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केरल में जारी है वामपंथी हिंसा का खेल?

Special Coverage News
9 Aug 2017 9:33 AM GMT
केरल में जारी है वामपंथी हिंसा का खेल?
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सांकेतिक तस्वीर
पढ़िए केरल में जारी राजनीतिक हिंसा पर अनिल पांडेय का यह लेख.........
अनिल पांडेय
केरल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं की सुनियोजित तरीके से हत्या की जा रही है। राज्य में जब से वामदलों की सरकार बनी है तब से यह खूनी खेल और बढ़ गया है। हाल ही में संघ के एक और कार्यकर्ता राजेश की बर्बर तरीक से हत्या कर दी गई। राजेश को न्याय दिलाने और राज्य में राजनीतिक हिंसा पर विराम लगाने की मांग को लेकर केरल से लेकर दिल्ली तक लोग सड़कों पर उतर आए हैं।
पढ़िए केरल में जारी राजनीतिक हिंसा पर अनिल पांडेय का यह लेख.........

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मैं बार-बार विस्मया को देख रहा था। उसके भोले और मासूम चेहरे के पीछे छिपे दर्द को पढ़ने की कोशिश कर रहा था। सोच रहा था कि क्या कोई विचारधारा ऐसी भी हो सकती है जो अपने विरोधियों की बर्बर हत्या तक कर देती है? उसे मासूमों को अनाथ बनाने में जरा भी दया नहीं आती? जब विस्मया से नजरें मिली तो लगा किमानों वह पूछ रही हो, "आखिर आप ने मेरे पिता को क्यों मारा...???" मैंने उसके चेहरे से नजर हटाने की कोशिश की, लेकिनहटा नहीं पाया। मुझे उसके चेहरे पर उसकी ही लिखी इंटरनेट पर वाइरल हुई कविता की लाइने दिखाई देने लगी, जिसे उसने अपने पिता की निर्मम हत्या के बाद लिखा था....

Have u killed my father
The god who I woke up to every morning?
Have u killed my love
The pillar of my life?
Have u killed my father...

जिस उम्र में बच्चे खिलौनों से खेलते हैं, उस उम्र में विस्मया अपने पिता एमए संतोष के हत्यारों को सजा दिलाने के लिएन्याय की गुहार लगा रही है। आठवीं में पढ़ने वाली केरल की 13 साल की इस अबोध बच्ची के पिता कीसत्ताधारी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीएम के लोगों ने इस वजह से बर्बर हत्या कर दी थी क्योंकि वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ता थे। वह कन्नूर जिले के पिनराई पंचायत के भाजपा के बूथ कमेटी के अध्यक्ष थे। उनकी गलती यह थी कि उन्होंनेसीपीएम उम्मीदवार के खिलाफ पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लड़ा था। वे चुनाव तो हार गए लेकिन दूसरे नंबर पर रहे।
स्थानीय सीपीएम नेताओं को लगा कि भविष्य में संतोष उनके लिए राजनैतिक चुनौती बन सकता है। फिर क्या था, संतोष की हत्या का फरमान जारी हो गया। 18 जनवरी, 2017 को जब वे घर पर अकेले थे तो सीपीएम के लोगों ने उन पर हमला कर दिया और बर्बरता दिखाते हुए उनके शरीर के कई टुकड़े कर दिए। विस्मया अकेली नहीं है जिसके पिता राजनीतिक हिंसा के शिकार हुए हैं। पिछले 60 सालों में केरल में संतोष जैसे आरएसएस के करीब 400 कार्यकर्ताओं की वामपंथियों द्वारा हत्या की जा चुकी है। राजनीतिक हिंसा के तहत हजारों आरएसएस कार्यकर्ता हमले के शिकार हुए हैं, जिनमें से कई लोग अंपग हो चुके हैं।

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केरल में लंबे समय तक वामदलों का शासन रहा है। पिछले साल मई में कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर सीपीएम की अगुआई वाली लेफ्ट डेमेक्रेटिक फ्रंट (एल़डीएफ) ने फिर से केरल में सरकार बना ली है। इसके बाद आरएसएस के कार्यकर्ताओं पर हमले फिर से बढ़ गए हैं। केरल के वर्तमान मुख्यमंत्री पिनारी विजयन का गृह जिला कन्नूर तो वामपंथी हिंसा का"रोल मॉडल" बन चुका है।पिनराई विजयन खुद भी संघ के एक कार्यकर्ता की हत्या के आरोपी हैं।

विजयन के नेतृत्व में सीपीएम के लोगों ने 28 अप्रैल 1969 को संघ के कार्यकर्तावी रामकृष्णन की हत्या कर दी थी। आरएसएस के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल कहते हैं, "केरल मार्क्सवादी हिंसा का प्रतीक बन चुका है। केरल में वामदल की नई सरकार के बहुत छोटे से कार्यकाल में 436 हिंसक घटनाएं अकेले कन्नूर जिले में हुई हैं।

