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कमजोर विपक्ष के सामने फेल सरकार को हो रही है बल्ले बल्ले!

कमजोर विपक्ष के सामने फेल सरकार को हो रही है बल्ले बल्ले!
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घोषणा पत्र एक भी बादा नहीं हुआ पूरा
देश की सीमा सुरक्षा को लेकर बड़ी बड़ी बातें करके जनता को लुभाने वाले फेल नजर आये. कश्मीर और पाकिस्तान को लेकर भी सरकार बुरी तरह दिशाहीनता की शिकार रही है. बिना निमंत्रण के प्रधानमंत्री की औचक पाकिस्तान यात्रा और जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ सरकार बनाने के भी नकारात्मक नतीजे ही सामने आ रहे हैं. बीते तीन वर्ष में एक भी दिन सेना और वाशिंदों का चैन से नहीं बीता.

नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान की ओर से संघर्ष विराम के उल्लंघन की घटनाओं में पिछले तीन सालों में रिकार्ड बढ़ोतरी हुई है. यूपीए सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2011 से 2014 के दौरान 36 महीनों में संघर्ष विराम के उल्लंघन के चलते जहां भारतीय सुरक्षा बलों के 103 जवानों और 50 नागरिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी, वहीं मोदी सरकार के पिछले 36 महीनों के दौरान सीमा पर 198 भारतीय सैनिकों और 91 नागरिकों की जान गई हैं.

नक्सली हिंसा में मरने वाले सुरक्षा बलों के जवानों और आम नागरिकों की संख्या में भी मोदी सरकार के पिछले 36 महीनों में बढ़ोतरी हुई है. नक्सलवाद की सबसे ज्यादा घटना बीजेपी साषित राज्य छत्तीसगढ़ और झारखंड में हुई. लेकिन केंद्र सरकार शांत क्यों?
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भाजपा के घोषणा पत्र में वादा किया गया था कि सत्ता में आने पर वह हर साल दो करोड़ लोगों के रोजगार का सृजन करेगी, लेकिन वास्तविकता यह है कि इस मोर्चे पर मोदी सरकार बुरी तरह नाकाम रही है. रोजगार के नए अवसर पैदा करने की दर पिछले आठ सालों के न्यूनतम स्तर पर है, यानी पूर्ववर्ती यूपीए सरकार से भी वह बहुत पीछे है. केंद्रीय श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पिछले आठ सालों में सबसे कम वर्ष 2015 और 2016 में क्रमश: 1.55 लाख और 2.31 लाख नई नौकरियां तैयार हुईं.

मनमोहन सिह सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2009 में 10 लाख नई नौकरियां तैयार हुई थी. वर्ष 2011 में 3.8 फीसद की बेरोजगारी दर 2017 में बढ़कर पांच फीसद हो चुकी है. जहां एक तरफ केंद्र सरकार नई नौकरियां तैयार नहीं कर पा रही है वहीं देश में बहुत बड़े वर्ग को रोजगार देने वाले आईटी सेक्टर में हजारों युवाओं की छंटनी हो रही है. आईटी सेक्टर पर नजर रखने वाली संस्थाओं के अनुसार भारत के आईटी सेक्टर मे सुधार की निकट भविष्य मे कोई संभावना नही दिख रही है. जहां तक बुनियादी सुविधाओं और नागरिक सेवाओं का सवाल है, उनमें हालात यूपीए सरकार की तुलना बदतर ही हुए हैं.
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भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में वादा किया था कि वह सत्ता में आने पर स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र की योजनाओं पर बजट प्रावधान में वृध्दि करेगी लेकिन व्यवहार में उसने अपने वायदे के विपरीत दोनों क्षेत्रों में पहले से जारी बजट प्रावधान में कटौती की है.

