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यश भारती का कडवा सच!

यश भारती का कडवा सच!
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अमूमन यूपी की समाजवादी पार्टी की सरकार द्वारा बाँटे गये सभी पुरस्कारों पर उँगलियाँ उठती रहीं है चाहे वह नई प्रकाशित पुस्तकों पर मिलने वाले पुरस्कार रहे हांे या प्रवुद्धजनों की संस्तुति के आधार पर मिलने वाले पुरस्कार। जमकर धाँधली और चाटुकारिता चली है। फिर भी उन पुरस्कारों में कुछ मानक तय थे। लेकिन 'यश भारती' तो राजशाही दरबारियों को , राजशाही मर्जी से, राजशाही तरीके से जनता के खजाने को लुटाने वाली सरकारी खैरात की तरह रही। आई पी एस अधिकारी अमिताभ ठाकुर और सेंटर फार सिविल लिबर्टीज की ओर से डॉ नूतन ठाकुर ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिकाएँ भी दायर कर रखी है , और उस पर लगातार सुनवायी चल रही हैं। अब वर्तमान सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी जाँच और समीक्षा के आदेश दे दिये हैं।


संज्ञान में रखते चलें कि यशभारती के सम्मान को लेकर वर्ष 2006 में जो दिशा निर्देश बनाये गये थे उसमें यह कहा गया है यह उसी व्यक्ति को मिले जिसकी राष्ट्रीय- अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति हो और उसकी उपलब्धियाँ इस प्रकार की हों जो निर्विवाद हों । जिसे यह पुरस्कार दिया जाय उसे हर व्यक्ति कहे कि हाँ वह इसके योग्य है। नियमावली में यह भी कहा गया है कि एक लंबे समय का उसकी आराधना और सेवा का परिणाम रहा हो। लेकिन समाजबादी सरकार अपने ही बनाये नियम को तोड़कर यशभारती लुटाने में लग गयी। इसीलिए यशभारती सम्मान को लेकर अनवरत विवाद होता रहा। यशभारती सम्मान अब तक तथाकथित जितनी हस्तियों को दिया गया है उनमें कई ऐसे भी नाम हैं जो ठीक से स्थानीय स्तर पर भी नहीं जाने जाते। कई नाम ऐसे हैं जिन्हे लोगों ने पहली बार सुना होगा। जैसे-अस्थवी अस्थाना मात्र 18- 19 वर्ष की लड़की है। कहा जाता है कि वह घुड़सवार है। इस प्रदेश में लाख - दो लाख घुड़सवार हैं। जो उनसे घुड़सवारी में कहीं अच्छे हो सकते हैं । सच्चाई यह है कि वह किसी बड़े नौकरशाह की बेटी हैं।


दूसरा एक उदाहरण देखिये -रामपुर के एक चेस के खिलाड़ी हैं वजीर अहमद। चेस का खिलाड़ी होना बड़ी बात नहीं। वह कोई विश्वनाथन नहीं हैं। उनकी कोई ख्याति और उपलब्धि नहीं। ग्रैंडमास्टर तक नहीं। कुमकुम आदर्श कथक टीचर हैं । एटा के रहने वाले रामसिंह मुलायम सिंह यादव के गुरु हैं। सुरभि रंजन की भी ऐसी कोई ख्याति नहीं सिवा इसके कि वह पूर्व प्रमुख सचिव आलोक रंजन की पत्नी हैं।


