Archived

तीन तलाक़ का मुद्दा, ध्यान भटकाने का सरकारी कार्यक्रम

Majid Khan
22 Aug 2017 5:53 AM GMT
तीन तलाक़ का मुद्दा, ध्यान भटकाने का सरकारी कार्यक्रम
x
तीन तलाक़ का मुद्दा केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद बहुत ज़ोरो शोर से उठाया गया था. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मामले में कई बार बयान दिए थे.एक बार को ऐसा लग रहा था की देश में अब सभी मुद्दों और परेशानियों को हल कर दिया गया है...........


Image Title



माजिद अली खान, राजनीतिक संपादक


आज सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक़ सम्बंधित अपना फैसला सुना दिया है. पांच जजों की खंडपीठ में तीन जजों ने तीन तलाक को बिलकुल पाबंदी के लायक बताया है और दो जजों ने इस मुद्दे को केंद्र सरकार के माध्यम से कानून बना कर हल करने को कहा है. मुख्य न्यायधीश ने केंद्र सरकार से कहा है की वह ६ महीने में तीन तलाक़ पर कानून बनाये.

तीन तलाक़ का मुद्दा केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद बहुत ज़ोरो शोर से उठाया गया था. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मामले में कई बार बयान दिए थे.एक बार को ऐसा लग रहा था की देश में अब सभी मुद्दों और परेशानियों को हल कर दिया गया है सिर्फ एक मसला तलाक़ का ही रह गया जिस पर देशव्यापी बहस की आवश्यकता है और ये तलाक़ का मसला देश के हर आदमी का और हर घर का मसला हो. मीडिया भी इस मसले पर खूब मज़े में थी. मुसलमाँनो के मसलो से बराये नाम दिलचस्पी रखने वाली मीडिया भी इस मसले पर खूब खूब पेश पेश रही है जिसकी वजह से कई सवाल उठते हैं.


Image Title


तीन तलाक़ के बहाने इस्लाम पर हमला

पहला सवाल ये ज़हन में आता है की जिस मीडिया या सरकार को पूरी मुस्लिम कौम की परेशानियों से कोई दिलचस्पी न रही हो और जिस सरकार में मंत्री देश के मुसलमानो को देश से बाहर भगाने की धमकी देते रहे हो वह इस मामले में मुस्लिम औरतो के इतने हमदर्द कैसे है गए. दरअसल मामला ये है की मीडिया या उन तत्वों को मुसलमान औरतो से हमदर्दी नहीं हुई बल्कि उन्हें इस्लाम पर निशाना साधने के लिए मौके की तलाश रहती है.

तीन तलाक़ के मामले भी जब न्यायालयों में जाने लगे तब इस्लाम विरोधियो को लगा की इस मामले को भुनाया जाये और इस बहाने इस्लाम को इंसानियत विरोधी और न्याय विरोधी धर्म साबित किया जाये तथा मुस्लिम औरतो के बहाने इस्लाम के मानने वालो को कंफ्यूज कर दिया जाये. इसी मंशा के तहत इस मुद्दे को देश का सबसे बड़ा मसला करार दिया गया और कोर्ट से लेकर संसद और न्यूज़ रूम तक सिर्फ इसी मसले पर बहसें हुई. ऐसी ऐसी औरतो के जान बूझ कर खड़ा किया गया जो बेझिझक इस्लाम के खिलाफ बोल सकती थी. हलाला लफ्ज़ के ज़रिये इस्लाम की मज़ाक उड़ाने की कोशिश भी हुई.


Image Title


देश के अन्य मुद्दों पर पर्दा डालने की कोशिश

केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद ये परिपाटि बन गयी है की जब सरकार किसी मुद्दे पर घिरने लगे तो कोई न कोई ऐसी बहस समाज में शुरू करा दी जाये जिससे देश के दो बड़े समुदाय हिन्दू और मुस्लिम आपस में एक दूसरे के खिलाफ बयानबाज़ी में जुट जाये. कभी गाय का मुदा कभी तलाक़ का मुद्दा, यानि जनता का ध्यान असली मुद्दों से भटकाने के लिए भी ये नए नए शिगूफे छोड़े जाये और जनता को भ्रमित करने की कोशिश की जाये और तीन तलाक़ का मसला उठाना भी एक शिगूफे से ज़्यादा कुछ नहीं है. फिलहाल अगर हम देखें की देश का एक बहुत बड़ा हिस्सा बाढ़ की चपेट में है और बड़ी जनसँख्या बाढ़ से परेशान है और लगातार मरने वालो की संख्या बढ़ रही है तब सरकार की तरफ से ऐसी साज़िशें होती हैं की किसी न किसी बहस के ज़रिये मीडिया का सहारा लेकर जनता को इनके असली मुद्दों से भटका कर किसी गैर ज़रूरी बहस में उलझा दिया जाये.

