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पाकिस्तानी महिलाओं ने पतियों से कहा-पीट कर देखो हाथ तोड़कर अल्लाह भरोसे छोड़ देंगे

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31 May 2016 9:45 AM GMT
पाकिस्तानी महिलाओं ने पतियों से कहा-पीट कर देखो हाथ तोड़कर अल्लाह भरोसे छोड़ देंगे
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इस्लामाबाद: ट्रेडिशन और इस्लामी दायरे में बंधी रहने वाली पाकिस्तानी महिलाएं उस नए बिल को मानने से इनकार कर दिया है, जिसमें पतियों को पत्नियों की पिटाई का हक देने की बात कही गई है। शगुफ्ता अब्बास नाम की महिला ने लिखा है, मुझे पीट कर तो देखो जो हाथ मुझ पर उठाओगे, उसे तोड़कर तुम्हें अल्लाह के भरोसे छोड़ दूंगी। मैं जुल्म को बर्दाश्त करने वाली नहीं हूं।

पिटाई का जिक्र काउंसिल ऑफ इस्लामिक आइडियोलॉजी (सीआईआई) की तरफ से बनाए गए नए महिला बिल में है। सीआईआई पाकिस्तान की 20 मेंबर्स की कॉन्स्टिट्यूशनल बॉडी है। यह संसद को कानून बनाने की सलाह देती है।

इसकी सिफारिशों में कहा गया है कि अगर औरत पति का कहना न माने, उसके मुताबिक कपड़े न पहने, फिजिकल होने से मना करे तो पति उसे हल्के से पीट सकता है। साथ ही गर्भधारण (कंसीव) के 120 दिन बाद अबॉर्शन करवाने को हत्या करना माना जाए।

इसके विरोध में महिलाओं ने #TryBeatingMeLightly कैम्पेन छेड़ दिया है। ब्लॉगर सादिया अजहर राब्या अहमद ने लिखा है हमारा चैलेंज है कि पुरुष तो हमें अपने इंटेलिजेंस से पछाड़ें। हम महिलाएं सूरज की तरह हैं। अगर हाथ लगाने की कोशिश भी की तो जलाकर रख देंगे।

वहीं, राइटर अदीका लालवानी लिखती हैं- "मुझे पीटने की कोशिश तो करके देखिए, मैं तुम्हारे लिए तबाही बन जाऊंगी। प्रियंका पाहुजा ने लिखा मुझे ड्राइविंग का 7 साल का एक्सपीरियंस है। ऐसी हरकत की तो तुम्हें कार से रौंद दूंगी।

सुंबुल उस्मान लिखती हैं मुझ पर हाथ भी उठाया तो तुम अगली सुबह देखने के लिए जिंदा नहीं बचोगे। फिजा रहमान ने कहा तुम मुझे घर में पीटोगे, लेकिन मैं तुम्हें लोगों के बीच ले जाकर पीटूंगी।

एक स्कूल टीचर संदस रशीद लिखती हैं अगर मुझे पीटा तो तुम्हारी बाकी जिंदगी दयनीय बना दूंगी और इसके लिए तुम खुद जिम्मेदार होगे। इन सबसे अलग मरयम शब्बीर लिखती हैं पिटाई के बजाय तुम मुझे इतना प्यार दो कि चाहकर भी मैं तुम्हारी बात टाल न सकूं।

CII के बिल के मुताबिक, महिलाएं हिजाब न पहनें, अजनबियों से बात करें, ज्यादा ऊंची आवाज में बोलें और शौहर की इजाजत के बिना किसी को पैसे दें तो शौहर पिटाई कर सकता है। यह भी कहा गया है कि महिला नर्सें पुरुष मरीजों का ध्यान नहीं रख सकतीं।

प्राइमरी एजुकेशन के बाद लड़कियां को-एड स्कूलों में नहीं पढ़ सकतीं। महिलाएं किसी फौजी लड़ाई में हिस्सा नहीं ले सकतीं। साथ ही वे एडवर्टिजमेंट में काम नहीं कर सकतीं। महिलाएं फॉरेन डेलिगेशन का वेलकम नहीं कर सकतीं। वे पुरुषों से घुल-मिल नहीं सकतीं, अजनबियों संग घूमने-फिरने नहीं जा सकतीं।
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