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जनधन, वनधन और जलधन, सटीक जबाब दिया विश्लेषक अवधेश कुमार ने , हैरान होंगे पीएम
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भुवनेश्वर में आयोजित दो दिवसीय पार्टी कार्यकारिणी में जनधन, वनधन और जलधन की जो तुकबंदियां की उसके निहितार्थ गहरे हैं। दरअसल, मोदी इन तीनों अपने न्यू इंडिया के सपने को मूर्त रुप देने जगह-जगह व्याख्या कर रहे हैं। पार्टी कार्यकारिणी में भी उन्होंने सरकार और संगठन को इसके लिए कमर कसने का आह्वान किया।
जनधन से आम लोगों को बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ने तथा 28 करोड़ से ज्यादा जनधन खाता खोलने की चर्चा वो जगह-जगह करते हैं। उसे उन्होंने अन्य दो शब्दों से आगे बढ़ाया है। वनधन से उनका तात्पर्य ऐसे विकास से तो है ही जिससे पर्यावरण सुरक्षित रहे, यानी हमारे वन बचे रहें। किंतु इसके साथ आदिवासियों की जीवन रक्षा और वनों पर उनके नैसर्गिक अधिकारों को सुरिक्षत रखने का भाव भी है। इसके साथ जलधन का मतलब जल की एक-एक बूंद बचाना है। इसमें उन्होंने किसानों को सिंचाई के जल उपलब्ध कराना तथा उसमें हर बंद का सही उपयोग की अपील की।
ध्यान रखिए उन्हांने न्यू इंडिया के लिए भुवनेश्वर में दो नारे भी दिए पी2 और जी2। पी2 मतलब प्रो पीपुल और जी 2 मतलब गुड गवर्नेंस। इसका अर्थ है कि सरकार और संगठन दोनों आम आदमी की ओर अभिमुख हो तथा हम सुशासन दे सकें। यानी पूरा शासन गरीबोन्मुख हो। शासन गरीवों के लिए हो। जनधन इसका ही एक अंग था। वनधन और जलधन इसका अगला अंग होना चाहिए। जो शासन ऐसा करे वही सुशासन तथा वही लोक यानी गरीब अभिमुख शासन होगा। तो शासन एवं संगठन संबंधी प्रधानमंत्री की इस सोच से असहमत होना कठिन है।
लेकिन विचार करने वाली बात है कि आज तक अगर शासन गरीब अभिमुख नहीं रहा, वनों का विनाश हुआ, वनों से उसके नैसर्गिक स्वामियों आदिवासियों का अधिकार छीना गया तो किन कारणों से? बहुत बड़ी मात्रा में हमारे देश में जल यदि प्रदूषित होकर हमारे काम के नहीं रहे, जलों में कमी आई, किसानों के सिंचाई के लिए जल उपलब्धता में भी कमी आई तथा आम लोगांे को पीने का शुद्ध जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है तो क्यों? ये ऐसे प्रश्न है जिनका उत्तर यदि तलाशेंगे तो सीधा दोष शासन व्यवस्था का ही नजर आएगा। शासन की नीतियों के कारण ही हमारे सामने वनसंकट और जल संकट पैदा हुआ। साथ ही जो व्यवस्था हमने अपनाया उसमें विकास के नाम पर गरीबों का शोषण तथा पूरी प्रकृति में असंतुलन पैदा किया।
क्या प्रधानमंत्री ने कभी इस दिशा में विचार किया है? जब तक इस व्यवस्था में बदलाव नहीं होता आपका शासन चाहकर भी पूरी तरह गरीबोन्मुख नहीं हो सकता और न ही इससे वनधन और जलधन का सपना ही साकार हो सकता है।
अवधेश कुमार विश्लेषक वरिष्ठ पत्रकार