यह भी महत्वपूर्ण है कि जब सुरभि रंजन को यह पुरस्कार दिया गया तब उनके पति आलोक रंजन प्रमुख सचिव थे। अपर्णा कुमार आई पी एस अधिकारी हैं उन्हें भी पर्वतारोहड़ के लिए यशभारती दी गयी है । एवरेस्ट फतह करना अब कोई खास बात नहीं रह गयी । हिलेरी , तेनजिंग का जमाना अब नहीं रहा । एवरेस्ट पर आना- जाना अब सामान्य बात है । वह एक पर्यटन केन्द्र जैसा हो गया है । इसमें कई ऐसे भी हैं जो नौकरी या अच्छे व्यवसाय में लगे हैं जिनकी मोटी आमदनी है । अब वह साथ में 50,000रू महीने की पेन्शन भी पा रहे है । एकमुश्त 11 लाख की रकम तो पहले ही झटक चुके हैं। जिस प्रकार इधर लगातार तीन - चार वर्षाे में ' यश भारती ' लोगों को मिली और अलग - अलग समय में मिली उसे देखकर आश्चर्य होता है। कई बार तो अंतिम समय तक नाम बढ़े । यह भी कहा गया कि जो कार्यक्रम संचालिकाएँ थीं जब उन्होने कह दिया कि साहब जब सबों को दिया जा रहा है तो मुझे क्यों नहीं ? तो उनको भी दे दिया गया । इसी प्रकार दो लड़कियों को यह पुरस्कार इसलिए दे दिया गया क्योंकि उन्होंने मेट्रो चला दिया । वह भी कुछ घंटे के लिए । मेट्रो तो कोई भी ट्रेन का ड्राइबर चला देगा । हम उस युग में नहीं रहते जहाँ बादशाहत का युग हो । हम एक लोकतंत्र में रहते हैं । यहाँ 11 लाख का इतना बड़ा धन कोई अपनी जेब से नहीं दे रहा । 2016-17 में तो साहित्य, संगीत,फिल्म,पत्रकारिता, संस्कृति,संगीत,नाटक,खेल सहित विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य हेतु दिया जाने वाला यह पुरस्कार कुश्ती , जलसंरक्षण,हस्त शिल्प, पुरोहित, ज्योतिषी,उद्योग, ब्राडकासस्टर, मोबाइल बैंकिग, सैन्य सेवा,कव्वाली,रसोइया , शेफ, मंच संचालन व अन्य समाज सेवा के नाम पर किन - किन तथाकथित महाविभूतियों को दे दिया गया आप सोच भी नहीं सकते।


73 लोगों की इस जंबोजेट सूचीमें बामुश्किल से 15 लेागों के नाम मैंने पहले कभी सुना हुआ होगा। धन के इतने बड़े अपव्यय और अपात्र लोगों को पुरस्कृत होते देखकर वरिष्ठ साहित्यकार वीरेन्द्र यादव से चुप नहीं रहा गया । उन्होने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा कि--' यशभारती को अपयश भारती बनने से बचायें ।' जो दैनिक अखबार '' जनसंदेश टाइम्स '' में प््राकाशित भी हुआ । श्री यादव जी ने पत्र में लिखा था कि- ''यश भारती' सम्मान देने के पूर्व जिस तरह सम्मानित किये जाने वालों का चयन किया गया ,एक दिन पहले से लेकर अंतिम क्षण तक नाम जुड़ते कटते गए वह सचमुच शर्मनाक है. समारोह के मंच पर दरियादिली दिखाते हुए जिस तरह कार्यक्रम उदघोषिका को भी 'यश भारती' से सम्मानित करने की स्वीकृति दी उससे सामन्ती दरबारों की स्मृति ताज़ा हो आई .यह सचमुच पहली बार था कि लखनऊ दूरदर्शन के तीन उद्घोषक/प्रस्तोता एक साथ सम्मानित होकर देश की विभूति बन गए और उसी दूरदर्शन के सेवानिवृत्त उपमहानिदेशक और जाने माने संस्कृतिविद विलायत जाफरी उपेक्षित. और तो और समाजवादी पार्टी की बुलेटिन छापने वाला भी पत्रकार विभूति के रूप में यश भारती से विभूषित हो गया और परिवार का ज्योतिषी व चिकित्सक भी . दृश्य यह था कि लोग सम्मानित हो रहे थे लेकिन कईयों के लिए न मानपत्र था ,न शाल . एकाध के लिए तो सिर्फ गुलदस्ता ही बचा था. महोदय, इस प्रहसन से बचिए और सरकार को इससे मिलने वाली बदनामी से बचाईये . इस भ्रम को दूर कीजिये कि जितने अधिक लोगों को आप सम्मानित करेंगें उतना ही अधिक आपकी कीर्ति में इजाफा होगा. शायद आपको अनुमान नहीं कि एक अपात्र को साहित्य/संस्कृति /कला के नाम पर सम्मानित कर कितने सुपात्रों के कोप का आप शिकार बनते हैं. । मैनपुरी के 78 वर्र्षीय कवि दीन मोहम्मद दीन ने 'यश भारती' से नवाजे जाने के बाद एक अखबार के संवाद दाता से मन का गुबार कुछ यूँ निकाला -'इस बार उम्मीद तो थी , मगर आशंका भी थी। इसकी वजह है कि अब पुरस्कार भी जुगाड़ से मिल जाते हैं । जुगाड़ वालों के आगे योग्यता पिछड़ जाती है ।' अब यह कह पाना मुश्किल है कि - मियाँ की दाढ़ी में तिनका तो नहीं । वैसे पेशे से , वह प्राइमरी के अध्यापक थे ,पर उन्होंने अपनी पहचान हिंदी के मुस्लिम राम भक्त कवि के रूप में बनायी। मुस्लिम होकर राम पर लिखना बड़ी बात है।


