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आज कबीर जयंती है, घर के मुल्ले की खबर ली तो पडोस के पांडे को भी नहीं बख्सा!
शिव कुमार मिश्र
9 Jun 2017 5:29 AM GMT
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मैं नहीं समझता कबीर जैसा धर्मनिरपेक्ष इंसान कोई हुआ है
कबीर उन कुछ लोगों में हैं ,जिनके विचारों से मैं प्रभावित हूँ और जिनके क़दमों पर चलने की संभव कोशिश की है .बुद्ध और कबीर सैकड़ों वर्ष पूर्व हुए . एक ढाई हज़ार वर्ष पूर्व और दूसरे छह सौ वर्ष पूर्व .लेकिन दोनों मुझे हमेशा बहुत पास प्रतीत हुए हैं . अपने समय की गुत्थियों को सुलझाने में दोनों सामान रूप से सहायक सिद्ध हुए हैं .
बचपन से कबीरपंथ के साधुओं को देखता आया हूँ . अन्य साधुओं की तरह वे समाज से बहुत दूर कभी नहीं रहे .उनकी सहज , शांत ,स्वच्छ जीवन शैली मुझे हमेशा आकर्षित करती थी . कुछ सायना होने पर कबीर के बारे में जब कुछ पढ़ा ,तब लगा ऐसा भला आदमी जब इस संसार में रहा होगा ,तब यह संसार कितना सुन्दर होगा . मैं कल्पना करता कबीर के ज़माने की . आज भी करता हूँ . एक जुलाहा -बुनकर आध्यात्मिक गुरु है . वह बुद्ध की तरह भीख का कटोरा थामे नहीं , करघा थामे है . वह मिहनतक़श कवि है . अपने मिहनत की कमाई खाता है . ऐसा संत भला कितना प्यारा रहा होगा .
उन्होंने दस्तकारों -किसानों के ह्रदय को आध्यात्मिकता से जोड़ा . उनमे प्रेम ,श्रद्धा और ज्ञान के भाव अंकुरित किये . ऐसे दस्तकार -किसानों के उत्पादन के बल पर ही मध्य -काल का भारत उत्कर्ष पा सका . मुग़ल काल की रौनक अकबर की बपौती नहीं थी , भारत के दस्तकार -किसानों की मिहनत का नतीजा था . और इन सबके पीछे जो सबसे बड़ी कुछ हस्तियां थी ,उनमे कबीर और रैदास जैसे लोग थे . कबीर की कवितायेँ गुनगुनाता एक बुनकर बहुत खूब कपडे बुनता था , एक कुम्हार खूबसूरत घड़े . इन कविताओं को गुनगुनाते बढ़ई ,लुहार , दर्ज़ी , मोची सब अपनी कारीगरी निखार रहे थे . जितने भी दस्तकार थे उनके दिल आत्मसम्मान और ज्ञान से लबालब थे ,और ऐसे में कारीगरों के हुनर में चार -चाँद लगना ही था . इसीलिए मैं कहता हूँ हमें आज ही अपनी जनता को ज्ञान से जोड़ना है . ज्ञान की क्रांति लानी है . ज्ञान सम्पदा से जन-जन को जोड़ना है . कबीर कहते थे - " साधो , उठी ज्ञान की आंधी " , तो ज्ञान की आंधी ,यानि क्रांति लानी है ,तभी एक नया भारत बनेगा ,मजबूत भारत बनेगा . कबीर का यही सन्देश हमें अपनाना है .
आज सेक्युलरवाद पर बातें होती है . मैं नहीं समझता कबीर जैसा धर्मनिरपेक्ष इंसान कोई हुआ है . जहाँ भी पाखंड दिखा ,उन्होंने विरोध किया . घर के मुल्ले की तो खबर ली ही ,पड़ोस के पाण्डे को भी नहीं बक्शा . हमारे ज़माने के गांधीवादियों की तरह वह हिन्दू -मुसलमान एकता नहीं , मिहनतक़श तबकों की एकता कर रहे थे . वह लोगों को हिंदुत्व और इस्लामत्व ,वेद और कुरान से मुक्त कर रहे थे . वह रामराज के वर्णवादी समाज के नहीं , उस अमरदेस के प्रस्तावक थे ,जहाँ जाति- वर्ण और शेख -पठान -जुलाहे का कोई भेद न हो . विवेक -बुद्धिवाद के आग्रही कबीर आज हमारे लिए कहीं ज्यादा प्रासंगिक हैं .
वह अनेक रूपों में हमारे बीच हैं . वह संत हैं , लेकिन उनकी वाणी को लोगों ने कविता के रूप में देखा . वह कवि कहे गए . लेकिन कैसे कवि हैं कबीर . उनकी कविता हाय-हाय वाली नहीं है ,उल्लास की कविता है . आज उल्लास के कवि कम ही हैं . कवियों को कबीर से सीखना चाहिए ." हमन हैं इश्क मस्ताना ,हमन को होसियारी क्या ... " कबीर इश्क के कवि है , प्रेम के कवि हैं ,जीवन के कवि हैं .ऐसे कवि कम होते हैं ,कबीर बिरले कवि हैं .
साहेब बंदगी .
लेखक प्रेमकुमार मणि
शिव कुमार मिश्र
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