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कैलाश सत्यार्थी की पहल है 'विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस'

Arun Mishra
12 Jun 2017 12:35 PM GMT
कैलाश सत्यार्थी की पहल है विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस
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बच्चों के साथ नोबेल शांति पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी
पूरी दुनिया में हर साल 12 जून को विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस मनाया जाता है...
लेखक- अनिल पांडेय (वरिष्ठ पत्रकार)

पूरी दुनिया में हर साल 12 जून को विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस मनाया जाता है। लेकिन यह कम लोगों को ही पता है यह पहल नोबेल शांति पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी की है। श्री कैलाश सत्यार्थी ने दुनिया से बाल श्रम की समाप्ति के लिए 1998 में ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर यानी बाल श्रम विरोधी विश्व यात्रा का आयोजन किया था। छह महीने तक चली यह यात्रा 103 देशों से होकर गुजरी थी।

तब 80,000 किलोमीटर की दूरी तय करने वाली इस यात्रा में दुनियाभर के तकरीबन एक करोड़ लोग शामिल हुए थे। बाल श्रम के खिलाफ यह विश्व की सबसे बड़ी यात्रा थी और इसके जरिए ही पहली बार बाल मजदूरी और बाल दासता की तरफ विश्व समुदाय का ध्यान आकर्षित हुआ। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) कनवेंशन-182 और विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस इसी यात्रा का परिणाम है।

फिलिपीन्स की राजधानी मनीला से यह यात्रा 17 जनवरी, 1998 को शुरु होकर 6 जून, 1998 को जिनेवा स्थित आईएलओ के मुख्यालय पर समाप्त हुई थी। उस समय वहां आईएलओ की वार्षिक बैठक चल रही थी। जिसमें 150 देशों के श्रम मंत्री मौजूद थे। जब यात्रा में शामिल भोली मुस्कान और आंखों में अपने जैसे करोड़ों बच्चों की मुक्ति का सपना लिए बाल मजदूरी और बाल दासता से मुक्त हुए बच्चों के जत्थे ने आईएलओ की सालाना बैठक में प्रवेश किया, तो इसके तकरीबन 2000 प्रतिनिधियों ने खड़े होकर तालियों की गडगड़ाहट से बच्चों का शानदार अभिवादन किया था।

बच्चों के साथ सेल्फी लेते कैलाश सत्यार्थी


यात्रा की अगुआई कर रहे श्री कैलाश सत्यार्थी को आईएलओ की वार्षिक बैठक को संबोधित करने का मौका दिया गया। श्री सत्यार्थी सिविल सोसाइटी के ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्हें आईएलओ की वार्षिक बैठक को संबोधित करने का अवसर मिला था। तभी उन्होंने बाल श्रम और बाल दासता आदि के उन्मूलन के लिए एक कनवेंशन पारित करने की मांग उठाई थी। साथ ही श्री सत्यार्थी ने आईएलओ के मंच से यह मांग भी उठाई थी कि साल में कम से कम एक दिन बच्चों के नाम डेडीकेट किया जाना चाहिए।


इस दिन दुनियाभर की सरकारें, समाज के प्रबुद्द लोग, नीति निर्धारक बच्चों की शिक्षा, सुरक्षा और उनकी बेहतरी के लिए सोच विचार करें। आईएलओ ने फौरन पहली मांग मान ली और अगले साल 17 जून, 1999 को इसे कनवेंशन-182 के नाम से पारित कर दिया। आईएलओ के इस त्वरित निर्णय से श्री कैलाश सत्यार्थी के संघर्ष को बहुत बल मिला और एक झटके में बाल मजदूरी को पूरी दुनिया में गैरकानूनी घोषित कर दिया गया। लंबी जद्दोजहद के बाद आखिरकार भारत ने अब जा कर आईएलओ के कनवेंशन-182 पर हस्ताक्षर का फैसला किया है। यह कनवेंशन बाल श्रम, बाल दासता, बाल तस्करी, बाल वेश्यावत्ति आदि को प्रतिबंधित करता है। इस पर दस्तखत करने वाला देश अपने यहां इसे रोकने के लिए वचनबद्ध होता है। हालांकि भारत ने इस पर 18 साल बाद हस्ताक्षर करने का फैसला किया है, फिर भी मोदी सरकार की यह पहल सराहनीय है।