भाजपा के घोषणा पत्र में वायदा किया गया था कि वह बगैर निजी हाथों में सौंपे रेल सुविधाओं को आधुनिक बनाएगी लेकिन तीन साल में सरकार ने न सिर्फ निजी क्षेत्र के लिए रेलवे के दरवाजे खोले बल्कि घाटे की दुहाई देकर विभिन्न श्रेणी के यात्री किराए की दरों में तरह-तरह से बढ़ोतरी कर आम आदमी का रेल सफर बेहद महंगा कर दिया है. रेल दुर्घटनाओं का सिलसिला भी पहले की तरह जारी है. बुलेट ट्रेन चलाने का भाजपा का वादा अब लोगों के लिए मजाक का विषय बन गया है. रेल दुर्घटना में भी बड़ा इजाफा इस सरकार में देखने को मिला.
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भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में यूपीए सरकार के समय हुए घोटालों का हवाला देते हुए वायदा किया था कि वह सत्ता में आने के बाद भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देगी. हालांकि केंद्र सरकार के स्तर पर अभी कोई बड़ा घोटाला सामने नहीं आया है लेकिन भाजपा की कई राज्य सरकारें भ्रष्टाचार में बुरी तरह सनी हुई दिखाई देती हैं. इस सिलसिले में मध्य प्रदेश का व्यापमं घोटाला और छत्तीसगढ़ का खाद्यान्न घोटाला तो रोंगटे खडे कर देने वाला है. जिसमे एक सैकड़ा मौतें भी हो चुकी कई पत्रकारों की भी जान चली गई लेकिन सरकार ने अब तक अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी.

देश के विभिन्न इलाकों में सांप्रदायिक और जातीय तनाव तथा हिंसा की एकतरफा घटनाएं न सिर्फ देश के सामाजिक सद्भाव को नष्ट कर रही है बल्कि दुनिया भर में भारत की छवि को भी दागदार बना रही है. अफसोस की बात यह है कि सरकार का अपने वाचाल दलीय कॉडर पर कोई नियंत्रण नहीं है. कई जगह तो सरकारी संरक्षण में अल्पसंख्यकों, दलितों और समाज के अन्य कमजोर तबकों पर हिंसक हमलों की वारदातों को अंजाम दिया गया है. इस तरह की घटनाएं देश में गृहयुध्द जैसा वातावरण बनने का आभास दे रही हैं. उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में बीते एक माह में चार बार बबाल हो चूका है.

भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में अभिव्यक्ति की आजादी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई थी लेकिन पिछले तीन सालों के दौरान देखने में यह आया है कि जो कोई व्यक्ति सरकार या सत्तारूढ़ पार्टी की रीति-नीति से असहमति जताता है उसे फौरन देशद्रोही या विदेशी एजेंट करार देकर देश छोड़कर चले जाने की सलाह दे दी जाती है.

बड़े मीडिया घराने एक-एक करके बड़े उद्योग घरानों के नियंत्रण में जा रहे हैं जिसके चलते मीडिया निष्पक्षता और जन सरोकारों से लगातार दूर होते हुए सरकार की जय-जयकार करने में मग्न है.

कुल मिलाकर मोदी सरकार का तीन साल का कार्यकाल अपने घोषणा पत्र से विमुख होकर काम करने का यानी वादाखिलाफी का रहा है, जिसके चलते हर मोर्चे पर उसके खाते में नाकामी दर्ज हुई है तो आम आदमी के हिस्से में दुख, निराशा और दुश्वारियां आई हैं. यह स्थिति इस सरकार के बचे दो सालों के प्रति कोई उम्मीद नहीं जगाती है.

लेकिन देश का दुर्भाग्य यह भी है कि विपक्ष भी लकवा ग्रस्त नजर आ रहा है. हर मुकाम पर फेल सरकार को विपक्ष एक बार भी सटीक जबाब नहीं दे प् रहा है. सरकार अपनी सबसे बड़ी उपलब्धी चुनाव में नोट बंदी की बता रही थी लेकिन सरकार के अच्छे कामों में उसे सम्मिलित नहीं किया गया जिसका सबसे बड़ा कारण देश रोजागर विहीन हो रहा है. अभी हाल में लेबर व्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक देश में डेढ से दो लाख रोजागर की कटौती हुई है.
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