ही पालन होता है।

मौजूदा समय में ग्रामीण एवं शहरी भारत में औसत दिहाड़ी पारिश्रमिक की दर काफी कम है। एक किसान धान की बुआई कर प्रति एकड़ प्रतिमाह महज 2400 रुपये कमाता है और गेहूं की बुआई कर प्रति एकड़ प्रतिमाह 2600 रुपये कमाता है। युवा वर्ग की ख्वाहिश थी कि आर्थिक तरक्की उस दिशा में हो, जिसी उपलब्धियां का ला उसे मिले। मोदी के नेतृत्व को आगे बढ़ाने की युवा वर्ग की यह रणनीति एक हद तक सफल भी रही और देश में खुशनुमा माहौल भी कुछ हद तक बना लेकिन नोटबंदी के बारह महीनों बाद से यह उत्साह ठंडा पड़ता दिख रहा है। युवाओं में उदासी है। मोदी से उसकी जो अपेक्षाएं थी वे पूरी नहीं ह¨ पायी। सबसे ज्यादा परेशानी नौकरियों और अर्थव्यवस्था को लेकर हैं, क्योंकि मोदी के नेतृत्व से जैसी उम्मीद थी, हुआ कच्चे तेल के दाम भी काबू में रहे। मगर भारत में रोजगार विहीन कर प्रबंधन व्यवस्था, सुदृढ़ीकरण का दौर रहा। नयी नोकारियों के पैदा होने की बजाय पुरानी नौकरियों को खत्म होने की रफ्तार में तेजी आ गयी। नोटबंदी के दौरान जभी युवा वर्ग मोदी सरकार का पक्का समर्थक बनकर लाइनों में खड़ा रहा, जीएसटी ने उसकी भी सोच बदल दी। अबनीख म¨दी के घ¨टाले का क्या असर पड़ता है, यह देखना होगा। लेकिन ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा, की छवि को धक्का लगा है और म¨दी के वायदों तथा उनके पूरा होने के बीच एक फासला है। रही सही कसर म¨दी सरकार के आखिरी बजट ने पूरी कर दी। युवाओं कों उम्मीद थी कि 2018-19 के बजट में सरकारी कर्मियों के खाली पड़े पदों पर नियुक्ति को तवज्जो दी जाएगी, मगर उम्मीदें पूरी नहीं हो पायी। इससे पहले कि नौजवानों की हताशा असंतोष में बदल सकती है, हम फैज अहमद फैज की कविता की चंद पंक्तियों को स्मरण करते हैं।
ऐ खाक नशीनों उठ बैठो वो वक्त करीब आ पहुंचा है,
जब तख्त गिराये जाएंगे, जब ताज उछाले जाएंगे,
अब टूट गिरेंगी जंजीरें अब जिंदानों की खैर नहीं,
जो दरिया झूम के उट्ठे हैं तिनकों सेन टाले जाएंगे।।
ले ही मिशन 2019 की तैयारियों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) अघोषित रूप से जुट चुका है, लेकिन वह तो सिर्फ व सिर्फ वर्करों की भाजपा की जरूरत क¨ पूरी करने में सक्षम हैं, भाजपा को वोटरों की आवश्यकता क¨ पूरी करने की कुव्वत से आरएसएस अब भी लैस नहीं है और सारा दारोमदार इस पर निर्भर है कि 2019 तक भावनात्मक मुद्दों से युवाओं का जुड़ाव कितना ह¨ पाएगा, क्योंकि आगामी चौदह महीनों में रोजगार के क¨ई नये अवसर तो पैदा हो ही नहीं सकते हैं।

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