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कर्जमाफी का चुनावी हथकंडा देश की GDP रफ्तार को बिगाड़ देगा!
शिव कुमार मिश्र
17 April 2017 1:43 PM GMT
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उत्तर प्रदेश में कृषि रिण की माफी के एक पखवाड़े बीतने और अन्य राज्यों में ऐसा किये जाने की मांग के बीच एक विदेशी ब्रोकरेज फर्म ने वर्ष 2019 के चुनाव तक ऐसे लोक लुभावने उपायों के कारण वित्तीय बोझ सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के दो फीसदी के स्तर को छू जाने का अनुमान जताया है.
बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच के एक विश्लेषक ने कहा, वर्ष 2019 के चुनाव से पहले किसानों की रिण माफी राजकोषीय और ब्याज दर का जोखिम खड़ा करने वाली है और इससे कर्ज व्यवसाय की संस्कृति प्रभावित होती है. कंपनी का अनुमान है कि यह माफी जीडीपी के करीब दो फीसदी के बराबर बैठेगी.
योगी आदित्यनाथ सरकार की रिण माफी पांच अरब डॉलर अथवा प्रदेश के जीडीपी के 0.4 प्रतिशत के बराबर बैठती है जो अन्य राज्यों को भी ऐसे लोकप्रिय उपायों को अपनाने के लिए प्रेरित करेगा. उल्लेखनीय है कि ऐसे ही मांग महाराष्ट्र, हरियाणा और तमिलनाडु सहित अन्य राज्यों में की जा रही है.
वास्तव में मद्रास उच्च न्यायालय ने प्रदेश सरकार को आदेश दिया है कि वह पूरे के पूरे कृषि रिण को माफ करे जिससे राज्य के राजकोष पर 4,000 करोड़ रुपये का बोझ आयेगा.
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार ने 2.15 करोड़ लघु एवं सीमांत किसानों को 1,00,000 रुपये तक के कृषि रिण को माफ कर दिया है. इससे राज्य के वित्त पर 307.29 अरब रुपये का बोझ आएगा. इसके अलावा सरकार को 7 लाख किसानों को 56.30 अरब रुपये के कर्ज को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति को बट्टे खाते में डाल दिया.
प्रधानमंत्री का चुनावी वादा पूरा करने के लिए उत्तर प्रदेश के किसानों का जिस तरह कर्ज माफ किया गया उसके बाद देश के कई राज्यों से कर्जमाफी की मांग तेज हो रही है. बीते कई हफ्तों से तमिलनाडु के किसान दिल्ली में धरने पर बैठे हैं वहीं कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने प्रधानमंत्री से यूपी की तर्ज पर अपने किसानों का कर्ज माफ करने के लिए गुहार लगा रखी है.
स्रोत आज तक
शिव कुमार मिश्र
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