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कर्ज़माफ़ी से केन्द्र सरकार का कोई लेना - देना नहीं, सस्ते कर्ज़ का झाँसा देकर किसानों के साथ धोखा करना है

कर्ज़माफ़ी से केन्द्र सरकार का कोई लेना - देना नहीं, सस्ते कर्ज़ का झाँसा देकर किसानों के साथ धोखा करना है
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Do not give any credit to the central government farmer
किसानों की कर्ज़माफ़ी से केन्द्र सरकार का कोई लेना - देना नहीं ' - हमारे देश के वित्तमंत्री कई दिनों से यह राग अलाप रहे थे । यह फरमाते हुए उनके चेहरे के हावभाव देखे जा सकते थे। प्रतीत हो रहा था कि किसान उनकी प्राथमिकता से परे है । किसानों से उनका कोई लेना - देना नहीं। क्योंकि उन्हें पता है कि वोट माँगने के लिए किसान के दरवाजे पर उन्हें जाना नहीं। उन्हें जनता से क्या लेना - देना ? उनका काम तो प्रधानमंत्री की कृपा से चल ही रहा है।


इस समय प्रधानमंत्री के बाद सबसे बड़े ओहदे पर वही हैं। जिसके पास इतने बड़े लोकतांत्रिक देश का '' वित्त '' और '' रक्षा विभाग '' एक साथ हो। उसका क्या कहना ? यों भी वह कभी चुनाव जीते नहीं। वह लोक और लोकतंत्र की जमीनी हकीकत से बिल्कुल नावाकिफ हैं। वास्तव में देखा जाय तो वह प्रधानमंत्री के लिए वित्त और रक्षा विभाग के एक आला अफ़सर जैसे हैं । जिस तरह उन्हेंाने ''जी एस टी कर '' का प्रावधान किया , उससे साफ जाहिर होता है कि आम आदमी के बटुये से धेला तक निकलवा लेने की कला में वह दक्ष हैं । पेशे से वह सुप्र्रीम कोर्ट के जाने - माने वकील रहे हैं। अब जब मध्यप्रदेश , महाराष्ट्र, हरियाणा के किसान जाग चुके है और आत्महत्या के बजाय पुलिस की गोली से मरने को तैयार दिख रहे हैं तो प्रधानमंत्री का माथा ठनकना स्वाभाविक हैं। जो आग मध्यप्रदेश में लगी है उस पर शीघ्र काबू न पाया गया तो उसकी चिनगारी पूरे देश में फैल सकती है। अन्ततः प्रधानमंत्री ने आग को ठंडा करने की एक और योजना बनायी। बड़े जोर -शोर से उसका ऐलान भी किया । लोगों को यह लगा सरकार ने किसानों को कोई बहुत बड़ा तोहफ़ा देने जा रही। पूरा देश भ्रमित हो गया। हकीकत में ऐसा कुछ भी नहीं।

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई गयी और रियायती ब्याज दर पर कृषि -ऋण की मंजूरी दी गयी । इसके तहत किसानों को तीन लाख रूपये तक अल्पकालिक-ऋणपर चार फीसदी ब्याज ही देना होगा जबकि अभी किसानों को सालाना 9 फीसदी ब्याज का भुगतान करना पड़ता है । सरकार ने इसके लिए 20,339 करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया। इससे 8.2 करोड़ किसानों का फ़ायदा होगा। सरकार ने ब्याज पर दी जाने वाली इस रियायत को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ - साथ सहकारी और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को भी भेजेगी । इस योजना को एक साल के लिए नाबार्ड और रिजर्व बैंक लागू करेंगे - यह खबर प्रसारित करायी गयी। वास्तव में यह योजना तो पहले से ही इन सभी बैंकों में लागू है। हर साल सरकार इस योजना का नवीनीकरण करती है । सरकार को चाहिए था कि यह'' रूटिन '' नवीनीकरण करने के उपरान्त वह सीधे बैंकों को परिपत्र के जरिये अवगत करा देती। लेकिन सरकार ने इसे भुनाना चाहा। सरकार ने इसे नया बताकर आँखों में धूल झोंकने का काम किया। यह किसानों के लिए सस्ते कर्ज़ का झाँसा मात्र है। किसानों को इसमें कुछ नया ढूँढने की जरूरत नहीं। यह किसान आन्दोलनों को बहकाने का एक तरीका मात्र हो सकता है।

