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मोदी वैश्विक नेता बनने की आतुरता में जिस तेजी से दौडे, उससे पड़ोसी देशों से सम्बंध बिगड़े, चीन से दोस्ती फिर दूरी!

Special Coverage News
7 July 2017 10:50 AM GMT
मोदी वैश्विक नेता बनने की आतुरता में जिस तेजी से दौडे, उससे पड़ोसी देशों से सम्बंध बिगड़े, चीन से दोस्ती फिर दूरी!
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The fastest run in Modi's eagerness to become a global leader, his relations with neighboring countries will get worse!

चीन के साथ ताजा तनाव और टकराव के लिए काफी हद तक भारत सरकार की कूटनीतिक विफलता और विदेश नीति में जल्दबाजी जिम्मेेदार है। चीजों को ठीक से समझे बिना प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी वैश्विक नेता बनने की आतुरता में जिस तेजी से दौडे उससे पहले से चले आ रहे मसले और जटिल हुए हैं। विदेश नीति का संतुलन गडबडाया और पाकिस्तान के साथ ही चीन के साथ भी भारी गतिरोध पैदा हो गया है। याद आ रहा है शपथ लेने से पहले ही किस त्वरा से मोदी जी का पाकिस्तान – प्रेम छलका था। अनुकल आधार भूमि तैयार करने के कूटनीतिक प्रयासों के बिना नवाज शरीफ को बुलाना और फिर बिन बुलाये ही पाकिस्तान के चक्कर लगा आना। हो सकता है उन्हों ने सद्भावना में ऐसा किया हो और उनकी मंशा पडोसी देश से संबंध सुधारने की रही हो , पर स्वाभाविक दुश्मन देश के साथ भावना प्रेरित आतुरता से बात नहीं बनती । अंतत: तमाम कटु अनुभवों के बाद प्रधान मंत्री का मोह भंग हुआ और भारतीय सेना को सर्जिकल स्टा्इक तक करनी पडी।


चीन के साथ संबंध बनाने में भी शुरुआती आतुरता दिखा प्रधान मंत्री अचानक सब छोड अमेरिका के बगलगीर हो गये। खिसियाये – झुंझलाये गर्वोन्मत्त चीन धमकी भरे अंदाज में अब दो ही विकल्प दे रहा है – भारत डोकलम से अपनी सेना पीछे हटाये या जंग के लिए तैयार रहे। वह भारत और कूटनीतिक प्रयासों की परवाह नहीं कर रहा। वह भारतीय सीमा से सटे इलाके पर सडक वगैरह बनाने और सामरिक मजबूती के प्रयास बीते दो दशक से कर रहा है और उसने बडे सैन्य अड्डे बना लिये हैं।


इन स्थितियों में हमारे टीवी चैनेल भले ही युद्धोन्माद में चीख चीख कर चीन को चबाये जा रहे हों पर यह तय है कि युद्ध भारत के लिए अनुकूल परिणाम वाला नहीं होगा। आबादी , सैन्यु – संख्या , संसाधन और अर्थ ब्यीवस्था सभी मोर्चों पर चीन भारत से भारी है। वह अपने युद्धक उपकरण खुद ही बनाता है जब कि भारत अमेरिका , इजरायल , रूस आदि से मंगायी सामग्री पर निर्भर है। युद्ध होता है तो यह भी तय है कि यह भारत – भूमि पर ही लडा जाएगा । साथ ही ताक में बैठे पाकिस्तान को तुरंत प्रछन्न घुसपैठ का मौका मिल जाएगा । कश्मीर में वैसे भी हालात सबसे ज्यादा खराब हैं।

भारत की विदेश नय में चूक भूटान के साथ ही सिक्किम को भी खतरे में डाल सकती है। जो विस्तारवादी चीन के आसान शिकार बन सकते हैं। अरुणाचल पर पहले से उसकी नजरें हैं। भारत भूटान के रक्षा और विदेश मामलों का संरक्षक है । सिक्किम के मुख्य मंत्री के कल के बयान को गंभीरता से लिया जाना चाहिए कि हम दोनों देशों के बीच फुटबाल बनने को भारत में शामिल नहीं हुए थे। उधर चीन ने भी कहा है कि भारत न माना तो वह सिक्किम को उकसाने का काम करेगा।

प्रधान मंत्री मोदी को इस मामले को गंभीरता से लेते हुए सब से पहले पूर्ण कालिक रक्षा मंत्री नियुक्त करना चाहिए। मनोहर पर्रिकर ने गतिशील और चैतन्य रक्षा मंत्री के रूप में अपनी स्वतंत्र पहचान बनायी थी । यही पहचान और महीनों पहले सेना को चुपचाप सर्जिकल स्टा्इक के आदेश देना उनकी विदाई का कारण बन गया।

अतिरिक्त काम के रूप में रक्षा मंत्रालय देख रहे वित्त मंत्री अरुण जेटली के पास इसके लिए पर्याप्त समय है न आवश्यक रुचि – समझ। सेना प्रमुख के '' हम युद्ध लिए तैयार हैं और भारत ढाई मोर्चे पर लड रहा है '' जैसे बयानों के साथ जेटली का कहना कि अब 62 वाला भारत नहीं है चीन को उकसाने वाला ही रहा है। ये बयान भारत की कूटनीतिक अगंभीरता को ही दर्शाते हैं।

मोदी जी को विदेश मंत्रालय को भी मजबूत करना चाहिए। सुषमा स्वराज होकर भी विदेश मंत्री नहीं हैं। विदेश मंत्रालय प्रधान मंत्री की बडी छाया में दब- ढंक सा गया है।
शम्भूदयाल बाजपेयी वरिष्ठ पत्रकार

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