किसी भी बड़े पुरस्कार को पाने के लिए यह पात्रता कम तो नहीं। वैसे दीन जी 'पुरस्कारों के कवि ' माने जाते है। अब तक उन्हें अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके है। लंबी श्रृंखला है ।उससे भी गंभीर बात यह है कि ऐसे - ऐसे लोग हैं जो इतनी मोटी रकम पेन्शन में ले रहे हैं। आई पी एस अधिकारी अपर्णा कुमार वेतन के साथ पचास हजार महीने कर पेन्शन भी ,ले रही हैं । जो नियमों और नीतियों के वि़रूद्ध है । कितने रिटायर्ड प्रोफेसर हैं , वाइस चांसलर हैं जो दो - दो पेन्शने ले रहे हैं । कितने चिकित्सक ऐसे है जिनकी प्रतिदिन की आमदनी पचास हजार से अधिक है , वह भी पेन्शन ले रहे हैं। इससे प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर अनायास बोझ पड़ रहा है । सोशल मीडिया पर भी इस मामले ने तूल पकड़ा और जमकर लोग कोसे । साहित्यकार महेन्द्र कुमार ने लिखा कि यूपी की सपा सरकार द्वारा फर्जी साहित्यकारों को सम्मानित कर उन्हें अपना चाटुकार बनाने का काम किया जा रहा है। मैं राष्ट्रकवि दिनकर की भूमि बिहार से आने के कारण साहित्यकारों के अपमान के सन्दर्भ में थोड़ा ज्यादा ही संवेदनशील हूँ।


मेरा मानना है साहित्यकार का कृतित्व उसके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग होता है, पुरस्कार और सम्मान तो उसके कृतित्व की परछाई होती है लेकिन इस परछाई को ही कोई चुरा ले, तो साहित्यकारों का मर्माहत होना स्वभाविक है।यह तो पुरस्कार घोटाला ही नही साहित्यकारों /रचनाकारों का अपमान भी है ! फर्जी शायर, कवि, साहित्यकार सम्मानित किये जाएं और असली साहित्यकार हींन कुंठा का शिकार होकर मुह ताकते रह जाएँ। इसी को कहते हैं अंधेर नगरी चौपट राजा ! न कोई मानदंड, न कोई निर्णायक मण्डल, बस खाता न बही राजा जी जेा कही, सब सही। साहित्यकार रूप सिंह चंदेल ने कहा - मामला यश भारती का ही नहीं है। उ.प्र. सरकार के सभी पुरस्कार हथियाए जाते हैं। एक पुस्तक और दो लाख का पुरस्कार। सरकार लुटा रही है और जुगाड़ बना लोग लूट रहे हैं। सब भयानक है। विक्रम जी छाजेड़ ने साफ शब्दों में कहा - आज पुरस्कार उन्हें ही मिलते हैं जो चारण पंथी हो । कवि - लेखकमो0 मूसा खान अशान्त की प्रतिक्रिया भी काबिलेगौर है । उनका कहना था कि पुरस्कार मिलना चाहिए और सही समय पर मिलना चाहिए, किन्तु जब केवल विरदावली गाने वालो को ही मिलना है तो क्या किया जाये।

जिन लोगों ने जुगाड़ लगाकर पैसा कमा लिया है पुरस्कार के रूप मे उनके लिए बस इतना ही,

ज़मीर बेंच के दौलत कमा लिया उसने सुकून दिल का मगर वो कमा नही पाया।।














लेखक जाने माने कवि डॉ डीएम मिश्र

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