मौजूदा समय में अमूमन सभी बैकों का फसली --ऋण देने का तरीका कमोवेश एक जैसा है। किसानों की जोत -सीमा , और खसरा -खतौनी को आधार मानकर सभी बैंके जिनमें वाणिज्य , सहकारी और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक शामिल हैं , भारतीय रिजर्व बैंक के नियमानुसार किसानों को --ऋण मुहैया कराती हैं। इसके लिए किसानों को '' किसान क्रेडिट कार्ड -स्मार्ट कार्ड '' की सुविधा दी जाती हैं । यह कार्ड पहले एक साल के लिए किसानों को उनके कृषि क्रिया -कलापों को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। फिर सन्तोषजनक लेन -देन की स्थिति में ऋण - सीमा में बढोत्तरी करके आगे के लिए भी बढा दिया जाता है। एक ऋण - माप के तहत एक हेक्टेयर जोत पर रबी और खरीफ की फसलं के लिए तकरीबन एक लाख की कैश क्रेडिट की सीमा निर्धारित की जाती है। इस कार्ड के बन जाने कि बाद किसान एक लाख रूपये तक जब चाहे लेन - देन कर सकता है। किसानों को एटीएम की सुविधा भी प्रदान की जाती है। इस प्रकार जब चाहे वह अपनी जरूरत पर पैसा प्राप्त कर सकता हैं। बार-बार बैंक का चक्कर नहीं लगाना पड़ता। वर्तमान में वैसे तो फसली --ऋण पर प्रभावी ब्याजदर 10.5 फीसदी है। लेकिन ऋण -खातेां में ब्याज मात्र 7 फीसदी की दर से लगता है। पर जब किसान वही ऋण-राशि एक साल के भीतर बैंक को लौटा देता है तो ब्याजदर मात्र 4 फीसदी ही रखी जाती है। जैसे एक किसान ने एक लाख का कर्ज लिया और साल भर में न अदा कर पाया तो उससे 10500 रूपये का अतिदेय ब्याज वसूला जायेगा। लेकिन जब वह साल भर के भीतर अदा कर देगा तो केवल 4500 रूपये ब्याज देकर फुरसत पा जायेगा। यह योजना बैंकों में 2006-07 से चल रही है। इस 4 फीसदी ब्याज-दर की योजना को इन्दिरा गाँधी ने पहली बार 1972 में '' विभेदक ब्याज दर '' के नाम से लाँच किया था। इसी के साथ किसानों की फसल- बीमा का भी सवाल उठता है। प्राकृतिक - आपदा से बचने के लिए किसानों को यह सुविधा-प्रदान की गयी है। इसके अन्तर्गत किसानों के ऋण खातों से 2.़5 फीसदी की दर से प्रीमियम लेकर उनकी फसलों का बीमा कर दिया जाता है । यह योजना किसानों के लिए फायदेमंद होते हुए भी तकलीफदेह है । फसल- बीमा का प्रीमियम हर किसान से अनिवार्यतः लिया जाता है। जबकि सरकार को चाहिए कि बिना प्रीमियम के हर फसल को बीमित माने। लेकिन सरकार इसे अपनी आय का एक स्रोत बनाती है। इससे किसानों के ऋण -खाते का अवशेष काफी बढ़ जाता है। हजारों किसानों से प्रीमियम लेकर दस - बीस किसानों को राहत के नाम पर कुछ दे देना किसान - हित में कहाँ तक तर्कसंगत है ?
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डॉ डी एम मिश्रा
लेखक वरिष्ठ कवि व साहित्यकार हैं
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