एक देश एक कानून की वकालत करने वालो की साज़िश

केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद आर एस एस जो शुरू से ही देश को हिन्दू राष्ट्र के रूप में स्थापित करने की कोशिश करता रहा है और देश में धर्म के आधार पर किसी को भी अलग कोई रियायत देने के खिलाफ रहा है मोदी सरकार बनने के बाद मौक़ा चूकना नहीं चाहता और किसी भी सूरत में मुसलमानो को संविधान द्वारा मिली हुई रियायतों को ख़त्म कर देना चाहता है. संविधान में किसी भी धर्म के अनुयायियों को साफ़ तोर से छूट मिली हुई है की वह अपने मज़हबी मामलों को बिना किसी हस्तक्षेप के मान सकते हैं. यह बात संघी और भगवा टोले को सदा नागवार गुज़रती रही है. इसलिए संघ की तरफ से एक देश एक कानून का राग सदा अलापा जाता रहा है.

तीन तलाक़ के मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने सीधे तोर से परसनल ला बोर्ड में हस्तक्षेप से इंकार करते हुए केंद्र सरकार को इसमें कानून बनाने के लिए कहा है और ये काम छह महीने के अंदर करने के लिए कहा है. अब यहाँ से फिर सिविल कोड की बहस देश में शुरू होगी जो हिन्दू मुस्लिम नफरत में तब्दील होगी जिसका फायदा अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा और मोदी को मिलना तय है. कॉमन सिविल कोड की तरफदारी करने वाले आज से ही किसी भी सूरत में परसनल लॉ बोर्ड के खिलाफ बोलना शुरू कर देंगे और हो सकता है की इसे राष्ट्रविरोधी करार भी दे दिया जाये, इससे देश में एक नफरत का सैलाब आ सकता है और देश के लिए आने वाला समय बहुत चिंता भरा हो सकता है .


Image Title


तीन तलाक़ के बाद

तीन तलाक़ के इस फैसले पर मीडिया में बहुत सी मुस्लिम औरतो को हँसते हुए तथा मिठाई बाँटते हुए दिखाया जा रहा है. तीन तलाक़ के मसले को मुस्लिम औरतो और मौलवियों के बीच जंग के तोर से पेश करने की कोशिश हो रही है. मान लिया अब कोई मर्द तीन तलाक़ एक साथ कह कर शादी ख़त्म नहीं कर सकता और ऐसा करना बिलकुल इस्लाम के खिलाफ भी था. क़ुरआन मजीद में तलाक़ का जो तरीक़ा बताया गया है वह तीन तलाक़ तीन महीने में देनी चाहिए यानि तीनो तलाक़ो के बीच एक अवधि होनी चाहिए जिससे पति पत्नी में सुलह की कोई गुंजाईश रह जाये. लेकिन तलाक़ के मामले में ये ही बात सामने आयी है कि अक्सर तलाक तभी होती है जब मिया बीवी के बीच ताल्लुक़ात इतने खराब हो जाएं और वह किसी सूरत साथ रहने को तैयार न हो. सवाल ये पैदा होता है कि तीन तलाक़ के एक साथ कह देने पर पाबंदी के बाद तलाक़ होना बंद हो जायेगा.