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11 महीने के इतने कम कार्यकाल में 19 लोगों की हत्याएं हुई हैं, जिसमें 11 कार्यकर्ता हमारे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के थे। चार कार्यकर्ता कांग्रेस से जुड़े थे। 4 कार्यकर्ता थे तो सीपीएम के, लेकिन वो मार्क्सवादी विचार छोड़कर कहीं न कहीं संघ की शाखा, भारतीय मजदूर संघ या भाजपा की ओर आकर्षित थे, इस कारण उनकी भी हत्या कर दी गई।"कन्नूर में तकरीबन एक साल में हिंसा को लेकर 436 एफआईआर दर्ज की गई है। करीब 690 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है।

आजादी के बाद से ही केरल वामपंथियों का गढ़ रहा है। लेकिन धीरे-धीरे वहां उनका जनाधार खिसक रहा है। इसकी एक बड़ी वजह है दूसरे राज्यों की तरह ही केरल के लोगों में भी वामपंथ के प्रति मोह भंग होना है। वाम राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता तेजी से आरएसएस से जुड़ने लगे हैं। वामदलों के सैकड़ों स्थानीय पदाधिकारी न केवल संघ की शाखाएं लगाने लगे हैं, बल्कि सीपीएम कैडर को आरएसएस से जोड़ रहे हैं। यही वजह है कि आज केरल में आरएसएस की सबसे ज्यादा शाखा लगती है। यह संख्या करीब 4500 है और आरएसएस के मुताबिक किसी राज्य में लगने वाली उसकी शाखाओं की यह संख्या सर्वाधिक है। संघ के विस्तार से सीपीएम के नेता एक बार फिर बौखला गए हैं और उनकी सरकार बनते ही संघ कार्यकर्ताओं पर हमले तेज हो गए हैं।

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दरअसल, वामपंथी विचार के मूल में ही तानाशाही और हिंसा है। उनका खूनी इतिहास जग-जाहिर है। वामपंथ में अपने विरोधी विचारधारा के लोगों को समाप्त करने की प्रथा रही है।वामपंथी विचार को थोपने के लिए अन्य विचार के लोगों की राजनीतिक हत्याएं करने के लिए मार्क्सवादी कुख्यात हैं। पूरी दुनिया में जहां भी वामपंथी शासन रहा है, वहां विरोधी विचार को खत्म करने के लिए खूब खून बहाया गया। भारत में भी ऐसा हुआ है। नक्सलवादी इसी विचारधारा की उपज हैं।

पश्चिम बंगाल के सिंगूर में जिस तरह से वामपंथियों ने हत्याओं को अंजाम दिया था, वह भी किसी से छुपा हुआ नहीं है। सिंगूर कांड की वजह से जनता में इतना आक्रोश पैदा हुआ कि उन्होंने वाम दलों को सत्ता से उखाड़ कर फेक दिया। राष्ट्रवादी विचारधारा का संगठन आरएसएस हमेशा ही वामपंथियों के निशाने पर रहा है। केरल में यह लडाई आजादी के बाद से ही शुरु हो गई थी।
आजादी के फौरन बाद 1948 में जब केरल के त्रिवेंद्रम मेंआरएसएस की एक बैठक चल रही थी तभी इसकेद्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर पर मार्क्सवादियों ने हमला कर दिया था। इसके बाद 1952 में भी गोलवलकर जब अलप्पुझा में एक बैठक को संबोधित कर रहे थे, तब भी वामपंथियों ने उन पर हमला किया था। लेकिन दोनो बार गोलवलकर को आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने बचा लिया था। केरल में वामपंथियों द्वारा सबसे पहली राजनीतिक हत्या 1969 में दलित वडिक्कल रामकृष्ण की हुई थी। रामकृष्णा आरएसएस के सक्रिय कार्यकर्ता थे और ढेर सारे वामपंथियों को आरएसएस में लेकर आए थे। इसके बाद आरएसएस के स्वयंसेवकों की हत्या का जो सिलसिला शुरु हुआ वह बढ़ता ही गया।

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केरल में स्थानीय स्तर पर सीपीएम की अनौपचारिक रूप से अदालते लगती हैं। इन अदालतों में उन विरोधी विचारधाराओं के लोगों के खिलाफ हत्या के फरमान सुनाए जाते हैं जिनसे पार्टी को नुकसान की संभावना होती है। ऐसे में आरएसएस के साथ साथ दूसरे विरोधी दलों के भी कई कार्यकर्ताओं-नेताओं की हत्या की जा चुकी है। इसमें कांग्रेस और मुसलिम लीग के लोग भी शामिल हैं।

वामपंथियों की हत्या का तरीका भी बहुत ही खौफनाक और बर्रर है। अपने विरोधियों की गला काट कर शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर देना आम बात है। किसी भी लोकतांत्रिक देश में असहमति और विरोध का स्वर स्वाभाविक है।लेकिन बर्बर तरीके से मौत के घाट उतार कर विरोध को कुचलना लोकतंत्र की हत्या करना है।
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