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सेंटर फॉरमॉनीटरिंग इंडियन इक¨नॉमी की जनवरी 2018 की रिप¨र्ट चीख -चीखकर बयां कर रही है कि वर्ष 2013 में देश में बेर¨जगारी की दर 3.8 फीसदी, वर्ष 2014 में 4.7 फीसदी, वर्ष 2016 में 5.0 फीसदी एवं वर्ष 2017 में 5.2 फीसदी थी और तकनीकी शिक्षा ग्रहण करने के बाद वर्ष 2010 तक देश में 60 फीसदी इंजीनियर जॉब पाते थे, पर इन दिनों इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद 60 फीसदी नौजवानों को भारत में नौकरी नहीं मिल रही है। विकास के अच्छे दिन घोटालों के करोड़ों से खरबों में पहुंचने के दिनों में बदल रहे हैं, पर भारतीय बिजनेस स्कूलों के केवल 20 फीसदी एमबीए डिग्रीधारी ही क¨र्स खत्म करने के बाद इन दिनों नौकरी हासिल कर पा रहे हैं तथा भारतीय वाणिज्य एवं उद्य¨ग मंडल (एस¨चैम) की दिसंबर 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक बिजनेस स्कूलों एवं इंजीनियरिंग कॉलेजों के छात्रों को मिलने वाले वेतन पेश कश में भी वर्ष 2015 की तुलना में 40 से 45 फीसदी की कमी आयी है ओर हकीकत तो यहां तक है कि विगत दो सालों में जिन एमबीए डिग्रीधारियों व इंजीनियरों को भारत में नौकरी मिली है, उनमें से आधे से अधिक को योग्यता के अनुरूप वेतन नहीं मिल रहे हैं।
दुर्भाग्य तो यह कि 18 से 35 आयुवर्ग के जिन भारतीयों ने वर्ष 2014 में केंद्र की सरकार में भाजपा के आने का रास्ता साफ किया था, उन भारतीयों का रसूख ही मोदी की नीतियों में सर्वाधिक कमज¨र पड़ता दिख रहा है और भारतीय बेरोजगार में 47 फीसदी 22 से 39 आयु वर्ग हैं, जबकि केंद्र एवं राज्य सरकार में इन दिनों 20 लाख से ज्यादा स्वीकृत पद खाली हैं, बावजूद इसके कि माननीय रेलमंत्री पीयूष गोयल ने भारतीय रेलवे में दो लाख से अधिक पदों को समाप्त कर दिया और देश के सरकारी बैंको में कर्मचारियों का इस कदर अकाल है कि मौजूदा बैंककर्मियों को अधिकतर शाखाओं में नियमित तोर पर बारह घंटे से अधिक काम करने पड़ रहे हैं। स्वयं ही केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय ने मौजूद वर्ष के आरम्भ में खुलासा किया है कि केंद्र सरकार के विभिन्न वर्गों में इन दिनों ग्रुप ए के 15284 ग्रुप बी के 49740 एवं ग्रुप सी के 321410 पद खाली है, परंतु खबरें आ रही है कि केंद्र सरकार के कार्यालयों में लगातार पांच सालों से खाली पड़े पदों को केंद्रीय वित्त मंत्रालय समाप्त करने जा रही है।
लो इससे अधिक शर्मनाक बात और क्या हो सकती है कि भारत के दो तिहाई से अधिक राज्यों में भाजपा या भाजपा समर्थित सरकार है, पर कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की व्यापक कमी के वजह से उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में जारी गिरावट का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है और सरकारी विद्यालयों, पुलिस स्टेशनों तथा अस्पतालों में 59 फीसदी पद विगत चार सालों से रिक्त पड़े हैं तथा केंद्रीय कर्मचारी चयन आयोग के दफ्तरों के बाहर बेरोजगार की आक्रोशित भीड़ चीख-चीखकर बयां कर रही है कि काली अर्थ व्यवस्था से भारत की मुक्ति के विधि विशेषज्ञ वित्तमंत्री के कांसैप्ट को यथार्थ के धरातल पर आने की उम्मीद बिल्कुल भी इसलिए नहीं की जा सकती कि प्रतिभाऔं की अनदेखी करते हुए प्रधानमंत्री के नाक के नीचे इनकम टैक्स, कस्टम व एक्साइज इंस्पेक्टर के पदों की खुलेआम बिक्री हो रही है। हो सकता है कि सत्ता के नशे में बुरी तरह से मदहोश मोदी जी को हमारी आवाज सुनाई नहीं दे हैं, लेकिन इतना तो सच है कि,