जिन्हे साथ नहीं रहना उन्हें कोई कानून साथ रहने पर मजबूर नहीं कर सकता. हो सकता है कि मजबूरी में साथ रहना एक दुसरे की जान लेने का बहाना न बन जाये और समाज में एक नई आफत मर्द औरत के गले न पड़ जाये. इस्लाम इसीलिए निकाह और तलाक़ को आसान बना देना चाहता है कि एक दुसरे से अलग होने के सख्त कानून एक दुसरे को मारने पर मजबूर न कर दें. तीन तलाक़ के इस मामले को मौलवियों और औरतो के बीच जंग बनने से रोका जाये और मौलवी साहेबान को चाहिए कि वह इस मामले में बोलते हुए नरमी बरते और बिलकुल मर्द बन कर बात न करें नहीं तो मौलवियों से नफरत इस्लाम से बदगुमानी का जरिया बन सकती है.


पर्सनल ला बोर्ड के गैर ज़िम्मेदाराना क़दम

तीन तलाक़ के मसले पर चाहे इस्लाम कि मज़ाक उडी हो या मौलवियों की, हलाला के बहाने इस्लाम पर हमला करने कि कोशिश की गयी हो या शरीयत पर इसमें कही न कही परसनल ला बोर्ड भी ज़िम्मेदार है. बोर्ड इस मामले में हाथ साफ़ नहीं रख सकता. जब बोर्ड को पता है की मर्द तलाक़ के मामले में नियम का दुरूपयोग कर रहे हैं तो बोर्ड के लोगो को जल्दी से जल्दी क़दम उठाने चाहिए थे. हलाला रस्म को इस्लामी बता कर जिस तरह ज़िना कि महफ़िलें समाज में सजाई जा रही थी वह ऐसा नहीं है किसी को पता नहीं था. बारहा टीवी चैनलों ने स्टिंग कर हलाला के नाम पर इस्लाम और मौलवियों को निशाना बनाना जारी रखा बोर्ड आखे मूँद कर सोता रहा.

जब सरकार ने इसमें कुछ फ़ितने फैलाने की कोशिश तो बोर्ड ने तब भी सही क़दम न उठा कर इसे इस्लाम पर हमला ही क़रार दे दिया, क्या बोर्ड के नज़दीक इस्लाम दीन भी कन्फयुज़न भरा दीन है, नहीं, इस्लाम एक मुकम्मल निज़ामे हयात यानि सम्पूर्ण जीवन व्यवस्था है तो कैसे इस मामले में इस्लाम ने कोई हल नहीं दिया. बोर्ड को इस मामले में बहुत पहले क़दम उठाने चाहिए थे जिससे इस्लाम और उम्मत मज़ाक का जरिया न बने. लोगो को तलाक़ का क़ुरानी तरीक़ा बताना चाहिए था, बोर्ड ने इस मामले में सबसे बड़ा कन्फ्यूज़न ये पैदा कि या कि तीन तलाक़ एक साथ देना गुनाह तो है और एक साथ तीन तलाक़ देने वाला गुनाहगार है लेकिन उसे कोई सज़ा नहीं मिल सकती, सज़ा मिलेगी तो उस औरत को जो गुनहगार नहीं है. इस्लाम एक इन्साफ पसंद दीन है और वह किसी मामले में गुनहगार को आज़ाद नहीं छोड़ता, लेकिन इस्लाम के नाम पर बोर्ड ने गुनाहगार को आज़ादी दे दी और एक बेगुनाह औरत को अपने माँ बाप या भाइयो के सहारे ज़लील होने के लिए छोड़ दिया.

तीन तलाक़ देकर वह मर्द तो सांड की तरह आज़ाद घूमता रहे और औरत दो वक़्त कि रोटी के लिए उस मर्द के बच्चो को उठाये घूमती रहे. और जब मर्द से उन बच्चो कि ज़िम्मेदारी उठाने के लिए कहा जाये तो वह एक दम औरत पर बदचलनी का इलज़ाम लगा कर उन बच्चो को ही किसी और का गुनाह क़रार दे दे. इस्लाम में किसी भी सूरत में किसी के साथ नाइंसाफी नहीं हो सकती. लेकिन बोर्ड ने सिर्फ अपनी मोलवीयाना हटधर्मी कि वजह से तीन तलाक़ का विरोध नहीं किया. बोर्ड को इस मसले और दूसरे बहुत से मसलो में जल्दी जल्दी क़दम उठाने चाहिए और फितनाबरदार लोगो को ऐसे फ़ितने उठाने का मौक़ा नहीं देना चाहिए.

Next Story