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मोदी की नींद उड़ा सकता है अखिलेश का ये दलित कार्ड, बीजेपी ने सोचा भी न होगा!
सपा के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक बीजेपी को हराने के लिए अखिलेश यादव अपने हिस्से की 5-10 लोकसभा सीटों की कुर्बानी देने तक को भी तैयार हैं. अंदर की खबर है कि मायावती 2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के सााथ 40 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है. अखिलेश के नज़दीकी सूत्रों के मुताबिक मायावती को ज़्यादा सीटें देने का मन बना चुके हैं. इसका संकेत उन्होंने हाल ही में अपनी आगरा यात्रा के दौरान दिया भी. उन्होंने कहा कि बीजेपी का हराने के लिए वो कुछ लोकसभी सीटों की कुर्बानी भी दे सकते हैं. सूत्रों के मुताबिक मायावती को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने का ऐलान गठबंधन के सभी सहयोगी दलों के बीच सहमति बनने पर ही किया जाएगा.
भारतीय राजनीति में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री बनने रास्ता यूपी से होकर जाता है. इसी लिए पिछले लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी ने गुजरात के वड़ोदरा के साथ उत्तर प्रदेश में वाराणसी से भी लोकसभा का चुनाव लड़ा था. दोनों सीटों से जीतने के बेद मोदी ने वड़ोदरा से इस्तीफा दिया और वाराणसी को अपनी कर्मक्षेत्र बनाकर यूपी के नाता जोड़ा. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को के 42.63 फीसदी वोट और 71 सीटें मिली थीं. दो सीटें उसके सहयोगी अपना दल को मिली थी. इस तरह यूपी की 80 में से 73 सीटों पर एनडीए का कब्ज़ा हो गया था.
यूपी में बीजेपी के वर्चस्व को तोड़ने के लिए सपा-बसपा गठबंधन बजूद में आाया है. इसके बाद ही यूपी में बीजेपी को हार लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव में हार का मुहं देखना पड़ा है. अखिलेश यादव इसी गठबंधन के सहारे केंद्र की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहते हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में सपा को 22.35 फीसदी वोट और पांच सीटें मिली थी. 31 सीटों पर वो दूसरे स्थान पर रही थी. दो सीटें उसने उपचुनाव में जीती. इस लिहाज से देखें तो अगले लोकसभा चुनाव में 36 सीटों पर उसका जायज़ हक बनता है. वहीं पिछले चुनावा में बसपा को 19.77 फीसदी वोट के बावजूद कोई सीट तो नहीं मिली थी लेकिन 34 सीटों पर वो दूसरे स्थान पर रही थी. अब मायावती 40 सीटों की माांग कर रही है.
हालांकि अभी कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद की दावेदारी ठोक रहे हैं. अगर कांग्रेस 150 से ज्यादा सीटें नहीं जीत पाई तो सहयोगी दल राहुल गांधी को बतौर पीएम स्वीकार नहीं करेंगे. इसी स्थिति को भांपते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी मोदी के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाकर चुनाव लड़ने की पहल करके प्रधानमंत्री पद के लिए अपने पर तौल चुकी हैं. आंध्र प्रदेश के मुख्यंमत्री चंद्रबाबू नायडु भी खुद को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मान कर चल रहे हैं. लेकिन देश में जिस तरह दलित मुद्दा राजनीति के केंद्र में आया हैं उसे देखते हुए मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में मायावती हर लिहाज़ से पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रधानमंत्री पद की मज़बूत उम्मीदवार हो सकती हैं. मायावती निर्ववाद रूप से देश में दलितों की सबसे बड़ी नेता हैं.
आज दलित एजेंडा देश की राजनीति के केंद्र में आ चुका है. देश के हर हिस्से से दलितों पर अत्यााचर की ख़बरें आ रही हैं. दलितों में बीजेपी और संघ परिवार के खिलाफ़ ज़बर्दस्त गुस्सा है. इसी गुस्से को कम करने के लिए पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को बार-बार सफाई देनू पड़ रही है कि मोदी राज में आरक्षण पर कोई आंत नहीं आएगी. अखिलेश यादव दलितों के इसी गुस्से को सियासी तौर पर भुना कर दोतरफा फायदा उठाना चाहते हैं. उन्हें लगता है कि अगर इस वक्त मायावती को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाए तो देश भर का दलित बसपा के साथ खड़ा हो जाएगा. इससे बीजेपी का कमर टूट जाएगी. बसपा का कोर दलित वोटर उसके सााथ आने से देेश भर के मुसलमानों का भी संयुक्त विपक्ष को साथ मिलेगा. को साथ मिलेगा.
मायावती के केंद्र की राजनीति में सक्रिय होने से अखिलेश को दूसरा फायदा यह है कि 2022 में यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव में वो खुद बीजेपी के मुख्यंमत्री के सामने अकेले उम्मीदवार होंगे. एसे में उनके दोबारा मुख्यमंत्री बनने की संभावनांए ज्यादा रहेंगी. अखिलेश अभी उम्र के चौथे दशक में हैं. उनके पास राजनीति में लंबी पारी खेेलने के लिए खूब समय है. मायावती उम्र के छह दशक पार कर चुकी हैं. उनके पास समय कम है. लिहाज़ा उनका सियासी भतीजा उन्हें दिल्ली के तख्त के सब्ज़बाग दिखा कर लखनऊ में अपनी जड़े हमेशा के लिए मजबूत करना चाहता है.