1998 में ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर यानी बाल श्रम विरोधी विश्व यात्रा का आयोजन किया था


आईएलओ के इतिहास में यह एक ऐसा कन्वेंशन है जिसे सर्वसम्मत्ति से पास किया गया था। इसके बाद के 18 सालों का इतिहास गवाह है कि इसकी वजह से दुनिया के तमाम देशों में बाल श्रम आदि को लेकर कई तरह की नीतियां और कानून बनें। श्री कैलाश सत्यार्थी द्वारा आईएलओ के मंच से उठाई गई यह मांग कि एक दिन बच्चों के लिए डेडीकेट होना चाहिए, मान ली गई। इसी के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र संघ ने बाल अधिकारों को संरक्षण देने के मकसद से साल 2002 में 12 जून को विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस मनाने का फैसला किया।


श्री सत्यार्थी की इस पहल का परिणाम आज सबके सामने है। जब बाल श्रम विरोधी विश्व यात्रा का आयोजन किया गया था तब दुनिया में करीब 25 करोड़ बाल मजदूर थे। आज इसमें करीब 8 करोड़ की गिरावट आई है और अब यह घट कर तकरीबन 17 करोड़ रह गई है।


लेकिन विभिन्न देशों की सरकारों और तमाम संगठनों के प्रयासों के बाद अभी भी करोड़ों बच्चे शोषण के शिकार हैं। इन्हें शोषण से मुक्त कराने के लिए अभी और लंबा सफर तय करना है। दुनिया में करीब 16.8 करोड़ बच्चे आज भी बाल मजदूरी के लिए अभिशप्त हैं। कुल बाल मजदूरों में से 5.5 करोड़ बच्चे ऐसे हैं जो गुलामी का जीवन जी रहे हैं। इस मामले में भारत की स्थिति भी बहुत बुरी है। यहां करीब 5 करोड़ बच्चों से बाल मजदूरी कराई जा रही है। भारत एक ऐसा देश है जहां दुनिया के सबसे ज्यादा बाल मजदूर हैं। यूनीसेफ की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में दुनिया के करीब 12 फीसदी बाल मजदूर रहते हैं, जो एक चिंता का विषय है।


यह यात्रा 17 जनवरी, 1998 को शुरू हुई थी..


कैलाश सत्यार्थी ने एक बार फिर दुनियाभर के बच्चों को हिंसा और शोषण से मुक्त कराने के मकसद से भारत की धरती से "100 मिलियन फॉर 100 मिलियन" नामक एक अभियान की शुरुआत की है। पांच साल तक चलने वाले इस आंदोलन से 100 से ज्यादा देशों के 10 करोड़ युवाओं को जोड़ा जाएगा जो दुनिया के 10 करोड़ वंचित बच्चों को शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए अभियान चलाएंगे। यह दुनिया का अपनी तरह का सबसे बड़ा युवा आंदोलन होगा।


इसी अभियान के तहत भारत में बाल यौन शोषण और बाल तस्करी के खिलाफ जन-जागरुकता फैलाने के लिए अगस्त से अक्टूबर, 2017 तक देशव्यापी "भारत यात्रा" का आयोजन किया जा रहा है। यह यात्रा हर राज्य के गांवों और कस्बों से हो कर गुजरेगी और युवाओं को बच्चों के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करेगी। उम्मीद है श्री कैलाश सत्यार्थी का यह आंदोलन करोड़ों बच्चों के मुक्ति के सपने को साकार करेगा और उनके लिए एक खुशहाल और सुरक्षित दुनिया बनाने में कामयाब होगा।


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