Archived

पद से हटते ही मुस्लिम सुरक्षा की चिंता क्यों?

Special Coverage News
10 Aug 2017 8:25 AM GMT
पद से हटते ही मुस्लिम सुरक्षा की चिंता क्यों?
x
अंसारी साहब जब तक पद पर थे तब तक शायद ऐसे बयान देना पद कि गरिमा के अनुरूप नहीं था लेकिन अब वह किसी पद या बाध्यता के पाबंद नहीं रहे इस लिए खुल कर बोल गए...

माजिद अली खान

उपराष्ट्रपति पद से हटने के बाद हामिद अंसारी का मुस्लिम सुरक्षा के बारे में दिया गया बयान आज कल काफी चर्चा में हैं. ऐसा नहीं है की ऐसा बयान किसी मुस्लिम बुद्धिजीवी के ज़रिये पहली बार दिया गया है लेकिन किसी उपराष्ट्रपति जैसे पद पर 10 साल तक आसीन रहने वाले किसी व्यक्ति का बयान पहली बार आया है. बयान को लेकर मुस्लिम और अन्य समुदायों में जो प्रतिक्रया सामने आ रही है और जो सवाल उभर रहे हैं उनमे ये बात सबसे प्रमुख है की आखिर पद से हट जाने के बाद ऐसा बयान क्यों जारी किया गया.

सबसे बड़ा सवाल ये है की क्या जब तक अंसारी साहब पद पर रहे मुसलमानो को कोई खतरा नहीं था. अंसारी साहब के बयान को सिर्फ राजनेताओ की भांति अक्सर दिए जाने वाले बयानों की तरह ही नज़रअंदाज़ किया जाये या गम्भीरता से इस पैर गौर किया जाये. ये भी उम्मीद नहीं की जा सकती की अंसारी साहब के बयान को बेतुका और बिला वजह का बयान कह कर रद्द कर दिया जाये. हकीकत ये है की इस बयान की मुस्लिम समाज को बहुत सख्त ज़रुरत थी. मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से वास्तव में मुस्लिम समाज के लोगो की साथ हुई घटनाएं इसी तरफ इशारा कर रही हैं. कुछ तो है जो मुस्लिम समाज के साथ सही नहीं हो रहा है और मुस्लिम समाज बेचैनी महसूस कर रहा है.

इसे भी पढ़ें : मुस्लिमों में इस समय असुरक्षा की भावना और बेचैनी का अहसास है : हामिद अंसारी

अगर सच्चाई के साथ पिछले 70 सालो के भारतीय मुसलमानो के इतिहास पर गौर किया जाए तो हम पाते हैं की मुसलमानो के साथ हिंसा हर सरकार में होती रही है और सांप्रदायिक दंगे भी होते रहे हैं जिनमे मुस्लिम समाज का बहुत जानी माली नुक्सान भी हुआ. लेकिन इस दौर में जो हिंसा की घटनाएं सामने आयी हैं उनके पीछे हिन्दू मुस्लिम समाज में फैल रही नफरत है जो वास्तव में मुसलमानो के लिए बहुत बड़ी चिंता है.

लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान जिस प्रकार भाजपा और मोदी जी के नेतृत्व में वोटिंग बहुसंख्यक समुदाय ने की उसमे मुस्लिम नफरत भी छुपी हुई थी. हालाँकि मोदी सरकार बनने के बाद काफी हद तक महोल को कंट्रोल किया गया तथा मोदी सरकार द्वारा ये सन्देश देने की कोशिश लगातार की गयी कि इस सरकार में किसी तरह का सांप्रदायिक भेदभाव नहीं होगा. लेकिन सांप्रदायिक नफरत इतनी उरूज पर है कि सरकार को नियंत्रण करना ही भरी पड़ रहा है.

हामिद अंसारी साहब ने ये बयान भी शायद इसी माहौल को देखने समझने के बाद दिया. अंसारी साहब जब तक पद पर थे तब तक शायद ऐसे बयान देना पद कि गरिमा के अनुरूप नहीं था लेकिन अब वह किसी पद या बाध्यता के पाबंद नहीं रहे इस लिए खुल कर बोल गए. हम इस बयान का समर्थन करते हुए अंसारी साहब से सिर्फ इतना कह सकते हैं कि अंसारी साहब जो बयान अंसारी साहब जब तक पद पर थे तब तक शायद ऐसे बयान देना पद कि गरिमा के अनुरूप नहीं था लेकिन अब वह किसी पद या बाध्यता के पाबंद नहीं रहे इस लिए खुल कर बोल गए. आपने दिया वो हक़ीक़त है और इसका पता भी सबको है और अक्सर लोगो ने मुस्लिम सुरक्षा को मुद्दा बनाया है लेकिन आप से मुस्लिन समाज सिर्फ बयान कि उम्मीद नहीं बल्कि ये उम्मीद करता है कि आखिर इस माहौल में उनके लिए सही रास्ता क्या होना चाहिए.

अंसारी साहब आप देश के एक बड़े पद पर रहे हैं और बहुत समझ बूझ वाले व्यक्ति हैं लिहाज़ा आप को बयान में समस्या नहीं समस्या का हल बताना चाहिए था. समस्या बताना तो राजनेताओ का काम है उसका हल निकलना आप जैसे बुद्धिजीवियों का काम है. आप ने ये बयान देकर सरकार को ये संदेश देने कि जुर्रत कि है वह क़ाबिले तारीफ है और सरकार आप के बयान को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती और हो सकता है कि प्रधामनंत्री मोदी १५ अगस्त को लालक़िला के अपने सम्बोधन में इस बयान के सन्दर्भ में भी कोई बात कहें.


Next Story